अपना सुल्लू / बलराम अग्रवाल

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पात्र परिचय :

सेल फोन / सुल्लू

मोनिका

औरत 1, औरत 2, औरत 3, औरत 4

लड़की 1, लड़की 2, लड़की 3, लड़की 4

लड़का 1, लड़का 2, लड़का 3, लड़का 4

[इस नाटक में मंच को तीन भागों में विभाजित रखा जाएगा और उसी के अनुरूप प्रकाश-व्यवस्था भी निश्चित की जाएगी। मंच के मध्य भाग में सेल फोन और मानसी होंगे। मध्य भाग को भी आगे और पीछे दो भागों में विभाजित रखा जाएगा। आगे के भाग में सेल फोन बैठा होगा; और पीछे के भाग में मानसी लेटी होगी जैसे वह सो रही हो। दर्शकों की ओर से, मंच के दायें भाग में कुछ औरतें, कुछ पुरुष बैठे होंगे।]

परदा खुलते ही प्रकाश का गोला सोयी हुई मानसी पर पड़ता है। उसी के साथ किसी के धीमे-धीमे रोने-सिसकने की आवाज सुनाई देती है। उस आवाज को सुनकर मानसी पहले लेटे-लेटे ही इधर-उधर देखने की कोशिश करती है, फिर उठकर बैठ जाती है और अचरज से इधर-उधर देखने लगती है…

मानसी : (अपने आप से) इस कमरे में मेरे अलावा तो कोई और रहता नहीं है, फिर यह रोने-सिसकने की आवाज़ कैसे आ रही है !!!

अपनी जगह पर बैठे-बैठे पहले आवाज़ की दिशा में कान लगाती है, फिर खड़ी होकर धीरे-धीरे उधर की ओर जाती है। प्रकाश का गोला उसके साथ-साथ ही चलाया जाता है। जैसे ही वह निकट पहुँचती है, प्रकाश का दूसरा गोला सेल फोन पर पड़ता है।

मानसी : (सेल फोन को देखकर अपने आप से) मेरा सेल फोन रो रहा है ! लेकिन क्यों ? (निकट पहुँचकर उसके कन्धे पर प्यारभरा हाथ रखती है) सुल्लू…तुम रो रहे हो ?

सेल फोन : (सुबकते हुए) हाँ।

मानसी : क्यों ?

सेल फोन : (दोनों बाँहों से बारी-बारी अपनी आँखें और दोनों हथेलियों से अपना चेहरा पोंछते हुए) जिधर भी जाता हूँ, सबको अपनी बुराई ही करता पाता हूँ।

मानसी : (उठाकर उसे अपने गले से लगाती है और सान्त्वना भरे स्वर में बोलती है) नहीं सुल्लू, तुम्हें गलतफहमी हुई है…तुम तो इतने काम के हो…तुम्हारी बुराई कोई क्यों करेगा भला ?

सेल फोन : (प्रतिवाद करते हुए) कोई गलतफहमी नहीं हुई है मुझे। तुम जब सोई रहती हो या पढ़ाई में लगी रहती हो, मैं तब भी जागता रहता हूँ और चौकन्ना रहता हूँ…

मानसी : सो तो मुझे पता है मेरे भाई। जागते नहीं रहोगे… और चौकन्ने नहीं रहोगे तो चौबीसों घंटे आने वाली सूचनाएँ कैसे इकट्ठी कर पाओगे?

सेल फोन : (सुबकते हुए) यकीन नहीं हो रहा है न मेरी बातों पर? तो लो, तुम्हें आज सुबह का ही किस्सा सुनाता हूँ…

वाक्य के अन्तिम हिस्से के साथ ही प्रकाश मंच के दायें हिस्से पर भी खुल जाता है। मानसी और सुल्लू फ्रीज़ होकर उधर का दृश्य देखते हैं—दर्शकों की ओर मुँह करके कुछ औरतें जमीन पर बैठी कोई काम कर रही हैं। कान पर सेल फोन लगाए, मौन रहकर बात करते हुए चलने का अभिनय करता एक लड़का ग्रीन रूम के बायें हिस्से से निकलकर दायें हिस्से की ओर बढ़ता है। मंच पर उसके द्वारा कुछ दूरी तय कर लेने के बाद, दूसरा लड़का ग्रीन रूम के दायें हिस्से से निकलकर बायें हिस्से की ओर बढ़ता है। औरतों के सामने पहुँचने पर दोनों आपस में टकराकर गिर जाते हैं और वैसे ही पड़े रहते हैं। औरतों का वार्तालाप शुरू —

