अनुवाद भी सृजन होता है / कुँवर दिनेश
(डॉ. कुँवर दिनेश सिंह, कवि-कथाकार-समीक्षक एवं अनुवादक (हिन्दी/अँग्रेज़ी), महाविद्यालय में एसोशिएट प्रोफ़ेसर (अँग्रेज़ी)एवं ‘हाइफ़न’ के सम्पादक हैं। आपके द्वारा किए गए अनुवाद वैश्विक स्तर पर चर्चित हो चुके हैं। आपने हिन्दी और अँग्रेज़ी दोनों ही भाषाओं में सृजन किया है। अनुवाद के बारे में आपने जो विचार व्यक्त किए , वे यहाँ प्रस्तुत किए जा रहे हैं-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’)
मैंने हिन्दी और अँग्रेज़ी भाषाओं में अनुवाद कार्य किया है। कविता, हाइकु, क्षणिका, गद्य, कहानी, तथा लघुकथा ― इन सभी विधाओं में हिन्दी से अँग्रेज़ी तथा अँग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद किया है। समकालीन हिन्दी हाइकु का अँग्रेज़ी में मेरा काव्य-अनुवाद, जापानी हाइकु का हिन्दी अनुवाद तथा हिन्दी लघुकथाओं के अँग्रेज़ी भाषा में मेरे अनुवाद पुस्तकों के रूप में प्रकाशित हो चुके हैं।
प्रत्येक विधा में अनुवाद का मेरा अपना एक अलग अनुभव रहा है। हाइकु को हिन्दी से अँग्रेज़ी में और इसके प्रतीप क्रम में अनुवाद करना बहुत ही जटिल, श्रमसाध्य कार्य है। इसका एक बड़ा कारण है ― हिन्दी और अँग्रेज़ी भाषाओं में हाइकु के छन्द, स्वरूप एवं संरचना में आधारभूत अन्तर। हिन्दी भाषा में हाइकु एक वर्णिक छन्द है, जिसमें तीन पंक्तियों में 5-7-5 का वर्णक्रम रहता है, तो अँग्रेज़ी भाषा में सिलेबल अथवा अक्षर / शब्दांश के 5-7-5 के संख्या-क्रम में हाइकु रचना की जाती है। तो सीधे-सीधे यह दोनों भाषाओं में हाइकु रचना का एक प्रमुख भेद है, जिसके कारण अनुवाद कार्य एक चुनौती बन जाता है।
नि:संदेह अनुवाद स्वयं में नव-सृजन है, क्योंकि एक भाषा से दूसरी भाषा में जाते हुए एक अनुवादक को उस भाषा की शब्दावली के चयन के साथ-साथ उसके शब्दों, अर्थों, भावों, अनुभावों, प्रभावों, ध्वनियों एवं अलंकारों पर भी विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित करना पड़ता है। यही नहीं एक भाषा के साथ उसकी ऐतिहासिक-सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि होती है, जिसे दूसरी भाषा में अक्षत रखना अपने-आप में एक बहुत बड़ी चुनौती होती है। कविता के अनुवाद में तो भाषा के इन सब घटकों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। इस प्रक्रिया में अनुवादक एक नवरचना करता है, और उसमें एक नई आत्मा का संचार करता है।
हाइकु अनुवाद पर मेरी दो पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं: (1) फ़्लेम ऑफ़ दी फ़ॉरेस्ट (Flame of the Forest, 2020) ― जिसमें मैंने हिन्दी भाषा के समकालीन 32 हाइकुकारों की 144 हाइकु-कविताओं का अँग्रेज़ी भाषा में 5-7-5 के सिलेबल अथवा अक्षर संख्या के क्रम में काव्य-अनुवाद किया है; तथा (2) जापान के चार हाइकु सिद्ध (2015) ― जिसमें मैंने जापान के चार महान् हाइकुकारों ― बाशो, बुसोन, इस्सा, और शिकी के चयनित हाइकु का उनके अँग्रेज़ी काव्यरूप से हिन्दी के 5-7-5 के वर्णक्रम में काव्य-अनुवाद किया है। हाइकु अति लघु कविता है, जिस कारण इसका अनुवाद बहुत कठिन हो जाता है।
