अनिल कपूर का रोचक सीरियल 24 / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 07 अक्तूबर 2013
अनिल कपूर के टाइम फ्रेम के अनुरूप बनाए गए सीरियल के दो एपिसोड दिखाए जा चुके हैं। अनिल कपूर ने अमेरिका के टेलीविजन पर मील का पत्थर साबित हुए '24' नामक सीरियल के न केवल अधिकार खरीदे हैं वरन मूल के तकनीशियन की देख-रेख में यह सीरियल बना है। मूल कथा का निर्वाह किया गया है, परंतु पात्रों और परिवेश का भारतीयकरण किया गया है। इस राजनीतिक थ्रिलर में केन्द्रीय पात्र युवा प्रधानमंत्री है, जिसका परिवार दशकों से राजनीति के मंच पर मुख्य स्थान पर रहा है और यह युवा अपनी अनुभवी नेता मां की इस बात से सहमत नहीं है कि केवल पूरा कर पाने वाले वादे जनता से करें, उसका विचार है कि संकीर्ण राजनीति से ऊपर उठकर उच्च आदर्शों के अनुरूप राज किया जाना चाहिए। इसी परिवार का दामाद शराबी एवं दुश्चरित्र है। इन सारे काल्पनिक पात्रों में यथार्थ के कुछ लोगों की छवियां खोजी जा सकती हैं, परंतु यह इतिहास नहीं है और न ही वर्तमान की अधिकृत दैनंदिनी या सरकारी गजट है। यह सेल्युलाइड की काल्पनिक कथा है। यह बात अलग है कि यथार्थ और कल्पना साहित्य एवं सिनेमा में गलबहियां करतीं नजर आती हैं।
निर्वाचित युवा प्रधानमंत्री को शपथ लेने में 24 घंटे का समय बाकी है और उन्हीं 24 घंटों के हर क्षण की यह कथा है। युवा प्रधानमंत्री ने 12 वर्ष पूर्व अपने कॉलेज में एक लड़की को छेडऩे वाले बदमाशों की पिटाई की थी और एक पिटने वाला मर गया था तथा सारी पुलिस कार्यवाही को दबा दिया गया था और युवा प्रधानमंत्री को भी आज ही सत्य ज्ञात हुआ है और इस चुनौती को भी वह छल नहीं वरन सत्य के साथ निपटना चाहता है। दूसरी ओर एक अनाम अज्ञात आतंकवादी दल शपथ समारोह में युवा प्रधानमंत्री की हत्या करना चाहता है तथा इस षड्यंत्र की जानकारी विशेष सुरक्षा दल के शिखर अफसर को मालूम पड़ गई है, जो अपने कर्तव्य के प्रति इतना समर्पित है कि उसकी पत्नी एवं युवा पुत्री उससे नाराज हैं और आतंकवादियों ने पुत्री का अपहरण कर लिया है। उसका अभिन्न मित्र अनुपम खेर षड्यंत्र के सुराग को हासिल करते हुए शहीद हो गया है और सुराग का स्रोत उसके अपने अधीन उसकी विश्वस्त सहयोगी एवं भूतपूर्व प्रेमिका है, जिसका ईष्र्या से जल रहा पति भी उसी विभाग में नौकरी करता है तथा इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि पति ने पत्नी के कम्प्यूटर का इस्तेमाल किया हो। इसके साथ ही दो साहसी बहनों ने एक वायुयान को उड़ा दिया है।
इस सीरियल का प्रस्तुतीकरण कुछ इस तरह के एक ही क्षण में विविध जगह होने वाली घटनाओं का कोलाज दिखाया जाता है, गोया कि इसका असली नायक समय है। इस कथा में डोरे भीतर डोरा है और हर घटना के पीछे गहरा राज छुपा है। हमारा छोटा परदा अति भावुकता और सहज संयोगों के अतिनाटकीयता वाले सीरियलों से भरा पड़ा है, जिसमें अनिल कपूर का यह प्रयास एकदम भिन्न और मौलिक है और यथार्थ के निकट भी। कलर्स चैनल पर शुक्रवार और शनिवार रात दस बजे प्रसारित यह सीरियल अपनी कथा के चुस्त निर्वाह और आधुनिक मुहावरे में प्रस्तुत अद्भुत रचना है, परंतु ग्लिसरिन डली आंखों से बहते आंसुओं में तर्क और सत्य को डुबोने वाले सीरियल संसार में इसका सही मूल्यांकन संभव नहीं लगता।
यह गौरतलब है कि कुछ दिन पूर्व ही घोषणा हुई थी कि परेश रावल नरेंद्र मोदी का बायोपिक बनाने जा रहे हैं, परंतु प्राप्त सूचना है कि पटकथा बनने के पहले ही घोषणा जल्दबाजी में हो गई है। इसके साथ ही एक मध्यम वर्ग की कन्या के प्रधानमंत्री बनने का सीरियल भी प्रस्तुत होने जा रहा है, गोया कि 2014 के चुनावी महासमर को छोटे एवं बड़े परदे पर भी लड़े जाने की बात सामने आ रही है। शेखर कपूर द्वारा प्रधानमंत्रियों का प्रामाणिक ब्योरा एक समाचार चैनल पर दिखाया जा रहा है तो दूसरा चैनल कबीर बेदी द्वारा प्रस्तुत समान कार्यक्रम दिखा रहा है, गोया कि मनोरंजन क्षेत्र में भी राजनीतिक घमासान जारी है। क्या मतदाता मनोरंजन क्षेत्र में किए गए राजनीतिक प्रचार से प्रभावित होता है? शायद वह केवल जातिवाद से ही प्रभावित होता है।