अनुराग बसु : एक फितूरी फिल्मकार / जयप्रकाश चौकसे

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अनुराग बसु : एक फितूरी फिल्मकार
प्रकाशन तिथि :13 फरवरी 2016


'फितूर' मैंने देखी नहीं है परंतु यह फिल्म चार्ल्स डिकेन्स के उपन्यास 'द ग्रेट एक्सपेक्टेशन्स' से प्रेरित बताई जा रही है। डिकेन्स की रचनाओं में साधनहीन व्यक्ति के प्रति करुणा का भाव होता है परंतु उनकी यह किताब विशुद्ध प्रेम कथा है। उपन्यास में एक खानदानी अमीर वृद्ध महिला का पात्र है, जिसे जवानी में प्रेम के नाम पर ठगा गया था, अत: वह उम्रदराज औरत अपने विफल प्रेम के चश्मे से तत्कालीन युवा प्रेम कथा को देखती है और उसमें बाधा डालती है। जीवन में अनेक लोग अपने कटु अनुभव के कारण कुछ धारणाएं बना लेते हैं और समय को समझ नहीं पाते। अपवाद स्वरूप ऐसे लोग भी हैं, जो अपने कटु अनुभव को परे रखकर अन्य लोगों की सहायता करते हैं। यह सब निर्भर करता है सकारात्मकता के प्रति रूझान से या नकारात्मकता से शासित होने पर। इस अमीर और सनकी वृद्धा की भूमिका के लिए पहले श्रीदेवी से निवेदन किया गया परंतु उन्होंने भूमिका अस्वीकार कर दी, क्योंकि वे 'इंग्लिश विंग्लिश' अपने दम पर सफल कर चुकी थीं। बाद में रेखा के साथ कुछ दिन शूटिंग की गई परंतु वे कथा में इतने परिवर्तन चाहती थीं कि उन्हें हटा दिया गया। अंततोगत्वा तब्बू ने यह भूमिका स्वीकार की है।

इस फिल्म में युवा नायिका की भूमिका कटरीना कैफ ने की है और इसका प्रदर्शन उस समय हो रहा है, जब रणबीर कपूर से उनके प्रेम प्रसंग के टूटने की खबरें सुर्खियों में है। अत: यह फिल्म उनके कॅरिअर के लिए महत्वपूर्ण है। एक दौर में कटरीना ने सलमान, आमिर और शाहरुख खान के साथ फिल्में की हैं और आदित्य चोपड़ा की वे पहली पसंद थीं परंतु बॉक्स ऑफिस पर ही फिल्म उद्योग के सारे रिश्ते आधारित हैं। इस समय कटरीना के पास 'फितूर' के बाद अनुराग बसु की 'जग्गा जासूस' है, जिसमें रणबीर कपूर नायक होने के साथ फिल्म निर्माण में बसु के साथ भागीदार भी है और लंबे समय से रुकी हुई इस फिल्म का एक शूटिंग दौर मार्च में होने जा रहा है।

दरअसल, अनुराग बसु ऐसे फिल्मकार हैं कि जब तक वे पूरी फिल्म को संपादित नहीं करते तब तक उस फिल्म के कुछ अंशों को देखकर कोई व्यक्ति फिल्म का आकलन नहीं कर पाता। यही 'बर्फी' के समय भी हुआ था और उनके अंतिम संपादन के बाद 'बर्फी' न केवल सफल रही वरन वह महत्वपूर्ण फिल्म भी मानी गई। ईश्वरीय कमतरी पर बनी इंसानी भावनाओं की फिल्मों में 'बर्फी' हमेशा एक माइलस्टोन रहेगी। आप अनुराग बसु की योग्यता उनके द्वारा निर्मित रवींद्रनाथ टैगोर की कहानियों से समझ सकते हैं, जो एपिक चैनल पर दिखाई जा रही है। कुछ फिल्मकार असली पटकथा अपने दिमाग में रखते हैं और कागज पर उनके विवरण से कुछ भी समझ पाना कठिन होता है। इस तरह 'जग्गा जासूस' के नाम से वह एक जासूस कथा नजर आती है परंतु उसमें इतने गीत हैं कि उसे आप संगीतमय प्रेम कथा मान सकते हैं। जासूसी साहित्य की महारानी अगाथा क्रिस्टी की दो उपन्यास शृंखलाएं ऐसी हैं, जिनमें एक में बेल्जियम के जासूस हरक्यूली पायरो नायक हैं और अन्य शृंखला में पैंसठ वर्षीय वृद्धा मिस मारपल केंद्रीय पात्र है।

अत: एक दूर की कौड़़ी यह हो सकती है कि अनुराग बसु हरक्यूली पायरो और मिस मारपल को बुढ़ापे की जगह युवा जासूस जोड़ी या एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी के रूप में प्रस्तुत करें तो यह अत्यंत रोचक फिल्म हो सकती है परंतु अनुराग बसु तो अपने प्रमुख कलाकारों को भी पूरी पटकथा नहीं सुनाते परंतु उनके कलाकारों को उन पर बहुत विश्वास है। उन्होंने महेश भट्ट के लिए एक विलक्षण प्रेम कथा बनाई थी परंतु उसका नाम 'गैंगस्टर' था, जो एक प्रेम कथा का नाम नहीं हो सकता था। उस फिल्म के अपराधी नायक और नायिका लंबे समय तक साथ रहते हैं परंतु उनके रिश्ते में कोई शारीरिकता नहीं है। अंतिम दृश्य में मरणासन्न नायक के हाथ में सिंदूर की डिबिया है अौर नायिका उसी सिंदूर की खातिर उन्हें पकड़ने वाले पुलिस अफसर की हत्या करके प्रेमी की मृत्यु का बदला लेती है। सारांश यह है कि अनुराग बसु को आप किसी पारंपरिक परिभाषा में नहीं बांध सकते। उनके दिमाग में बसी पटकथा में निरंतर परिवर्तन होते हैं। उनकी पटकथा निर्जीव कागजों का ढेर नहीं है। वह एक जीवंत पात्र है, जो निरंतरनिखरता रहता है।