आज तक हाइकु के जो अनुवाद हिन्दी और अँग्रेज़ी भाषाओं में हुए हैं, उनमें छन्द के नियमों का पालन नहीं हुआ है; केवल विचार या बिम्ब को भाषान्तरित करके परोस दिया गया है; लेकिन इस प्रकार का रूपान्तर हाइकु नहीं बन पाया है। मैंने अपने काव्य-अनुवाद में छन्द के नियमों की पूरी अनुपालना की है और हाइकु के मूल भाव को अक्षत रखने का तथा उसकी आत्मा को बचाए रखने का पूरा प्रयास किया है। उदाहरणस्वरूप जापानी कवि मात्सुओ बाशो के दादुर-हाइकु के अनुवाद को चर्चा में लाना चाहूँगा। इसका अँग्रेज़ी में इस प्रकार अनुवाद हुआ है: An ancient pond / a frog jumps in / the sound of water ― इस अनुवाद में तीन पंक्तियों में 4-4-5 का सिलेबल अथवा अक्षर संख्या का क्रम है। हाइकु-प्रेमी रवीन्द्रनाथ टैगोर ने बाँग्ला में इसका अनुवाद इस प्रकार किया है: पुरोनो पुकुर / ब्यांगेर लाफ / जलेर शब्द ― जिसमें 6-5-5 का वर्ण-क्रम है। और कवि अज्ञेय ने हिन्दी में इसका अनुवाद इस प्रकार किया: ताल पुराना / कूदा दादुर / गुडुप्! ― जिसमें 5-5-3 का वर्ण-क्रम है। मैंने इसका 5-7-5 के वर्ण-क्रम में अनुवाद इस प्रकार किया है: ताल पुराना: / दादुर की डुबकी / जल-तराना। इसी प्रकार एक अन्य हाइकु अँग्रेज़ी अनुवाद हुआ है: A crow / has settled on a bare branch / autumn evening ― जिसमें 2-7-4 का सिलेबल क्रम है। टैगोर ने इसे बाँग्ला में रूपान्तरित किया: पचा डाल / एकटा को / शरत्काल ― जिसमें 4-4-4 का वर्ण-क्रम है। अज्ञेय ने इसका हिन्दी में अनुवाद किया: सूखी डाल पर / काक एक एकाकी / रात पतझर की ― जिसमें 6-7-7 का वर्ण-क्रम है। मैंने इस हाइकु का काव्यानुवाद इस प्रकार किया: साँझ की बेला / एक नंगी शाख़ पे / कौआ अकेला! ― जिसमें 5-7-5 का वर्ण-क्रम है।
हिन्दी से अँग्रेज़ी में मैंने हाइकु का अनुवाद 5-7-5 सिलेबल अथवा अक्षर के क्रम में किया है। भगवतशरण अग्रवाल का हिन्दी में एक हाइकु है: फूल की जब / गंध ही उड़ गई / गाड़ो, जलाओ! ― इसका मैंने अँग्रेज़ी में अनुवाद किया है: When the flower has lost ― / Its attribute of fragrance / Bury it, burn it! ― जिसमें 5-7-5 का सिलेबल क्रम है। गोपाल बाबू शर्मा का एक हाइकु है: रेत के टीले / दिखते बड़े ऊँचे / कितने दिन? ― इसका अँग्रेज़ी में अनुवाद मैंने इस प्रकार किया है: The mounds of sand look / So spectacularly high ― / For how many days? ― जिसमें 5-7-5 का सिलेबल क्रम है। और एक मेरा हाइकु: जीता या हारा? / अकेला पड़ गया / भोर का तारा ― इसका अँग्रेज़ी में मैंने अनुवाद किया: Victory or defeat? / Solitary in the sky / The bright morning star! ― जिसमें भी 5-7-5 का सिलेबल-क्रम अक्षुण्ण रखा है। इस सारी प्रक्रिया में मैंने यह अनुभव किया है कि एक अच्छा अनुवाद किसी विधा का पुन: सृजन होता है।
हाल ही में हिन्दी लघुकथाओं के अँग्रेज़ी में अनुवाद की मेरी एक पुस्तक प्रकाशित हुई है: Beyond Semblances (2021), जिसमें उन्नीसवीं शताब्दी से लेकर वर्तमान समय तक के 62 प्रतिष्ठित और नवोदित लघुकथाकारों की लघुकथाओं का अँग्रेज़ी में अनुवाद किया है। यह अनुवाद भी बेहद चुनौतीपूर्ण रहा, क्योंकि हिन्दी के मुहावरे को अँग्रेज़ी की शब्दावली में रूपान्तरित करना, और वह भी इस प्रकार कि भाषा का प्रवाह सहज रूप में बना रहे, नि:सन्देह बहुत जटिल कार्य है । आज अनुवाद की महत्ता एवं उपादेयता बहुत बढ़ गई है, क्योंकि अन्य भाषाओं के साहित्य को पढ़ने में पाठकों की रुचि में अभिवृद्धि हुई है। एक बात और रेखांकित करना चाहूँगा- शुद्ध और परिमार्जित भाषा के ज्ञान के बिना स्तरीय अनुवाद सम्भव नहीं है। मूल और अनुवाद की भाषा पर गहरी पकड़ होनी चाहिए। अतएव हमें न केवल हिन्दी, अपितु विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं तथा लोकभाषाओं के अन्य भाषाओं में अनुवाद -कार्य को बढ़ाना होगा, ताकि भाषाओं का, साहित्य का और विचारों का व्यापक संचार हो सके। आज की पीढ़ी अपनी लोक-परम्पराओं से विमुख अथवा दूर होती जा रही हैं, ऐसे में लोकसंस्कृति के संरक्षण-संवर्धन के लिए भी लोकभाषाओं को बचाना हमारा दायित्व बन जाता है।