अनुपम खेर बनाम नसीरुद्‌दीन शाह / जयप्रकाश चौकसे

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अनुपम खेर बनाम नसीरुद्‌दीन शाह
प्रकाशन तिथि :30 मई 2016


सुभाष घई की 'कर्मा' नामक फिल्म में नसीरुद्‌दीन शाह ने अन्याय के खिलाफ लड़ने वाले व्यक्ति की भूमिका अभिनीत की थी और इसी फिल्म में अनुपम खेर ने खलनायक डॉ. डेंग की भूमिका की थी। आजकल ये दोनों फिर एक-दूसरे के खिलाफ नज़र आते हैं। इस समय अनुपम खेर मोदी सरकार के प्रवक्ता की भूमिका में दिखाई पड़ रहे हैं, जबकि उनकी आधिकारिक नियुक्ति नहीं हुई है। उनकी पत्नी सांसद हैं और अत्यंत गरिमामय महिला हैं। वे इस विवाद का हिस्सा नहीं हैं। इस समय फिल्म उद्योग के कुछ लोग मोदी स्तुतिगान में लगे हैं और उनका उद्देश्य कोई पद या सम्मान पाना है। सभी की निगाहें दादा फालके पुरस्कार पर लगी हैं परंतु निशाना कुछ और ही है। यह यकीनन कहा जा सकता है कि नसीरुद‌्दीन शाह के मन में इस तरह की कोई बात नहीं है। वे निहायत ही संजीदा साफ-सुथरे विचारों वाले व्यक्ति हैं। उनकी अंग्रेजी में लिखी अात्म-कथा निहायत ही ईमानदार किताब है और भाषा तो इतनी सुगढ़ व सशक्त है कि लगता है मानो कैम्ब्रिज या अॉक्सफोर्ड के किसी प्रोफेसर ने लिखी है। अनुपम खेर ने भी किताब लिखी है, परंतु लेखन के अखाड़े में नसीर अनुपम पर बहुत भारी पड़ते हैं। अभिनय क्षेत्र में भी नसीर का पलड़ा बहुत भारी है। इस क्षेत्र में नसीर वह समुद्र है, जिसके तट पर अनुपम की तरह अनेक लोग रंगीन पत्थर और सीपियां खोज रहे हैं और उनका खयाल है कि इन पत्थरों और सीपियों से उन्हें समुद्र की गहराई का ज्ञान हो जाएगा। सरकारी भांडपन अभिनय नहीं है।

अनुपम खेर कश्मीर से विस्थापित पंडितों के दर्द का बखान कुछ इस तरह करते रहे हैं मानो वे स्वयं विस्थापित शरणार्थी हैं। भारत-पाक विभाजन के बाद जगह-जगह शरणार्थी कैम्प बने थे। हमें कभी यह सुनने में नहीं आया कि कश्मीर के विस्थापित लोगों का कहीं कैम्प था। सुना जाता है कि कश्मीर में हिंसा होने के बहुत पहले ही वहां के पंडित भारत के अन्य भागों में बस चुके थे। इस तरह के विस्थापित लोगों को सरकार द्वारा कोई सहायता भी प्राप्त नहीं हुई और न ही उन लोगों ने मांगी। बहुत गहन प्रचार द्वारा यह भ्रम फैलाया गया है कि पंडित नेहरू इस दुर्घटना के जवाबदार हैं और इन प्रचारकों ने इस बात को कभी स्वीकार नहीं किया कि स्वयं पंडित नेहरू कश्मीरी ब्राह्मण हैं, परंतु उनका परिवार दशकों पू्र्व ही इलाहाबाद में बस गया था। उनका निवास स्थान आनंद भवन कांग्रेस को दान में दिया गया था। यह महज इमारत नहीं है वरन् स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा भी है। जवाहरलाल के पिता मोतीलाल नेहरू इतने सफल बैरिस्टर थे कि प्रिवी काउंसिल में पैरवी करने के दस हजार रुपए प्रतिदिन उस दौर में पाते थे, जब दस हजार रुपए से एक कस्बा खरीदा जा सकता था!

नसीरुद्‌दीनन शाह रंगमंच पर हमेशा सक्रिय रहे हैं और आज भी वे नाटक में अभिनय करते हैं तथा नाटक को निर्देशित भी करते हैं। अनुपम खेर का एकमात्र नाटक है, 'ऐसा भी हो सकता है।' दरअसल, भारतीय जनता दल और मोदी से सबसे पहले जुड़ने वाले कलाकार परेश रावल हैं। अमिताभ बच्चन को गुजरात पर्यटन विभाग ने उस समय अनुबंधित किया जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। अमिताभ अपने जीवन के एक दौर में नेहरू-गांधी परिवार के अत्यंत निकट थे। उनके पिता हरिवंशराय बच्चन एवं माता तेजी बच्चन नेहरू परिवार के गहरे मित्र रहे हैं और 1954 में नेहरू ने उन्हें सरकार के विदेश विभाग में हिंदी अधिकारी का पद दिया था। नेहरू निवास के पड़ोस का बंगला भी उन्हें आवंटित हुआ था। राजीव गांधी और अमिताभ बच्चन एक-दूसरे के बाल सखा हैं। सोनिया को भारतीय रीति-रिवाज और संस्कृति से परिचित कराने का काम भी इंदिरा गांधी ने तेजी बच्चन को सौंपा था। नेहरू-गांधी और बच्चन परिवार की इतनी निकटता थी कि जब 'कुली' की शूटिंग में घायल होने के पश्चात अमिताभ को गंभीर दशा में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल लाया गया, तब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी स्वयं उनसे मिलने अस्पताल पहुंचीं।

संभवत: पहली बार देश का प्रधानमंत्री किसी पारिवारिक मित्र का हालचाल जानने अस्पताल आया हो। कहा जाता है कि इंदिरा ने सुनील दत्त से संघर्षरत अमिताभ को काम देने को कहा था और 'रेशमा और शेरा' में उन्हें भूमिका भी मिली। ख्वाजा अहमद अब्बास को भी कहा गया था और उन्होंने'सात हिंदुस्तानी' में उन्हें अवसर दिया था। इतनी गहन निकटता वाले लोग राजनीतिक रूप से विरोधी खेमे में कैसे पहुंच गए यह रहस्य अभी तक उजागर नहीं हुआ है। यह निश्चित है कि द्वंद्व का आधार राजनीतिक दर्शन नहीं था। अगर इस महत्वपूर्ण संबंध को हम गंगा-जमना का संगम कहें तो तीसरी नदी सरस्वती धीरुभाई अंबानी रहे हैं और उनकी भूमिका का खुलासा आज तक नहीं हुआ है। आज भी अमिताभ अंबानी परिवार के निकट हैं।