अपना अपना मोल / मनोहर चमोली 'मनु'

Gadya Kosh से
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एक गाँव में आम का विशालकाय आम पेड़ था। उस पेड़ में बड़े ही रसीले आम लगते थे। लेकिन बच्चे थे कि आम को पकने से पहले ही तोड़ कर खा लेते थे। बेचारा पेड़ मन मसोस कर रह जाता। बच्चे आए दिन पेड़ की शाखों पर चढ़ते और कच्ची अमियां खाने के चक्कर में कई कमजोर डालें तोड़ डालते। आम का पेड़ सोचता कि वे पेड़ अच्छे हैं जिन पर कोई फल नहीं लगते। कम से कम वे चैन से तो रहते हैं।

एक दिन की बात है। आम का पेड़ उदास था। हवा ने उससे पूछा,‘क्यों भाई। क्या बात है? लगता है काफी परेशान हो।’

पेड़ बोला, ‘हवा बहिन। क्या बताऊँ? काश। मैं भी तुम्हारी तरह चल-फिर सकता। यहां खड़े-खड़े तो मैं तंग आ गया हूं। अच्छा होता मैं दूर किसी घने जंगल में उगा होता।

हवा ने सुना तो हैरान हो गई मगर चुप रही। पेड़ ने कहा-‘‘आबादी के पास हम फलदार वृक्षों का खड़ा रहना ही बेकार है। मुझे देखो। मैंने अब तक अपनी काया में पके हुए फल तक नहीं देखे। ये इन्सानों के बच्चे फलों के पकने का भी इन्तजार नहीं करते। देखो न। गाँव के बच्चों ने मुझ पर चढ़-चढ़ कर मेरे अंगों का क्या हाल बना दिया है। कई टहनियों और पत्तों को तोड़ डाला है।’

हवा मुस्कराई। फिर पेड़ से बोली,‘पेड़ भाई। दूर के ढोल सुहावने होते हैं। जंगल में फलदार वृक्ष तो बहुत दुखी हैं। मुझे तो उनकी हालत पर तरस आता है।’

‘जंगल में फलदार वृक्ष बहुत दुखी हैं! हवा बहिन तुम मजाक तो नहीं कर रही?’ पेड़ ने चैंकते हुए पूछा।

‘और नहीं तो क्या। जंगल के फलदार पेड़ अपने ही शरीर के फलों से परेशान रहते हैं। पेड़ों में फल बड़ी संख्या में लगते हैं। वहां फलों को खाने वाला तो दूर तोड़ने वाला भी नहीं होता। पक्षी कितने फल खा पाते हैं। फल पेड़ पर ही पकते हैं। पेड़ बेचारे अपने ही फलों का वजन नहीं संभाल पाते। अक्सर फलों के बोझ से पेड़ों की कई टहनियां और शाख टूट जाती हैं। पके फलों का बोझ सहते-सहते पेड़ का सारा बदन दुखता रहता है। जब फल पक कर गिर जाते हैं, तभी जंगल के पेड़ों को राहत मिलती है। यही नहीं ढेर सारे पके हुए फल पेड़ के इर्द-गिर्द गिरकर सड़ते रहते हैं। पेड़ बेचारे अपने ही फलों की सड़ांध् में चुपचाप खड़े रहते हैं।’ हवा ने बताया।

‘अच्छा! बहिन। मैं ऐसे ही ठीक हूँ। मेरे फल इतने मीठे हैं, तभी तो बच्चे उनका पकने का इंतजार नहीं करते। अरे हां। याद आया। पतझड़ के मौसम में ये बच्चे तो मेरे पास भी फटकते नहीं हैं। उन दिनों मैं परेशान हो जाता हूँ। रही बात मेरी टहनियों और पत्तों की तो वसंत आते ही मेरे कोमल अंग उग आते हैं।’ आम के पेड़ ने हवा से कहा। हवा मुस्कराते हुए आगे बढ़ गई। पेड़ ने मन ही मन हवा का धन्यवाद दिया और खुशी से झूमने लगा।