अनिल कपूर और जैकी श्राफ : दोस्त-दुश्मन / जयप्रकाश चौकसे

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अनिल कपूर और जैकी श्राफ : दोस्त-दुश्मन
प्रकाशन तिथि :02 मई 2016


एक दौर में अनिल कपूर और जैकी श्राफ के बीच शिखर सितारा बनने की प्रतियोगिता थी। श्राफ मुंबई की श्रेष्ठि वर्ग की बस्ती वालकेश्वर रोड के निकट बसी गरीबों की बस्ती के युवा थे। सुभाष घई ने एक विज्ञापन देखकर उन्हें अपनी 'हीरो' में प्रस्तुत किया यद्यपि वे देव आनंद की 'स्वामी दादा' में छोटी नकारात्मक भूमिका कर चुके थे। अनिल कपूर को दक्षिण के बापू नामक फिल्मकार ने बोनी कपूर की फिल्म 'वो सात दिन' में पद्‌मिनी कोल्हापुरे के साथ पेश किया था। इसके पूर्व राज कपूर ने 'परमवीर चक्र' के लिए अनिल कपूर को लेने का संकेत दिया। अनिल ने स्वयं ही पुणे जाकर कैडेट के रूप में खुद को प्रशिक्षित किया, जिससे उनकी लगन का अंदाज लगा सकते हैं। बोनी, अनिल और संजय के पिता सुरेंद्र कपूर गीता बाली के सचिव थे और चेम्बूर में ही रहते थे। अत: राज कपूर के सुपुत्र ऋषि कपूर अौर बोनी कपूर एक ही स्कूल में पढ़े। दोनों कपूर परिवारों में मधुर संबंध रहे।

इस तरह अनिल कपूर एक फिल्म परिवार की संतान थे तो दूसरी तरफ जैकी श्राफ सामान्य निम्न मध्यम वर्ग से आए थे। उन दोनों के सपने अलग-अलग थे, विचार शैली अलग थी। अनिल अपने सपनों में खुद को श्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार जीतता देखते थे और जैकी श्राफ के सपनों में तीव्र गति से चलने वाली मोबाइक होती थी। हरित क्रांति के कारण ग्रामीण क्षेत्र में धन आया और उन्होंने मोटरसाइकिल खरीदी या जीप खरीदी। फैंसी कार कभी उनका सपना नहीं थी। मोबाइक सवार पांच हॉर्स पावर वाली मोबाइक पर सवारी करता है तो कुछ पावर उसकी जांघों से अवचेतन तक पहुंच जाता है। ग्रामीण क्षेत्र में दुष्कर्म की घटनाएं उनके जीवन में मोबाइक आने के बाद बढ़ी है। आदमी मशीन चलाते समय यह समझ ही नहीं पाता कि कैसे मशीन उसकी विचार शैली में प्रवेश कर रही है। बहरहाल, अनिल कपूर और जैकी श्राफ ने 'राम लखन,' 'परिंदा,' 'रूप की रानी,' इत्यादि कुछ फिल्में साथ-साथ की! अनिल कपूर बेहतर भूमिका के लिए लालायित रहते थे परंतु अलमस्त जैकी श्राफ को इसकी चिंता ही नहीं थी। उन दिनों बोनी कपूर चाहते थे कि अनिल अमिताभ बच्चन का स्थान ग्रहण करे और उन्होंने अनिल के लिए प्रचारक नियुक्त किया तथा नारी सिप्पी जैसे स्थापित फिल्मकार को प्रलोभन देकर अनिल अभिनीत फिल्म 'मेरी जंग' प्रारंभ कराई, यश चोपड़ा के साथ 'लम्हे' की। 'मिस्टर इंडिया' के लिए बोनी कपूर श्रीदेवी की मां से मिले और उन्हें उनके मांगे मेहनताने से अधिक रकम दी। यानी बोनी कपूर ने भाई को शिखर सितारा बनाने के लिए हर कोशिश की और इसी तरह के प्रयास उन्होंने भाई संजय के लिए भी किए। जैकी श्राफ के पास कोई बड़ा भाई नहीं था और उसके अपने स्वभाव में विराट महत्वाकांक्षाएं भी नहीं थीं। जैकी श्राफ ने सितारा बनने के बाद अपनी कड़की के दिनों की प्रेमिका आयशा से विवाह किया और आयशा की फिल्म 'बूम' के हादसे से जन्मे सारे कर्ज भी ईमानदारी से चुकाए। अनिल और बोनी के परामर्श पर खरीदे प्लैट्स बेचे और एक उभरते सैटेलाइट चैनल के कुछ शेयर भी खरीदे। चैनल के स्थापित होने के बाद उन्होंने अधिक मुनाफे का इंतजार नहीं किया। नियति का चक्र देखिए कि आज जैकी श्राफ का पुत्र टाइगर सफल सितारा है और अनिल कपूर का पुत्र हर्षवर्धन राकेश मेहरा की फिल्म में नायक हैं। जैकी श्राफ टाइगर को अपने विवेक से चलने का कह चुके हैं, जबकि अनिल हर्षवर्धन के कॅरिअर में बहुत रुचि ले रहे हैं। अनिल की सुपुत्री सोनम की विचार शैली उनके ताऊ बोनी कपूर से कुछ साम्य रखती है। सबसे गौरतलब बात यह है कि दादा सुरेंद्र कपूर की तरह 'थोड़े में गुजारे' के आदर्श को कोई स्वीकार नहीं करता।

राज कपूर के परिवार को मुख्य परिवार मानें तो सुरेंद्र कपूर का परिवार सैटेलाइट कपूर घराना है। इसकी अभिरुचियां नवधनाढ्य की तरह हैं और जीवन मूल्यों में भी इस कारण अंतर है। किशोरवय में ऋषि कपूर ने बोनी कपूर के खस्ताहाल जूतों का मखौल बनाया और इस तरह की बातें सहपाठियों के बीच होती है परंतु बोनी कपूर ने मन में गांठ बांध ली और धन आने पर अनेक जोड़ी फैंसी जूते खरीदे। मनुष्य मन की सोच ही सुई की तरह होती है, जिससे हाथी गुजर जाा है परंत दुम अटक जाती है। वे जूते इसी दुम की तरह हैं। आज अगर दीवार के दृश्य की तरह अनिल कपूर अपनी समृद्धि की बात करते हुए बोनी कपूर से पूछें कि उनके पास क्या है तो बोनी भी कह सकते हैं कि उनके पास मां है। यह प्राय: परिवारों में होता है कि मां का दायित्व अपेक्षाकृत कम समृद्धि वाले पुत्र के पास जाता है। यह संभव है कि मां अपने जिस पुत्र में अपने पति की छाया देखती है, उसे उसके साथ रहना पसंद आता है। टाइगर श्राफ को इस तरह की कोई समस्या नहीं है।