अन्तिम बातचीत / रघुनन्दन त्रिवेदी
"ख, मैंने तुम्हारी एक तस्वीर बनाई है । इसे देखकर तुम चकित हो जाओगे । इस तस्वीर में तुम इतने प्यारे लगतेहो कि बस्स ! तुम्हारे चेहरे में जो खामियाँ हैं, उन सबको हटा दिया है मैंने इस तस्वीर में ।"
"क, मैंने भी तुम्हारी एक तस्वीर बनाई है और मैं दावे से कहता हूँ, इस तस्वीर में तुम जितने ख़ूबसूरत दिखाई देते हो, उतने ख़ूबसूरत, वास्तव में तुम कभी नज़र नहीं आए ।"
"क्या सचमुच ? वाकई तुमने भी मेरी तस्वीर बनाई है ! लेकिन तुम तो तस्वीर बनाना जानते ही नहीं । यह काम तो मेरा है ।" --'क' ने कहा ।
"नहीं, मैंने जो तस्वीर बनाई है तुम्हारी, वह कागज़ पर नहीं, मेरे मन में है ।"
"ख़ैर, दिखाओ ।"
"नहीं, पहले तुम ।"
"ठीक है । यह देखो । लगते हो न हम सबकी तरह ।"
"लेकिन मेरी दाढ़ी ?"
"दोस्त, यही तो वह चीज़ है, जिसके कारण तुम अजीब और किसी हद तक क्रूर दिखाई देते हो, इसलिए मैंने इसे हटा दिया ।"
"पर मैंने तो तुम्हारे जिस चेहरे की कल्पना की है, उसमें तुम भी दाढ़ी वाले ही हो" --'ख' ने खिन्न होकर कहा ।
इस बातचीत के बाद 'क' और 'ख' कभी दोस्तों की तरह नहीं मिल सके ।