अनुराग बसु और रणबीर कपूर की जग्गा जासूसी / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 11 सितम्बर 2013
अनुराग कश्यप की रणबीर कपूर अभिनीत 'बॉम्बे वेलवेट' की शूटिंग श्रीलंका में विगत कुछ समय से हो रही है, परंतु अब तीन माह का विराम है, क्योंकि वहां भारी वर्षा प्रारंभ हो चुकी है। ज्ञातव्य है कि फिल्म का आधार 'मुंबई फैबल्स' नामक किताब है और यह कथा मुंबई के महानगर बनने की प्रक्रिया को प्रस्तुत करती है। श्रीलंका में कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जो पांचवें दशक के मुंबई की तरह हैं और उसी क्षेत्र में कुछ सैट्स भी लगाए हैं। रणबीर कपूर एक समय में एक ही फिल्म करते हैं, अत: वर्षा के कारण उनके पास तीन महीने का खाली वक्त था। इम्तियाज अली की पटकथा तैयार नहीं है, अत: अनुराग बसु की 'जग्गा जासूस' इन तीन महीनों में लगभग पूरी बन जाएगी। 'बर्फी' के बाद ही अनुराग रणबीर कपूर को 'जग्गा जासूस' सुना चुके थे। इस फिल्म का निर्माण भी अनुराग बसु और रणबीर कपूर की भागीदारी में हो रहा है।
आजकल सभी सफल सितारे अपनी अभिनीत फिल्म में मालिकाना अधिकार मांगते हैं, जिसे आज 'इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स' कहा जाता है। आज करण जौहर सहर्ष ही यह अधिकार देते हैं क्योंकि वे अधिकतम फिल्में बनाना चाहते हैं और उनके गुरु आदित्य चोपड़ा अपनी फिल्मों के आंशिक मालिकाना हक नहीं देना चाहते। सितारे द्वारा मालिकाना हक मांगना इस दौर में ही प्रारंभ हुआ है। इस परिवर्तन से यह लाभ होगा कि निर्माता नए लोगों को अवसर देंगे और सिनेमा केवल आधा दर्जन सितारों की दासता से मुक्त हो जाएगा। सितारा जडि़त फिल्में अकल्पनीय लाभ देती हैं, परंतु फिल्मकार जो सृजन स्वतंत्रता चाहता है, वह नए कलाकारों के साथ ही संभव है। सभी सितारे एक से नहीं हैं, परंतु किसी न किसी प्रमाण में वे सृजनपक्ष में परिवर्तन करते हैं। अनेक फिल्मकार सबके सहयोग से फिल्में बनाना चाहते हैं, परंतु कुछ यह मानते हैं कि फिल्म बनाना हॉकी या क्रिकेट की तरह टीमवर्क नहीं है, वरन एक व्यक्ति के आकल्पन को उसमें विश्वास करने वालों के सहयोग से फिल्म बनती है। विदेशों में निर्देशक को ही फिल्म का लेखक और कर्ता माना जाता है।
बहरहाल, अनुराग की 'बर्फी' एक लीक से हटकर फिल्म थी और उसे भरपूर सफलता भी मिली। 'जग्गा जासूस' नाम से हम उसका अनुमान वैसे ही नहीं लगा सकते, जैसे 'बर्फी' से नहीं लगा पाए थे, परंतु सभी महान फिल्मकारों को जासूसी फिल्में पसंद आती रहीं और वे स्वयं भी इन्हें बनाते रहे हैं, जैसे महान सत्यजीत रॉय ने भी 'व्योमकेश बक्षी' नामक जासूस पात्र की रचना की है। दरअसल, बचपन में प्राय: जासूसी किताबें पढऩा अच्छा लगता है। इब्ने सफी की जासूसी दुनिया पांचवें दशक में अत्यंत लोकप्रिय थी और उसका पुन: प्रकाशन भी हुआ है। बचपन में शरलॉक होम्स की किताबें भी खूब पढ़ी गई हैं और आर्थर कानन डॉयल का यह काल्पनिक पात्र इतना विश्वसनीय बन गया था कि उस पते पर ही अनेक खत आने लगे थे, जो काल्पनिक पात्र का पता उपन्यासों में स्थापित किया गया था। इस क्षेत्र में अगाथा क्रिस्टी सर्वकालिक महान लेखिका हैं और उनके जासूस बेल्जियन पायरों के साथ ही वृद्ध महिला जासूस मिस मारपल अत्यंत लोकप्रिय रही हैं। आज भी अगाथा क्रिस्टी की किताबें बहुत बिकती हैं और उनकी अनेक रचनाओं पर अनेक देशों में फिल्में बनी हैं। मनोज कुमार, नंदा अभिनीत 'गुमनाम' अगाथा क्रिस्टी के उपन्यास 'टेन लिटिल निगर्स' से ही प्रेरित थी। कई लोग अपने बचपन को ताउम्र हृदय में अक्षुण्ण रखते हैं। इस तरह बचपन एक मासूम जग्गा जासूस की तरह मनुष्य के हृदय में सारी उम्र बैठा रहता है