अनिल कपूर और आधुनिक परिवार / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :26 मई 2015
अनिल कपूर की पहली फिल्म एमएस सत्थ्यू की 'कहां कहां से गुजर गया मैं' थी और उनके पैंतालीस बरस के अभिनय कॅरिअर में वे सचमुच कहां-कहां से नहीं गुजरे। पारिवारिक मित्र व बुजुर्ग राज कपूर एक दौर में 'महावीर चक्र' बनाने पर विचार कर रहे थे और तीन नायकों की फिल्म में अनिल का चयन सत्थ्यू की फिल्म के पहले हो चुका था और अनिल खड़कवासला जाकर तीन माह फौजी की भूमिका की तैयारी करते रहे। फिल्म पूर्व तैयारी उनकी विशेषता रही है और कई बार वे आधी रात अपने फिल्मकार को फोन करके अपनी तैयारी में आने वाली परेशानी का जिक्र करते थे।
सुभाष घई को तो कहना पड़ा कि आधी रात उन्हें उठाने से बेहतर है कि वह तैयारी ही न करें। इतना ही नहीं फिल्मकार के द्वारा शॉट ओके होने पर भी अनिल कपूर कहते, 'कृपया शॉट और लीजिए।' अपने काम में गुणवत्ता लाने के लिए वे हमेशा बेकरार रहते और कई फिल्मकार इस आदत से दु:खी हो जाते धे। उनके पिता सुरेंद्र कपूर राज कपूर के मित्र और उनके पड़ोसी थे, इसलिए अपने बचपन से ही उसने समर्पण व गुणवत्ता के पाठ पढ़े हैं। उनके कॅरिअर को बनाने में बड़े भाई बोनी कपूर का बहुत सहयोग रहा। उन्होंने बड़ी जोड़-तोड़ से साधन जुटाकर अनिल के साथ 'वो सात दिन' बनाई।
अनिल कपूर को सितारा हैसियत 'तेजाब' और 'राम लखन' से मिली तथा ये दोनों फिल्में तीन माह के अंतराल में प्रदर्शित हुई। उनके भाई की 'मिस्टर इंडिया' ने उन्हें बच्चों को प्रिय नायक बना दिया और इंदर कुमार की 'दिल' ने उन्हें युवा वर्ग में लोकप्रिय बना दिया। अनिल की नायक पारी बोनी कपूरी की ही 'नो एंट्री' तक जारी रही। एक निर्णायक मोड़ उस समय आया जब उन्हें 'स्लमडॉग मिलियनेर' में नकारात्मक भूमिका का प्रस्ताव मिला। सारी उम्र सकारात्मक फिल्में करते रहने के कारण वे इसे स्वीकार करने में संकोच करते रहे परंतु उनकी पुत्रियों में दबाव डाला और इस फिल्म में अभिनय के कारण उनके लिए हॉलीवुड में सेंध मारने का अवसर मिला और उन्हें लोकप्रिय सीरियल '24' में न केवल छोटी भूमिका मिली वरन उसके भारतीय संस्करण बनाने का अवसर मिला और '24' को पूरी गुणवत्ता के साथ बनाया और अब अगस्त से दूसरी किस्त में व्यस्त होने वाले हैं। सास-बहू के जहरीले प्रभाव से '24' अवाम को मुक्त नहीं करा पाया परंतु दूसरी व तीसरी किस्त में भारी सफलता मिलेगी, क्योंकि भारतीय जीवन में अमेरिकन शैली दिन-ब-दिन लोकप्रिय हो रही है,सारे पाठ्यक्रम भी कमोबेश अमेरिकन हैं, अत: दर्शकों की एक पीढ़ी तैयार हो गई है, जो बर्गर खाती है और अमेरिकन फिल्मों व सीरियल को भारतीयता पर तरजीह देते हैं।
अब अनिल कपूर ने अमेरिकन सीरियल 'मॉडर्न फैमेली' के भारतीय संस्करण के अधिकार भी खरीद लिए हैं। जब भारतीय परिवार बड़जात्या के अतिभावुकता में पगे परिवारों से तंग आ रहे हंै तब अनिल कपूर 'माडर्न फैमिली' लेकर आएंगे। अत: अभिनय में टाइमिंग के गुण को वे बतौर निर्माता भी आजमा रहे हैं। दरअसल, जोया अख्तर की 'दिल धड़कने दो' में अनिल कपूर ऐसे परिवार के मुखिया हैं, जहां बड़ी साफगोई से बातें होती हैं, यहां तक कि एक सपूत यह कहने में भी हिचक नहीं करता कि वे फलां लड़की से विवाह नहीं करेगा, क्योंकि वह अंतरंग संबंधों में अच्छी नहीं है। इस तरह की साफगोई अब अनेक परिवारों में मौजूद हैं।
फिल्म के प्रमो से लगता है कि जोया की फिल्म खूब लोकप्रिय होने वाली है और इस बहुसितारा फिल्म में अनिल कपूर के अभिनय की खूब प्रशंसा होने वाली है। जोया की फिल्में युवा केंद्रित होती हैं और उनके बुजुर्ग पात्र भी जवां दिल होते हैं। इसी फिल्म के शयन कक्ष दृश्य में अनिल अपनी पत्नी से कुछ बाते करते हैं तो वह कहती है कि यहां कोई देखने वाला नहीं है, अत: अभिनय मत करो। हास्यमय ढंग से प्रस्तुत यह बात न केवल अनिल पर लागू होती है, जो रियल व रील में कई बार फर्क नहीं करते पाते वरन आम आदमी भी शयन-कक्ष में प्रेम का अभिनय करते हुए सदियों के बाद भी थका नहीं है। सबसे अधिक अभिनय शयन कक्ष में ही होता है।