औरत 1 : (गिर पड़े लड़कों की ओर हाथ उठाकर) मरा ये सेल फोन जान का जंजाल बन गया है…बच्चे इतने दीवाने हो चुके है इसके कि जब देखो, तब कान से चिपका मिलता है…

औरत 2 : बच्चे ही क्यों बहन, बड़े भी…

बातें करती हुई ये दोनों अपनी जगह से उठकर मंच पर आगे की ओर आ खड़ी होती हैं ताकि दर्शकों से उनका तादात्म्य बना रह सके।

औरत 1 : इतनी भी क्या लापरवाही……इन्हें पता ही चलता कि सामने समतल सड़क है, ऊबड़-खाबड़ जमीन है, गड्ढा है…… सामने से कोई कार-ट्रक तो नहीं आ रहा है…

औरत 2 : साइकिल और स्कूटर पर भी इनका यही हाल रहता है। एक फैशन यह भी चल पड़ा है कि फोन को कन्धे पर टिकाकर गरदन टेड़ी कर कान को उससे सटाए, बात करते हुए चलते रहेंगे। (कन्धे पर रखे सेल को गरदन से दबाकर स्कूटर चलाने और बातें करते जाने का अभिनय करती है) न पीछे से आने वाले की आवाज सुनेंगे, न सामने से आने वाले का ध्यान रखेंगे। मुझे तो कई बार ऐसा लगता है कि इनकी गरदन टेड़ी की टेड़ी न रह जाए किसी दिन।

इस बीच वहाँ पड़े दोनों लड़के अँधेरे में सरकते हुए ग्रीन रूम में चले जाते हैं।

औरत 1 : एक ये इंटरनेट और चालू हो गया है सेल फोन पर। काम-धाम छोड़कर, जब देखो तब कोई न कोई फिल्मी गाना…कभी-कभी तो पूरी फिल्म ही देखते मिल जाएँगे।

औरत 2 : बाजार से कोई सामान लेने भेजो तो दुकानदार को सामान का ऑर्डर देकर सेल फोन पर चैटिंग में व्यस्त हो जाएँगे। दुकानदार इनसे बाद में आने वालों को सामान तौलता रहेगा और ये वीडियो चैटिंग में खोए पीछे खड़े रहेंगे। कोई करता है तो करता रहे इन्तज़ार घर पर।

दोनों औरतें जहाँ खड़ी हैं, बातें करती हुई वहीं पर बैठ जाती हैं। दृश्य यहीं पर फ्रीज़ हो जाता है।

सुल्लू और मानसी का वार्तालाप शुरू —

सेल फोन : सुन लिये इनके ताने…? लापरवाही उन लड़कों की और बदनामी मिली इस सुल्लू को।

 मानसी :  बुरा मत मान सुल्लू…सब ऐसा थोड़े ही सोचते हैं…।

सेल फोन : सब ऐसा ही सोचते हैं। वो देखो…

पीछे बैठी रह गयी शेष औरतों की ओर इशारा करता है। दोनों आपस में बतियाने लगती हैं…

औरत 3 : शुरू-शुरू में, सेल फोन जब चले ही चले थे, इन्हें खरीदना और रखना शान-ओ-शौकत की बात मानी जाती थी। लेकिन अब तो ये बच्चे-बच्चे के हाथ में जा पहुँचा है और जरूरत की चीज बन गया है।

औरत 4 : जरूरत-फरूरत कुछ ना बहन…अफीम का गोला है, जिसके हाथ में आ गया समझ लो पागल हो गया वो।

