अनावरण / उपमा शर्मा

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देश-विदेश के शिल्पकार अपनी प्रतिमाओं की प्रदर्शनी लगा रहे थे। प्रतिमा से परदा हटता और जगमगा जाता शिल्प का अप्रितम नमूना। आज की थीम थी 'नारी और नारी का अप्रतिम सौन्दर्य' हर प्रतिमा से छलक रहा था। सारी प्रतिमाएँ अजन्ता-एलोरा की कलाकृतियों पर भारी पड़ रही थीं। हर कलाकृति बेजोड़ थी। दिख रहा था तो बस पुरुष की नजरों में नारी का अप्रतिम सौन्दर्य और उसकी विशेष संरचना। प्रत्येक प्रतिमा के अनावरण के साथ तालियों की गूँज बढ़ती जाती और चर्चा बढ़ जाती कला के उत्कृष्ट नमूने पर।

फिर महिला शिल्पकारों की बनाई प्रतिमा का अनावरण होना शुरू हुआ। किसी प्रतिमा में नारी दुल्हन के रूप में थी, तो किसी प्रतिमा में माँ का रूप में। दुल्हन बनी प्रतिमा शरमा रही थी तो माँ बनी प्रतिमा के चेहरे पर ममता के भाव बेहद खूबसूरती से उकेरे गए थे। अंत में प्रसिद्ध कलाकार अनु की प्रतिमा के अनावरण की बारी थी। पर्दा हटा और प्रतिमा देख सब चौंक गए। नारी के सौष्ठव का ऐसा रूप देखकर सबकी आँखें चौंधिया गईं।

"और आज का पुरस्कार जाता है अनु जी को।" मंच से हुई इस उद्घोषणा के साथ ही मूर्तियों से सजा संवरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा। तालियों की गूँज में अचानक एक आवाज आई "द्रौपदी के वस्त्र खींचने के लिए क्या कौरव ही काफी नहीं थे, जो आज तुमने भी मेरा चीरहरण कर दिया।"

यह आवाज प्रतिमा के कानों में पड़ी और वह भरभराकर कर गिर गई।

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