अन्धभक्त बण्यां च हम / बलबीर राणा "भैजी"
गढवाली कविता
अन्धभक्त बण्यां च हम ।
अंधबिश्वास मा रम्यां च हम ।
भै भ्राता तें बैरि समझणा च हम ।
ये कारण भी,
बिकाश का दौड मा पिछड्ना च हम ।
अन्धभक्त बण्यां च हम ।
सैरू जिवन दोष लग्यूँ चा,
जिन्दगी भर बलि पे बलि देणा चा हम,
निर्दोष जीव तें मारि के,
अपणा अहम की पूर्ति कना च हम ।
अन्धभक्त बण्यां च हम ।
ढोंगी बामणू की गणना का जाल मा,
बक्या पुच्छायारों की चाल मा,
छाला, मशाण पे मशाण,
पूजणा लग्यां च हम ।
अन्धभक्त बण्यां च हम ।
ब्वारी की खुटी मुडी,
कैन घात, जैकार डाली।
रात नौन्याल बिबलाणु,
कैकी नजर लगी ।
इन नजर पे नजर उत्तारदन हम ।
अन्धभक्त बण्यां च हम ।
सासू ब्वारी मा झगडा,
बेटा नौकरी नी लगणु, बेटी की मंगणी नी होन्दी,
कैन देवता बिगाडी कैन पठ्य्याई,
इन भ्रांति पाल्यां चा हम ।
अन्धभक्त बण्यां च हम ।
भैंस दूध नी देणु,
गोरू लतेड और बल्दा मरखु ह्वेगे,
अभागी रांड कु सुबेर मुख दिखीगे,
रीता भांडु बाटा मा मिलीगे,
ना जाण कतगा मिथ्या मानसिकता पल्यां च हम
अन्धभक्त बण्यां च हम ।
ये कारण भी बिकाश का दौड मा पिछड्ना चा हम