अनहोनी / दीपक मशाल
बड़ी अनहोनी हो गई। नेता जी को हमलावरों ने घायल कर दिया। सुना है वो सुबह सुबह मंदिर जा रहे थे लेकिन रास्ते में ही मोटरसाइकिल सवार दो अज्ञात हमलावरों ने अचानक उनपर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं। उनके बहते खून ने समर्थकों का खून खौला दिया। देखते ही देखते उनके चाहने वालों का हुजूम जमा हो गया।
थोड़ी देर में ही नेता ओपरेशन थियेटर में थे और बाहर समर्थकों के सब्र का बाँध टूट रहा था। किसी ने कहा- 'इस सब में पुलिस की मिलीभगत है।'
फिर क्या था। २०० लोगों की भीड़ थाने की तरफ बढ़ चली। लाठी, बल्लम, हॉकी स्टिक, मिट्टी का तेल, पेट्रोल सब जाने कहाँ से प्रकट होते चले गए। रास्ते में जो भी वाहन मिलता उसमे आग लगा दी जाती। दुकानें बंद करा दी गयीं। जो नहीं हुईं वो लूट ली गईं।
इस सब से बेखबर वो आज भी थाने के पास वाले चौराहेपर अपना रिक्शा लिए खड़ा था, जो उसके पास तो था पर उसका नहीं था। हाँ किराए पर रिक्शा लिया था उसने। आज साप्ताहिक बाज़ार का दिन था, उसे उम्मीद थी कि कम से कम आज तो रिक्शे के किराए के अलावा कुछ पैसे बचेंगे जिससे उसके तीनों बच्चे भर पेट खाना खा सकेंगे और कुछ और बच गए तो बुखार में तपती बीवी को दवा भी ला देगा।
दूर से आती भीड़ को उसने देखा तो लेकिन उसके मूड का अंदाजा ना लगा पाया। या शायद सोचा होगा कि उस गरीब से उनकी क्या दुश्मनी?
पर जब तक वो कुछ समझ सकता रिक्शा पेट्रोल से भीग चुका था। एक जलती तीली ने पल भर में बच्चों के निवाले और उसकी बीवी की दवा जला डाली।
अगले दिन नेता जी की हालत खतरे से बाहर थी। हमलावर पकड़े गए। नेता जी ने समर्थकों का उनके प्रति अगाध प्रेम दर्शाने के लिए आभार प्रकट किया।
रिक्शावाले के घर का दरवाज़ा सूरज के आसमान चढ़ने तक नहीं खुला। अनहोनी की आशंका से पड़ोसियों ने अभी-अभी पुलिस को फोन किया है।