अपदस्थ शिक्षक, पथभ्रष्ट शिक्षा, अलस्त सरकार / जयप्रकाश चौकसे

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अपदस्थ शिक्षक, पथभ्रष्ट शिक्षा, अलस्त सरकार
प्रकाशन तिथि :05 सितम्बर 2015


बाजार के इस दौर में पूंजी निवेश के विशेषज्ञों का महत्व और मेहनताना बढ़ गया है। उनके मुताबिक राजनीति के बाद सर्वाधिक लाभ शिक्षा व्यवसाय में है और लगभग इसके समान ही प्राइवेट अस्पताल का कारोबार है। शिक्षा संस्थाओं और अस्पतालों के लाभ मोह के कारण देश विविध व्याधियां भोग रहा है और ये दोनों आपस में ऐसे जुड़े हैं कि कुछ शिक्षा संस्थाएं ऊंचे दाम पर छात्र का मेडिकल कॉलेज में दाखिला पक्का कर देती हैं और यह व्यापमं घोटाले से अलग खेल है। व्यापमं घोटाले की जांच हजार वर्ष भी चले तो भी अपराधी पकड़ मंे नहीं आ सकते, क्योंकि 'सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का।' यह किसे मालूम था कि लखनऊ की किसी जमाने की टुविन रिकॉर्ड कंपनी के तमाम 'सिपहिया गीत' कभी यथार्य स्वरूप ले लेंगे।

आजकल अनेक शिक्षा संस्थाएं मोटी फीस लेकर छात्र को सौ प्रतिशत हाजिरी का प्रमाण-पत्र देकर परीक्षा देने की पात्रता देती हैं और छात्र को ताकीद है कि वह कभी पाठशाला नहीं आएगा। वह छात्र महंगे दाम वाली कोचिंग क्लास में परीक्षा में प्रवीण होने के गुर सीखता है। अब शिक्षा में ज्ञान खारिज किया जा चुका है। पता चला है कि कुकुरमुत्ते की तरह उगे कोचिंग क्लास के शोध विभाग प्रतिभाशाली छात्रों के माता-पिता को उनके बच्चे को मुफ्त पढ़ाने का प्रस्ताव देते हैं। यह मंजूर न हो तो परीक्षाफल आने के बाद उस छात्र का फोटो और वह उनके संस्थान में पढ़कर मेरिट में आया है, ऐसा पत्र देने पर छात्र के पालकों को बीस लाख रु. तक देने को तैयार होते हैं। विज्ञापन में जो आप तस्वीरें देखते हैं, उनमें से कुछ छात्र वहां पढ़े ही नहीं होते।

शिक्षा संस्थान के घपलों की सुरंग में किसी भी शहर से प्रवेश करें, अंत में आप राजधानी दिल्ली ही पहुंचेंगे- वहीं सब घपलों का जन्म होता है। अधिकांश शिक्षा संस्थान शृंखलाओं के मालिक नेता ही हैं। आजकल परीक्षा में उत्तीर्ण होने का कीमिया सिखाने वाले असंख्य गुरु हैं। सरकारी आंकड़ों में देश शिक्षित हो रहा है! आप अपने चुने जाने लायक ही छात्र बना रहे हैं। अनेक महान संस्थाएं समाप्त कर दी गई हैं और दोष केवल नेता और भ्रष्ट व्यवस्था का ही नहीं है हम सब इसमें चाहे-अनचाहे शामिल हैं। आज संगमरमर और ग्रेनाइट से सजे भवन हैं, कम्प्यूटर से लैस संस्थाएं हैं परंतु योग्य शिक्षकों का अभाव है। स्थिति का हाल इससे पता चलता है कि कई प्रदेशों में दहेज के रेटकार्ड में कलेक्टर, इंजीनियर, डॉक्टर, उच्च पुलिस पद इत्यादि का भाव ऊंचा है, परंतु इस दहेज सूची में शिक्षक के लिए न्यूनतम दहेज है या किसी प्रौढ़ विधवा से विवाह का प्रावधान है। गांवों में सुबह महिलाओं का हुजूम निर्जन स्थान पर लोटा उठाए जाता है। गांव के मुखिया के गुजरने पर महिलाएं दैनिक क्रिया अधूरी छोड़ सम्मान से खड़ी हो जाती हैं परंतु शिक्षक के आने की सूचना पर यथावत बैठी रहती हैं। सामाजिक व्यवहार के ये सूक्ष्म संकेत पूरे सत्य का संकेत देते हैं। गुरु द्रोणाचार्य राजवंश के 105 छात्रों के साथ जंगल गए जहां छात्रों के परिश्रम से शिक्षा के लिए आश्रम बनाया गया और बारह वर्ष बाद कार्य होने पर द्रोणाचार्य ने दुर्योधन से कहा कि आश्रम में आग लगा दो।

उसके इनकार के बाद युधिष्ठिर ने गुरु के आदेश पर आग लगा दी! द्रोणाचार्य ने कहा कि यह उनका आखिरी पाठ था। संपत्ति का मोह खत्म न हो तो शिक्षा बेअसर होती है। लाभ-लोभ से मुक्ति ही शिक्षा का ध्येय है और आज भारत की सारी शिक्षा संस्थाएं लाभ कमाने के उद्‌देश्य से चलाई जा रही हैं। इस जर्जर व्यवस्था के बावजूद अनेक छात्र अपनी प्रतिभा से कमाल करते हैं और इन छात्रों की पहली पाठशाला मजबूत होने के कारण ही यह संभव होता है। छात्र का पहला स्कूल घर-परिवार है और शिक्षा संस्था घर से दूर घर होनी चाहिए परंतु नैतिक मूल्यों के अभाव से अनेक परिवार और संस्थाएं ग्रस्त हैं। प्रतिभा जन्मना कम ही होती है, यह अनुशासन और उच्च जीवन मूल्यों द्वारा रची जाती है। इजरायल के शिक्षाविद डेविड की सलाह पर अमेरिका में साहित्य, इतिहास व दर्शन विभाग के बजट घटाए गए और गणित तथा व्यापार प्रबंधन के बढ़ाए गए तथा हमारे यहां इसी की नकल की गई। हम पहले नैतिक आधार वाला पाठ्यक्रम रचें, शिक्षक नामक मृत प्राय: संस्था का पुनरोद्धार करें और तब डॉ. राधाकृष्णन को आदरांजलि देकर शिक्षक दिवस मनाएं।