अपना-अपना घोषणा-पत्र / सुशील यादव
घोषणा-पत्र जारी करने का दबाव मुझ पर भी कम नहीं था|
भले ही मैं स्वतंत्र उम्मीदवार हूँ, मगर जनता तो पूछ ही लेगी घोषणा–पत्र कहाँ है?
लोग तो बिना किसी घोषणा-पत्र के सदन में जाने नहीं देंगे?
मेरी कांस्टीट्युंसी में, चिड़ीमार, बटेरबाज, उठाईगीर, कबाडिये, सुपारी-किलर बहुतायत से भरे पड़े हैं| इन्हीं के मद्दे-नजर बहुत खोजबीन करके इत्मीनान से मैंने घोषणा –पत्र तैयार किया है| प्वाइंट वाइज आप भी गौर फरमाएं;
जनता को एक रुपये में मिलने वाला अनाज बंद:
आप पूछेंगे क्यों?
भाई साहब, देखिये रूपये किलो अनाज पाकर लोग निक्कम्मे हो गए हैं| खेतों में काम के वास्ते मजदूरों का अकाल पड गया है| दूसरी जगह के मजदूर आ-आ कर झुग्गीयाँ तानने लगे हैं| कल मतदाता बनेगे| बेजा कब्जे की जमीन में हक़ जतायेंगे| रुपया किलो का खाना मिले तो मजदूरी से कमाई गई आमदनी ‘पीने’ में खप जाती है|
”पीने से लीवर खराब होता है” का किस्सा अस्सी की दशक के फ़िल्म में, लम्बू जी ने बखूबी बयान किया है| ”पीने के बाद के साइड इफेक्ट”, मसलन चोरी, डकैती रेप-शेप के मामलों में कमी आ जायेगी| थानेदारों को बेवडों के बीच बीजी रहना नहीं पड़ेगा| वे आराम से मंत्री जी की, संत्री ड्यूटी निभा सकते हैं?
स्कूल में मध्यान –भोजन निरस्त :
आप पूछेगे ऐसा क्यों?
देखिये, हम मास्टर जी की छड़ी खा-खा के पढ़े हैं| न घर में, न स्कूल में, कहाँ मिलता था खाने को?फिर भी पढ़ लिए| अच्छे से पढ़ लिए| गिनती, पहाड़ा, अद्धा-पौना, इमला, ब्याज, महाजनी, लाभ-हानि सब कुछ पांचवी क्लास तक सीखा देते थे बिना मध्यान वाले स्कूलों के मास्टर जी|
बिना केलकुलेटर -कम्पूटर के, दिमाग चाचा चौधरी माफिक फास्ट चलता था|
आज मध्यान भोज खाने वालों को ‘अध्धा-पौना’ की पूछो तो नानी की नानी याद आ जावे|
हाँ ये जरुर है कि स्कुल से निकलते ही इन्हें क्वाटर, पाव –अध्धा की फिकर सताने लगती है|
सरकार ने सुविधा के लिए स्कूलों –मंदिरों के नजदीक बहुत से ‘रुग्णालय’ खोल रखे हैं|
खडूस मतदाताओं ! आपकी सुविधा के लिए हमारी योजना है कि हम ट्रांसपोर्ट-आवागमन को मुफ्त कर दें| सरकारी खजाने में सब्सीडी के बतौर पैसा ही पैसा है| सरकारे लुटाती हैं| आप एक जगह से दूसरी जगह जाने में कार –मोटर सायकल में बेजा पेट्रोल फूंक रहे हैं| भारी कीमतें देकर बाहर से इन्हें मंगवाना पड़ता है| शहर में न कारें चलेंगी न स्कूटर-मोटर-सायकल, इंधन की भारी बचत| ट्रेफिक समस्या का तुरंत निजात|
पूंजी-पति मतदाताओं, आपसे कुछ कहना बेकार है| आप किसी की नहीं सुनते| अपना कैंडिडेट आप छुपे तौर पे खड़े किये रहते हो| पैसा फेकते हो, तमाशा देखते हो| जीते तो वाह-वाह, नहीं तो जो जीता वही सिकंदर| चढावा- चढाने का नया सेंटर चालू हो जाता है| आपकी जिद के आड़े मै आउंगा, बता दिए रहता हूँ?ताकत लगा देना मुझे हारने में ....नहीं तो .....|
खैर| अनाप-शनाप कहने पर, आयोग मुझे धर लेगा, खुल्लम-खुल्ला क्या बोलूं?
गरीब मतदाताओं| घबराने का नइ....? बिकने का नइ .....डरने का नइ.....पी के बहकने का नइ......|
जब होश में रहने का टाइम आता है, तो तुम सब बे-होश होने का नाटक क्यों करते हो?
किसी के खरीदे गुलाम क्यों हो जाते हो?
कहाँ मर जाती है तुम्हारी अंतरात्मा?
कहाँ बिक जाता है तुम्हारा ईमान?
एक दिन के पीने का इन्तिजाम, एक कंबल या एक साडी, हजार-पांच सौ के नोट....
बस यहीं तक है तुम्हारा प्रजातंत्र?
धिक्कार है तुम्हे और तुम्हारे ईमान को?
मै पसीने से लथ-पथ, अपने बिस्तर में, सोते से जाग जाता हूँ?
आस-पास बिखरे कागजों में ढूढता हूँ, कहीं सचमुच मैंने कोई घोषणा पत्र जारी तो नही किया?