बातें करती हुई ये दोनों भी अपनी जगह से उठकर मंच पर आगे की ओर आ खड़ी होती हैं ।

औरत 3 : कह तो ठीक रही हो, फिर भी…

औरत 4 : फिर भी विर भी कुछ ना…सही कह रही हूँ। इस नशे के इतने आदी हो चुके हैं लोग कि इसे कान से और आँख से दूर रख ही नहीं पाते हैं। इसके बिना दुनिया अधूरी है उनकी।

औरत 3 : देख, तू और मैं तो अध्यापिका हैं। अच्छी तरह समझती हैं कि जमाना खराब है। माँ-बाप को मजबूरी में सेल फोन दिलाना पड़ता है बच्चों को। समय-समय पर मालूम तो कर सकते हैं कि वक्त-बेवक्त बच्चा है कहाँ ? ठीक भी है या नहीं ? समय का क्या पता चलता है, स्कूल जाते-आते किसी मुसीबत में फँस जाए तो फोन करके बता तो सकता है घर पर।

औरत 4 : माँ-बाप तो उनके और अपने भले के लिए ही देते हैं…लेकिन ये खुद क्या करते हैं?

औरत 3 : क्या करते हैं ?

औरत 4 : इतनी भोली भी मत बन।

औरत 3 : सच में…बता न।

औरत 4 : भई, मेरे साथ तो यह बहुत होता है। तेरे साथ पता नहीं कभी हुआ है या नहीं…

औरत 3 : अब बता भी।

औरत 4 : मेरा तो माथा ठनक जाता है… अभी आप कक्षा में घुसी ही हैं कि किसी न किसी के बस्ते में रखा सेल फोन घनघना उठेगा। सच कहूँ, पढ़ाने का सारा मूड ही ऑफ हो जाता है। ऐसा मन करता है कि छीनकर एक-एक का सेल फोन कुचल डालूँ पैरों तले…

औरत 3 उसकी बातें सुनकर पल्लू मुँह में दबा धीमे-से हँसती है।

औरत 4 : आप हँस रही हैं और मेरा जी जल रहा है—एक से एक नई कारस्तानी करने वाले इन नौनिहालों की बातें याद करके। इतने चालू होते हैं ये बाइ-गॉड… कि एग्जाम के दिनों में, जितनी चाहे तलाशी ले लो…क्या मज़ाल कि एक पुर्जा भी आपको मिल जाए। और जैसे ही आपकी पीठ उनकी ओर फिरी, किसी न किसी का सेल फोन क्लिक की आवाज निकाल देगा। पूरे पेपर की फोटो खींचकर सेकिंडों में बाहर भेज देते हैं बन्दे। और सेकिंडों में ही उनका क्रमवार जवाब सेल फोन पर ही आ जाता है। क्या कमाल की चीज़ है भाई, पढ़ा लो बच्चों को…कर लो निगरानी। सही कह रही हूँ—मुझे तो घोर नफरत है इस निगोड़े से…

बातें करती हुई ये दोनों औरतें फ्रीज हुई औरत 1 व औरत 2 के निकट बैठ जाती हैं। सुल्लू और मानसी का वार्तालाप शुरू —

सेल फोन : सुन लिया ?

 मानसी :  सुन तो लिया।

सेल फोन : इनकी समझ में इतनी-सी बात नहीं आ रही है कि सेल फोन तो जिसके भी हाथ में हो, उसके हुक्म का गुलाम होता है…अलादीन के चिराग में रहने वाले जिन की तरह।

 मानसी :  कुसूर तो तेरा है सुल्लू !

सेल फोन : मेरा ? …कैसे ?

 मानसी :  वो ऐसे कि …कोई काम न हो तब भी तुझे जेब में डाले घूमना पड़ता है…इस उम्मीद में कि पता नहीं कब किसी की कोई कॉल आ जाए…कोई मैसेज पढ़ने को मिल जाए… किसी की कॉल आए न आए, किसी को कॉल करूँ न करूँ… बिना इस्तेमाल किए भी तेरे रखने का बिल भरना पड़ता है… (उसके गले से लिपटती है)  तू मेरी जरूरत बन गया है … मेरे लिए सुल्लू द ग्रेट है तू…सुल्लू महान् !

