अपना-अपना आचरण! / ओशो

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प्रवचनमाला

स्मरण रहे कि तुम्हारे पास क्या है, उससे नहीं- वरन तुम क्या हो, उससे ही तुम्हारी पहचान है। वही, तुम्हारी संपदा है, वह सब सम्भाल लेता है।

एक अंधे फकीर की कहानी है, जो कि राजपथ के मध्य खड़ा था और देश के राजा की सवारी निकल रही थी। सबसे पहले वे सैनिक आए, जो कि आगे के मार्ग को निर्विघ्न कर रहे थे।

उन्होंने उस बूढ़े को धक्का दिया और कहा, मूर्ख मार्ग से हट। अंधे! दिखता नहीं कि राजा की सवारी आ रही है। वह बूढ़ा हंसा और बोला, इसी कारण! लेकिन वह उसी जगह खड़ा रहा।

और, तब घुड़सवार सैनिक आए उन्होंने कहा, मार्ग से हट जाओ, सवारी आ रही है।

वह बूढ़ा वहीं खड़ा रहा और बोला, इसी कारण! फिर राजा के मंत्री आए।

उन्होंने उस फकीर से कुछ भी नहीं कहा और वे उसे बचाकर अपने घोड़ों को ले गए। वह फकीर पुन: बोला, इसी कारण!

और, तब राजा की सवारी आयी। वह नीचे उतरा और उसने उस बूढ़े के पैर छूये। वह फकीर हंसने लगा और बोला, क्या राजा आ गया? इसी कारण! फिर सवारी निकल गई।

लेकिन, जिन लोगों ने उस बूढ़े फकीर का हंसना और बार-बार 'इसी कारण' कहना सुना था, उन्होंने उससे उसका कारण पूछा। वह बोला, जो जो है, वह अपने आचरण के कारण वैसा है।


मैं क्या सोचता हूं, क्या बोलता हूं, क्या करता हूं- उस सब में 'मैं' प्रगट होता हूं। स्वयं के इन प्रकाशनों को जो सतत देखता और निरीक्षण करता है, वह क्रमश: ऊपर से ऊपर उठता जाता है। क्योंकि, कौन है, जो कि जानकर भी नीचे रहना चाहता है?

(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)