अनुष्का शर्मा के अतिरेक का कचरा / जयप्रकाश चौकसे

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अनुष्का शर्मा के अतिरेक का कचरा
प्रकाशन तिथि : 19 जून 2018


ताज़ी घटना इस तरह है कि एक महंगी आयात की गई कार की खिड़की से कुछ कचरा सड़क पर फेंका गया और इस कार का पीछा करते हुए दूसरी कार ने इस कार के आगे निकलकर उसे रुकने पर बाध्य किया। दूसरी कार से अनुष्का शर्मा उतरीं और उन्होंने कचरा फेंकने वाले की अच्छी खासी खबर ली। उसे खूब खरी-खोटी सुनाई और इस कदर लताड़ा मानो उसने अपनी कार से कचरा नहीं वरन् अणुबम फेंक दिया हो। कचरा फेंकने वाले ने क्षमा याचना करते हुए कचरा उठाकर डस्ट बिन में डाला परंतु अनुष्का शर्मा के सुंदर मुख से शब्दों का जलप्रपात कुछ ऐसा जारी रहा कि नियाग्रा के समकक्ष जा पहुंचा। विराट कोहली ने अनुष्का को शांत किया। इस घटना से उभरकर आता है कि चिंतनीय पहलू यह है कि अतिरेक को संयत नहीं कर पाते। एक व्यक्ति अपनी भूल पर क्षमा याचना कर चुका है परंतु उस पर शब्दों के हंटर मारे जा रहे हैं। यह अतिरेक ही सारे 'नेक इरादों और साफ नीयत' का खोखलापन उजागर कर देता है।

अनुष्का शर्मा ने 'एन.एच. टेन' नामक फिल्म बनाई थी, जिसके अंतिम हिस्से में एक महिला सहायता के लिए द्वार खटखटा रही थी परंतु पूरी बस्ती तो उस समय नौटंकी देख रही थी, जिसमें रामायण का कोई प्रसंग प्रस्तुत किया जा रहा था। दृश्य का प्रतीक प्रभावोत्पादक है कि पिछड़ते हुए देश में अवाम मायथोलॉजी में आकंठ डूबी हुई है। हमारी मायथोलॉजी ही आधुनिकता के लिए एक कभी नहीं खुलने वाला लौहकपाट बन चुकी है। आधुनिकता का अर्थ है तर्कसंगत विचार और आचरण, न कि महिला द्वारा पहनी ऊंची एड़ी की सैन्डल या होठों पर लगाया गया लिपस्टिक, भले ही आप बुरका पहने हों।

इसी अतिरेक की बीमारी से ग्रस्त कुछ लोगों ने उत्तर प्रदेश में युवकों की हत्या इस शंका के कारण की कि वे गोमांस ले जा रहे थे। परीक्षण के बाद पाया गया कि वह गोमांस नहीं था। गिरीश कर्नाड द्वारा प्रस्तुत नाटक 'हयवदन' में एक महिला से एक पहलवान और एक कवि को प्रेम हो गया है। एक निर्जन स्थान पर भूले-बिसरे उजाड़ मंदिर में निद्रा में लीन देवी के मंदिर परिसर में दोनों प्रेमी युद्ध करते हुए एक-दूसरे का सिर धड़ से अलग कर देते हैं। महिला देवी से प्रार्थना करती है कि दोनों को प्राण देने की कृपा करें। जगाई गई देवी कहती हैं कि कटे हुए सिर धड़ पर रख दो, वे दोनों प्राणवान हो जाएंगे। देवी पुन: निद्रा में चली जाती हैं। पति में संपूर्णता की चाह से संचालित चतुर नार पहलवान का सिर कवि के धड़ पर और कवि का सिर पहलवान के धड़ पर इस मोह में रख देती है कि अब उसे कवि-सा संवेदनशील और पहलवान-सा बलिष्ट पति मिलेगा। कवि का सिर और पहलवान का शरीर पाया व्यक्ति कविताएं लिखते हुए कसरत करना बंद कर देता है। इसी तरह पहलवान का सिर व कवि की तरह कमजोर काया प्राप्त व्यक्ति कसरत करने लगता है। कालांतर में उस स्त्री की संपूर्णता की चाह भंग हो जाती है। आज भी हम इसी तरह शासित हो रहे हैं। सरकारी विज्ञापन कहते हैं कि भारत अग्रणी देश बन चुका है परंतु महंगाई अपने शिखर पर पहुंच गई है और जीडीपी दर निचले पायदान पर लट्‌टू-सी घूमते हुए स्थिर नज़र आती है। अनुष्का शर्मा की तरह अतिरेक के शिकार अनगिनत लोग हो गए हैं। उनके द्वारा निर्माण की गई दूसरी फिल्म 'फिल्लौरी' भी इसी भ्रमित विचार प्रक्रिया का प्रमाण है। एक दूल्हा विवाह के समय नहीं पहुंच पाया। इस देरी के लिए फिल्म में जबरन जलियांवाला बाग की मानवीय त्रासद घटना को जोड़ दिया गया है। जलियांवाला बाग एक अलग स्वतंत्र फिल्म का विषय है और 'फिल्लौरी' में यह भी दिखाया जा सकता था कि दूल्हा सड़क दुर्घटना में घायल व्यक्ति को अस्पताल ले जाता है, वहां रक्तदान करता है। इस तरह 'फिल्लौरी' को बनाया जा सकता था। संभवत: वह सफल भी होती।

बहरहाल, अनुष्का शर्मा का 'नेक इरादा और नीयत' का खामियाजा उस व्यक्ति ने भुगता जो अपनी भूल पर क्षमा मांग चुका था। अब अनुष्का शर्मा को कौन बताए कि दिशा-निर्देश के लिए दानव, मानव व देवता पहुंचे थे और उनकी प्रार्थना के उत्तर में तीन बार 'धा' की ध्वनि हुई। दानव ने सोचा कि संकेत है कि वे दमन करें, देवताओं ने सोचा कि वे धर्म का पालन करें और मनुष्य के लिए संकेत था कि वह केवल दया करें। अब क्या महान कवि टीएस एलियट पुन: जन्म लेकर भारतवासियों को 'दया' की महानता का सबक सिखाएं?