सेल फोन : सिर्फ तेरी जरूरत…सब की नहीं। वो देख…

ग्रीन रूम के दायीं ओर से ‘यस सर, यस सर…श्योर सर’ की आवाज़ आती है। चार लड़के ग्रीन रूम से मंच पर प्रवेश करते हैं। एक लड़का सेल को कान पर लगाए हुए है। मंच पर आते ही अपने हाथ में पकड़े सेल फोन को गुस्से में जमीन पर पटक मारता है। उनके पीछे-पीछे ही चार लड़कियाँ भी बातचीत का मौन अभिनय करती हुई ग्रीन रूम से निकलती हैं और जब तक ये बात करते हैं, तब तक बाजार में घूमने का आभास देती रहती हैं।

लड़का 1 : (सेल फोन को जमीन पर पटककर) धत् तेरि तो…

लड़का 2 :  क्या हुआ भाई?

लड़का 1 : (गुस्से में) इस साले सेल फोन की वजह से छुट्टियों का सारा मज़ा किरकिरा हो गया…

लड़का 2 :  सेल फोन की वजह से ? कैसे ?

लड़का 1 : एक हफ्ते की छुट्टी लेकर परिवार के साथ कश्मीर गया था घूमने…अभी ठीक से पहुँचा भी नहीं हूँ कि बॉस का फोन आ गया—तुरन्त वापस आ जाओ…डायरेक्टर साहब आ रहे हैं विज़िट पर। अरे, सूचना देने का यह माध्यम न होता तब भी तो अकेला ही विज़िट कराता न वो…पता नहीं किस मनहूस घड़ी में बना था ये…

लड़का 2 :  बिल्कुल ठीक कहते हो भाई…मैंने तो आज तक इसके बस नुकसान ही नुकसान सुने हैं…फायदा एक भी नहीं…

लड़का 1 : इसका इससे बड़ा नुकसान और क्या होगा कि बन्दा दो पल बैठ नहीं सकता कहीं…घूम नहीं सकता बेफिक्र होकर…

लड़का 2 :  हैं, इसके इससे भी बड़े कई नुकसान हैं भाई।

लड़का 1 : क्या ?

लड़का 2 : मैंने सुना है कि सेल फोन के टावर से बड़ी ही ताकतवर विद्युत चुम्बकीय तरंगें निकलती हैं। जो लोग इन टॉवर्स के आसपास रहते हैं उनकी सेहत को ये बेहद नुकसान पहुँचाती हैं। इन तरंगों का बुरा असर टावर के आसपास के पेड़-पौधों पर आसानी से देखा जा सकता है।

लड़का 1 : अच्छा !

लड़का 3 : बिल्कुल ठीक कह रहे हो भाई। मैंने पढ़ा है कि सेल फोन पर आने वाले और उससे जाने वाले सिग्नल की विद्युत चुम्बकीय तरंगें शरीर में कैंसर को बुलावा दे सकती हैं। इस बारे में शोध अभी भी चल रहे हैं। हालाँकि मोबाइल फोन कम्पनियाँ तो ऐसी किसी भी सम्भावना से इंकार करती हैं, लेकिन इतना तय है कि ये तरंगें मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाती हैं।

लड़का 4 : भाई, सेल फोन की ऊपरी सतह पर करोड़ों बैक्टीरिया और वायरस चिपके होते हैं। उन्हें नंगी आँखों से नहीं देखा जा सकता। ये हमारे ऊपरी शरीर पर त्वचा रोग का कारण तो बन ही सकते हैं, मुँह, नाक और कान के रास्ते शरीर के भीतर घुसकर किसी भयानक बीमारी को भी जन्म दे सकते हैं।

लड़का 1 : अब इतना भी मत डराओ यार।

लड़का 3 : बात डराने की नहीं है, हकीकत है।

लड़का 4 : अच्छा, एक बात सुनो— हजारों लड़के-लड़कियाँ कानों में हर समय गट्टक-सी ठोंके घूमते रहते हैं। ड्रम बजते रहने चाहिए हर समय। अब तुम ही बताओ कि जब कानों के परदों को एक भी पल आराम ही नहीं मिलेगा तो वे खराब होंगे कि नहीं ?

