अन्याय / सुधा भार्गव
धोबी को देख बूढ़ी मालकिन अपने पर काबू न रख सकी और झुँझलाते हुए बोली
-यह धोबी चाहे जब आन टपकता है। इससे कहो सुबह 10-11बजे के बीच में आया करे ।
-सुना धोबी काका –सुनी माँ जी की बातें। मैंने कहा ।
-अरे यह ऊंचा सुनता है,न जाने कितनी बार मैं अपनी बात दोहरा चुकी हूँ।
-माई जी,सुन लिया। इस बार माफ कर दो।
अगले हफ्ते वे 1 बजे के करीब धुले कपड़े लेकर आन धमके। घर साफ करने वाली नौकरानी को गए मुश्किल से 10 मिनट ही हुए होंगे। उसे देखते ही माँ जी ज्वालामुखी की तरह फट पड़ीं –अभी घर में पानी और फिनायल से पोंछा लगा है। तूने आकर फिर गंदा कर दिया। कपड़े मेज पर रख दे और किनारे से निकल जा।
इसके बाद वे मुझसे बोलीं -बहू,जहां –तहां इसकी परछाईं पड़ी है वह जगह दुबारा धुलवा देना ।
धोबी काका के चेहरे पर व्यंग मिश्रित हँसी फैल गई। ऊंची आवाज में बोले –बहूरानी,मेज पर रखे कपड़ों पर भी पानी डलवा देना।