अन्या से अनन्या / प्रभा खेतान / समीक्षा

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बेबाक, वर्जनाहीन और उत्तेजक आत्मकथा
समीक्षा:मनोज कुमार

आगे बढ़ने के पहले इन दो शब्दों के अर्थ भी देखता चलूं। शब्द कोश के पन्ने पलटता हूं। ‘अन्य’ और ‘अनन्य’ तो मिलते हैं, ‘अन्या’ और ‘अनन्या’ नहीं। एक बार इसी तरह ‘कवयित्री’ शब्द खोजने चला था, नहीं मिला। कितना पुरुष मानसिकता वाला है हमारा समाज, न सिर्फ़ शब्द कोश को देखते वक़्त बल्कि इस आत्मकथा को पढ़ते वक़्त भी यह अहसास होता है मुझे। इस साहित्यिक पुस्तक को जब मैंने पढ़ना शुरु किया तो पूरा पढ़के ही छोड़ा। आप भी देखिएगा किताब एक बार बांधती है, तो पूरा पढ़ाके छोड़ती है। .. और खूबी यह है कि यह पहली पंक्ति से ही बांध लेती है। इसका एक विशेष कारण भी है। इस आत्मकथा की शैली में नवीन प्रयोग है – उपन्यास की तरह बातचीत (संवादात्मक) शैली है, जिसके कारण इसमें जबर्दस्त रोचकता है। इस पुस्तक के उन्हीं अंशों को, टुकड़ों और संवादों को आपके सामने रखता जाऊंगा, कोई समीक्षात्मक टिप्पणी नहीं करूंगा। आज मेरा काम सिर्फ़ इस पुस्तक से आपका परिचय कराना है।

हां, तो मैं बात कर रहा था इन दो शब्दों के अर्थ का... शब्द कोश में पुरुष रूप में जो अर्थ हैं, उन्हीं से अर्थ लेता हूं – अर्थ संभवतः आप जानते तो होंगे ही, लेकिन इसे लिखे बिना आगे बढ़ना उचित प्रतीत नहीं होता क्योंकि पूरी कथा इसके ही आस पास है।

अन्या – मतलब – कोई दूसरी, भिन्न।

अनन्या – मतलब – अन्य से सम्बन्ध न रखने वाली, एक ही में लीन, एकनिष्ठ।

“प्रेम का विकल्प तर्क-वितर्क नहीं, कि प्रेम और घृणा, स्वतंत्रता और गुलामी, झूठ और सच, जीवन और मृत्यु ... कुछ ऐसे स्थायी द्वित्व हैं, जिनके बीच कहीं कोई स्पेस नहीं, कोई तीसरा विकल्प है ही नहीं। इसी द्वित्व में से किसी एक का चुनाव करना होगा।”

इस पुस्तक का मूल स्वर स्त्रीवादी है। इसमें इसकी लेखिका प्रभा खेतान का अन्तरद्वन्द्व, और जीवन की अन्तरयात्रा निहित है। लेखिका जब साठ की हो गई हैं, तब इसे लिखना उन्होंने शुरु किया और इसके शुरु में ही कहती हैं,

“मेरे लिए सती का अर्थ था, पति की एकनिष्ठ भक्ति, सूचना समर्पण, किसी पराए मर्द की ओर आंख उठाकर भी नहीं देखना। आज मेरे भीतर बची स्त्री को प्रणाम।”

अपने जीवन के स्पन्दन को व्यक्त किया है उन्होंने। जीवन का एक एक कतरा खोल कर रख दिया है, पूरी भावुकता से, निष्पक्ष होकर, लेकिन पूरी निष्ठा से। भावुकता में कदम भले लड़खड़ाते हों लेकिन सम्भलते ही कहती हैं

“औरत के लिए अजीबो-ग़रीब है दुनिया।”

प्रभा खेतान का प्रेम अवैध भी था, तो अंतरंग था और क्षुद्र नहीं उदात्त था। परिवार कथा में प्रभा का नाम हो, न हो, प्रभा को प्रेमिका ही कहा जाएगा रखैल नहीं।