लड़का 3 : अभी, कुछ दिन पहले जापान के कुछ डॉक्टरों की एक टीम ने रिसर्च करके बताया है कि दुनियाभर में 10 से 20 वर्ष की उम्र तक के ज्यादातर लोग आने वाले 50 वर्षों में मानसिक रोग की चपेट में आ जाने वाले हैं। जो मनोरोग से बचे रहेंगे, बहुत सम्भव है कि उनमें भी बहुत से लोग बहरे हो चुके हों या उन्हें कोई अन्य रोग लग जाए।

लड़का 2 : एक और बात बताता हूँ—बहुत-से लोग सेल फोन को चार्जिंग में लगाकर बातचीत के लम्बे सिलसिले में व्यस्त हो जाते हैं। भले ही ऐसे मामलों की संख्या बहुत कम हो, लेकिन कई बार सुनने में आता रहता है कि सेल फोन की बैटरी फट गयी और उस पर बात करने वाले समेत आसपास के कई लोग घायल हो गये।

लड़का 4 : ऐसे कुछ मामलों में मौत भी हुई है।

लड़का 2 : जरूर हुई होगी। सेल फोन का अब एक नुकसान और सुनो—इसका आकार चाहे जितना बड़ा हो, छोटा ही माना जाएगा। और कीपैड तो पूरे आकार से लगभग आधे आकार का ही होता है। उस कीपैड पर ज्यादा देर काम करने से कलाई और उँगलियों के जोड़ों पर अनजाना-सा दबाव पड़ता है। उसकी वजह से उनमें दर्द तो हो ही सकता है, वे स्थाई रूप से एक खास कोण पर मुड़ी भी रह जा सकती हैं। (खास अन्दाज़ में उँगलियाँ कीपैड पर टाइप करने का अभिनय करता है।)

दृश्य फ्रीज़। इस दायें हिस्से पर धीरे-धीरे अँधेरा होना शुरू होकर पूरा अंधकार फैल जाता है। सुल्लू और मानसी सक्रिय होते हैं…

सेल फोन : सुन लिया ?

 मानसी :  सुन लिया।

सेल फोन : गलती ये करें, असावधानियाँ ये बरतें; और जमीन पर पटककर मारें सेल फोन को!!! यह कहाँ का इन्साफ है?

 मानसी :  सब एक जैसे नहीं हैं सुल्लू । बहुत-से लोग हैं जो दुर्घटनाओं के लिए तुम्हें नहीं, खुद की असावधानी को जिम्मेदार ठहराते हैं…

सेल फोन : इस धरती पर तो नहीं रहते ऐसे लोग।

 मानसी :  वे इसी धरती के रहने वाले हैं और इसी पर रहते हैं, आओ, तुम्हें मिलवाती हूँ…

यों कहकर वह बायीं ओर घूमती है और सुल्लू का चेहरा भी उसी ओर घुमाती है। ग्रीन रूम के बायीं ओर से वही चार लड़कियाँ बात करती हुई निकलती हैं जो पहले मंच पर माइम करती घूम रही थीं। संवाद बोलना ग्रीन रूम से ही शुरू कर देना है। लड़कियों पर प्रकाश पड़ता है।

लड़की 1 : (हाथ में पकड़ा सेल फोन अपनी साथियों को दिखाते हुए) देखो भई, सेल फोन को लेकर उधर की कालोनी में जो बातें सुनी, मैं तो उनमें से किसी भी बात से सहमत नहीं हूँ।

लड़की 2: मैं भी। यह तो बन्दर की बला तबेले के सिर डालने वाली बात हो गयी।

लड़की 1: बिल्कुल। (हाथ में पकड़ा सेल फोन पुन: दिखाते हुए) यह बेचारा मनुष्य तो है नहीं, मशीन है। जैसे हम चलाना चाहेंगे, चलेगी।

