अपना-अपना जीवन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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बैल को खूँटे पर बँधा हुआ देखकर तोता हँसा-“भाई तुम्हारे तो ठाठ हैं। दिन भर हल खींचना पड़ता है। किसान के डण्डे भी खाने पड़ते हैं ।तब जाकर तुम्हें चारा मिलता है।दिन की चिलचिलाती धूप भी तुम्हें अपनी पीठ पर झेलनी पड़ती है ।”

बैल चारा खाते-खाते रुका-“तुम्हारी तरह दिन भर चार दानों के लिए मीलों-मील मारामारी तो नहीं करनी पड़ती। घर लौटने पर इतना तो तय रहता है कि पेट भरने के लिए पूरा चारा मिल जाएगा। फिर जो चारा खिलाएगा, वह काम तो लेगा ही। बिना काम किये खाना भी ठीक नहीं है। तुम कोई काम नहीं करते। चुपके से किसी के मक्का के खेत में घुस जाते हो। किसी के बाग में चोरी-छिपे जाकर फल कुतरने लगते हो।”

“इस तरह खाने का अपना ही आनन्द है। तरह-तरह के बढ़िया फल खाने को मिल जाते हैं। अच्छे फल ढूँढ़ने के लिए भी तो कर्म करना पड़ता है। हमें जो आज़ादी मिली हुई है, उसका तो मज़ा ही कुछ अलग है। हम अपनी मर्ज़ी के मालिक हैं। तुम अपनी मर्ज़ी से कहीं भी नहीं जा सकते। अपनी मर्ज़ी का खा भी नहीं सकते। तुम्हारे मालिक जो चने की बढ़िया दाल खाते हैं, हम उनके आँगन में जाकर कुछ दाने उसमें से खा लेते हैं। तुम्हारे आँगन में इस आम पर हर साल बढ़िया आम लगते हैं। तुमने कभी चखे भी नहीं होंगे। हमें देखिए-पके हुए आमों का आनन्द हम सबसे पहले उठाते हैं। तुम्हारे मालिक से भी पहले”-तोते ने आँखें मटकाकर कहा।

बैल कहाँ चुप रहने वाला था। वह अपने थूथन को हिलाकर बोला-“ठण्ड और बारिश में मुझे अलग कोठरी में बाँध देते हैं। तुम्हें तो ठण्ड, बारिश और ओलों की मार झेलनी पड़ती है।”

“अरे भाई! हम भी किसी मकान के कोने में जाकर दुबक जाते हैं। हमारा भी समय कट जाता है। दिक्कत तो सभी के साथ है। हमें शिकारी मार गिराते हैं। चिड़ीमार पकड़ कर पिंजरे में बंद कर लेते हैं। बाज भी झपट्टा मार कर हमें मार देता है। आज़ादी मिली है तो उसकी कुछ कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी। आनन्द और आज़ादी कोई मुफ्त में थोड़े ही मिलते हैं?” तोते ने अपनी बात को महत्त्व देते हुए कहा-“खुली हवा में साँस लेने का आनन्द ही कुछ और है।”

“तुम सही कहते हो”-बैल ने सिर हिलाकर कहा-“परन्तु मेरा जीवन केवल मेरे लिए नहीं है। मैं जिस फसल को उगाने में मदद करता हूँ, उससे पूरे परिवार का पालन -पोषण होता है। मेरा मालिक मुझे चारा खिलाने के बाद ही खाना खाता है। वह सुबह उठकर मुझे पहले चारा खिलाता है ;तब खुद कुछ खाता है। मेरा जीवन तुम्हारी तरह आज़ाद भले ही न हो, परन्तु एकदम निरर्थक भी नहीं है।”

तोते को बैल की बात सही लगी। वह बोला-“हम दोनों ही अपनी-अपनी जगह सही हैं। कुदरत ने हमारा जीवन जैसा बनाया है, हमें वैसा ही जीवन जीना है । अच्छा चलता हूँ”- कहकर तोता फुर्र से उड़ गया। बैल बहुत देर तक सिर उठाए आकाश की तरफ देखता रह गया।

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