अनुवाद ऎसे करें / सृजन शिल्पी
कई वर्ष पूर्व केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो, गृह मंत्रालय, भारत सरकार में अनुवाद संबंधी प्रशिक्षण के दौरान मैंने अच्छे अनुवादक के गुण और दायित्व के संबंध में कुछ सैद्धांतिक दिशानिर्देश तैयार किए थे। विनय जी के लेख पर टिप्पणी करते हुए मैंने उन्हें खोजकर पोस्ट करने का वादा किया था। तो लीजिए प्रस्तुत है :
अनुवादक के गुण और दायित्व एक-दूसरे से संबद्ध हैं। गुण का संबंध अनुवादक की योग्यता, क्षमता एवं प्रतिभा से है, जबकि दायित्व का संबंध अनुवाद कर्म के अनुशासन और अनुवादक के सामाजिक सरोकारों से है। अध्ययन और मूल लेखन तो स्वांत:सुखाय हो सकते हैं, लेकिन अनुवाद स्वांत:सुखाय कर्म के बजाय एक सामाजिक-सांस्कृतिक कर्म है। इसलिए अनुवादक में कुछ विशेष गुणों का होना आवश्यक है और उसके दायित्व भी विशेष प्रकार के हैं।
उसे स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा पर अधिकार होने के साथ-साथ दोनों भाषाओं की प्रकृति एवं सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि तथा परिवेश का भी सम्यक ज्ञान होना चाहिए। मुहावरों और लोकोक्तियों का भी उसे अच्छा ज्ञान होना चाहिए। उसमें संबंधित विषय का समुचित ज्ञान और विषय के अनुकूल शब्द-चयन की सामर्थ्य भी होनी चाहिए। यह ध्यान रखें कि शब्दों के अर्थ उसके संदर्भ के अनुसार बदलते हैं और हर अर्थ अपने-आप में विशिष्ट होता है।
उदाहरण के लिए, ‘provision’ शब्द का अनुवाद आर्थिक संदर्भ में ‘प्रावधान’ (बजटीय प्रावधान) होगा, जबकि विधिक संदर्भ में ‘उपबंध’ (संवैधानिक उपबंध)। यदि आप शब्दकोश देखें तो इस शब्द के लिए विभिन्न संदर्भों में प्रयुक्त होने वाले बहुत से अर्थ मिल जाएंगे, जैसे कि प्रबंध व्यवस्था; पूर्वोपाय; तैयारी; पूर्व योजना; सम्भार; भंडार; खाद्य विक्रेता; निवेश; धारा आदि। यदि Provision से बनने वाले अन्य शब्दों के अर्थ देखें, जैसे कि provisional के लिए अनंतिम, अस्थायी, proviso के लिए परंतुक, शर्त, provisor के लिए प्रत्याशी, provisory के लिए प्रतिबंधित, शर्तबन्द, provisions के लिए खाद्य आपूर्ति… तो हम पाते हैं कि विषय और संदर्भ के अनुरूप शब्दों के अर्थ में किस प्रकार बदलाव आता है और अच्छा अनुवादक अनुवाद करते समय शब्दों और अभिव्यक्तियों के विशिष्ट अर्थ की तलाश करता है। एक गलत प्रयोग का नमूना देखिए, बिहार के कुछ विश्वविद्यालयों द्वारा जारी provisional certificate पर हिन्दी में ‘औपबंधिक प्रमाण पत्र’ लिखा होता है, जबकि उसका सही अनुवाद है ‘अनंतिम प्रमाणपत्र’।
मूल पाठ के प्रति निष्ठा, अनुवाद की सटीकता, भाषा की शुद्धता और शैली के सौंदर्य को बनाए रखने के साथ-साथ उसे अनुवाद के प्रयोजन और अपने लक्षित पाठक के स्तर का ध्यान भी रखना चाहिए। अनुवाद की भाषा सहज और प्रवाहशील होनी चाहिए ताकि पाठक अटके नहीं और उसे अनुवाद को समझने के लिए मूल पाठ को देखने की आवश्यकता महसूस नहीं हो।
एक अच्छा अनुवादक मौलिक लेखन की सर्जनात्मकता से संपन्न होता है और उसके अंदर गहरी सामाजिक संबद्धता और प्रतिबद्धता भी होती है।
उसे यथास्थिति शब्दानुवाद और भावानुवाद, दोनों पद्धतियों के बीच स्वविवेक से संतुलन कायम करते हुए अनुवाद करना चाहिए। अपनी अभिव्यक्ति पर उसका पूर्ण नियंत्रण रहना चाहिए। उसके अनुवाद से वही अर्थ निकलना चाहिए जो मूल पाठ में अभिप्रेत था।
अनुवाद कर्म गहरी अभिरुचि, लगन, परिश्रम और धैर्य की अपेक्षा करता है।
अनुवाद करते समय अनुवादक को तटस्थ, निर्वैयक्तिक और लचीला रवैया अपनाना चाहिए। उसे अपने अनुवाद को अधिक से अधिक बोधगम्य और संप्रेषणीय बनाने का यत्न करते रहना चाहिए। कोई भी अनुवाद अंतिम और संपूर्ण नहीं होता, उसमें सुधार की गुंजाइश हमेशा रहती है।
अच्छा अनुवादक वही हो सकता है जिसे जीवन और जगत का व्यापक और गहरा अनुभव हो। उसे सभी विषयों के बारे में कम से कम बुनियादी बातें पता रहनी चाहिए। उसे निरंतर अध्ययनरत रहना चाहिए। शब्दकोश और विश्वकोश उसके साथी की तरह होने चाहिए।
सतत अभ्यास अनुवादक का धर्म है। जिस प्रकार खान से निकला हीरा जब तक सान पर न चढ़ाया जाए तब तक उसमें राजमुकुट पर चढ़ने की योग्यता नहीं आती, उसी प्रकार निरंतर अभ्यास के बिना अनुवाद अपेक्षित स्तर का नहीं हो सकता। अपने अनुवाद को विश्वसनीय और प्रामाणिक बनाने के लिए अनुवादक को निरंतर उद्यमशील रहना चाहिए। सबसे अच्छा अनुवाद वह है जिसमें अनुवाद की गंध तक नहीं हो ताकि पाठक को ऐसा लगे कि वह मूल कृति ही पढ़ रहा है।