अपनापन / मनोज चौहान
सुसंस्कृत माता–पिता की देख-रेख में पला-बढ़ा संजय शुरू से ही होनहार, कुशाग्र बुधि और शालीन व दयालु स्वभाव का था l उसके पिता जी स्कूल में शिक्षक थे l महज 22 बर्ष की उम्र में ही उसे जे.बी.टी अध्यापक की नौकरी के लिए नियुक्ति पत्र मिला l दूर पहाड़ी इलाके के प्राथमिक स्कूल में उसकी पहली पोस्टिंग हुई l घर से निकलते हुए माता–पिता ने समझाया कि बेटा हर बुराई से दूर रहना और अपनी सेहत का ख्याल रखना l
नौकरी ज्वाइन करने के पश्चात ही वह उदास-सा रहने लगा था l घर से दूर उस अनजान इलाके में उसका मन नहीं लग रहा था l रह-2 कर उसे घर की याद सताने लगती थी l दिन भर तो स्कूल में बच्चों को पढ़ाते हुए समय कट जाता था मगर रात को तो कई बार वह बिना खाना खाए ही सो जाता था l जैसे–तैसे 2 महीने बीत गए l एक दिन वह विद्यालय के किसी काम से बाहर गया था l जैसे ही वह विद्यालय में लौटा तो प्रांगण में खेल रहे बच्चों में हडकंप मचा हुआ था l उसने आगे जाकर देखा तो 10 साल के सोनू को खेलती बार कंधे पर चोट लग गई थी l उसे तुरंत ही अस्पताल ले जाना आवश्यक था l नई–2 नौकरी होने के कारण संजय के पास इतने पैसे भी नहीं थे, मगर उसने तुरंत ही पास के दुकानदार से उधार लेकर किराये की गाड़ी में सोनू को अस्पताल पहुंचा दिया l
डॉक्टर जब ऑपरेशन थिएटर के अन्दर सोनू को ले गए तो उसकी दर्दनाक चीखों से बाहर खड़े संजय का कलेजा जैसे बाहर आने को हुआ जाता था l करीब 2 घंटे तक चले उपचार के दौरान उसका मन भीतर ही भीतर बहुत रोया l इतने में सोनू के माता–पिता भी सूचना मिलते ही अस्पताल पहुँच गए थे l सारा माजरा जान लेने के पश्चात सोनू की माँ भावुक हो उठी l वह नम आँखों से संजय का धन्यवाद करते हुई बोली बेटा तुम सिर्फ़ एक अच्छे अध्यापक ही नहीं बल्कि एक बेहतर इंसान भी हो l जिस तरह से सोनू मेरा बेटा है, तुम भी आज से मेरे बेटे हो l यह सुनकर संजय का मन भर आया l उस अनजान इलाके में इतने अपनेपन का अहसास पाकर उसका मन प्रफुलित था l धीरे-2 सोनू भी स्वस्थ होकर स्कूल आने लगा l उसकी माँ उसके हाथों कभी–कभार संजय के लिए स्थानीय व्यंजन पकाकर भेज देती थी l तीज-त्योहारों और विवाह–शादी पर भी संजय के लिए विशेष आमंत्रण आ जाता था l उसे अब वहाँ पर सबकुछ घर की तरह ही लग रहा था l माता–पिता के दिए नेक संस्कारों के परिणामस्वरूप उस सुदूर इलाके में अब उसके दिन अच्छे से बीतने लगे थे