अपना देश / दीपक मशाल

Gadya Kosh से
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जब से ब्रिटेन आया उसे अपने देश की हर बात नकली, झूठी और बेमानी लगती। यहाँ के साफ़ और चमकदार बाज़ार, गली, घर, कारें और बगीचों के अलावा यहाँ के लोगों की ईमानदारी, खान-पान, चिकित्सा-व्यवस्था, तनख्वाह हर बात की तो वो भारत से तुलना करने लगता और फिर स्वयं को बेहतर हालात में ही पाता।

जो घर उसने किराए पर ले रखा था उसमे टी।वी।, डीवीडी से लेकर माइक्रोवेव, वाशिंग मशीन सब मकान मालिक का दिया हुआ था वो तो सिर्फ उसमें आकर टिक गया था। सारे खर्चे का हिसाब लगाने पर पता चला कि जितना वह भारत में कमाता था उससे ६ गुना ज्यादा की तो हर महीने सीधी-सीधी बचत है। पहले महीने ही उसने एक नया लैपटॉप खरीद लिया।

एक दिन दोपहर को अचानक एक जाँच अधिकारी उसके घर आ धमका। घर में टी।वी।, डीवीडी, इंटरनेट कनेक्शन, लैपटॉप सब अपने साथ लाये एक फॉर्म में दर्ज कर लिये और अंततः उसे टी।वी। लाइसेंस ना लेने का दोषी बताया।

वह लाख रिरियाता रहा कि ना तो वह टी।वी। देखने का शौक़ीन है ना ही इंटरनेट पर लाइव समाचार ही सुनता है। पर अधिकारी को ना एक सुनना था ना उसने सुनी। एक हज़ार पाउंड का जुर्माना सुनकर आज उसे अपना देश सबसे प्यारा लग रहा था।