लड़की 2 : ठीक कहती हो।

लड़की 1 : अब ड्राइविंग को ही लो—ड्राइविंग करते समय इसका इस्तेमाल गहरी जरूरत के समय ही करना चाहिए। लेकिन नहीं, बिना जरूरत सेल फोन पर बात करते चलेंगे। किसी भी समय ध्यान भटका और…काम खतम। कसूर इसका या आपका? अंग्रेजी की एक कविता मुझे हमेशा याद रहती है…वर्क व्हाइल यू वर्क एन्ड प्ले व्हाइल यू प्ले। दैट इज द वे टु बी हैप्पी एन्ड गे…मतलब, जीवन में खुश और चुस्त-दुरुस्त बने रहने का सबसे बड़ा मन्त्र यह है कि आप एक समय में केवल एक काम पर दिमाग को लगाएँ, उसे चारों तरफ न दौड़ाएँ।

लड़की 3 : बात दरअसल यह है कि हमारे हाथ, पैर, आँखें, कान और नाक—ये सब अपना-अपना काम हर पल करते रहते हैं । एक ही समय में ये मस्तिष्क से निर्देश लेते भी हैं और उसे सूचनाएँ भेजते भी हैं। इसलिए हमें चाहिए कि मस्तिष्क को उसका काम सावधानी से करने दें, वहाँ अनेक तरह की सूचनाओं की भीड़ इकट्ठी करके उसे दिग्भ्रमित न करें।

लड़की 2 : लोग बिना मतलब ही (हाथ में पकड़ा सेल फोन दिखाते हुए) इस बेचारे को भला-बुरा कहने लगते हैं …जबकि खुद उन्हें इसका सही-सही इस्तेमाल करना नहीं आता।

लड़की 4 : ठीक कहती हो। पुस्तकालय में, सिनेमा हॉल में, रेस्टौरेंट में, किसी सेमिनार या मीटिंग में… वहाँ माहौल को शान्त बनाए रखने की तमीज़ तो खुद हम में होनी चाहिए। यह बेचारा थोड़े ही बताएगा कि मुझे साइलेंट मोड पर डाल दो।

लड़की 1: पैसे के बल पर हम चीज़ों को खरीद तो लेते हैं; लेकिन उनके इस्तेमाल की तमीज़ अपने अन्दर पैदा करना ही नहीं चाहते। एक उदाहरण दूँ—मैं ऐसे कितने ही लोगों को देखती हूँ जिनके पास कार तो बहुत बड़ी कम्पनी की और कीमती है, लेकिन ड्राइविंग सेंस तिलभर भी नहीं है। सड़क पर थर्ड क्लास ऑटो ड्राइवर की तरह यूँ…ऽ…यूँ…ऽ… (ज़िग-ज़ैग गाड़ी चलाने का अभिनय करते हुए) सेल फोन के मामले में भी, यह तमीज़ तो इसके मालिक में होनी चाहिए कि कहाँ बैठकर इस पर बात करनी चाहिए और कहाँ नहीं।

लड़की 2 : देखो भई, मेरी नजर में तो सेल फोन बुरे वक्त का साथी है। कल्पना करो कि आप किसी सुनसान जगह से गुजर रहे हैं और आपका वाहन आगे बढ़ने से इंकार कर देता है… या आप ऐसे दोराहे पर जा पहुँचे हैं जहाँ आपको सूझ ही नहीं रहा कि दायीं सड़क पर आगे बढ़ें या बायीं सड़क पर।… बाजार में कुछ गुण्डे किसी को परेशान कर रहे हैं और कोई भी मदद के लिए आगे नहीं आ रहा है। ऐसी हालत में सेल फोन आपके बहुत काम आ सकता है। अगर सेल फोन पर इन्टरनेट का कनेक्शन लिया हुआ है तो वह आपको सही रास्ता बताते रहने वाला मददगार सिद्ध होता है।

लड़की 3 : हाँ, लेकिन इसके रख-रखाव को लेकर कुछ सावधानियाँ बरतना जरूरी है।

लड़की 2 ; जैसे ?

लड़की 3 ; सेल फोन की बेकार बैटरी और दूसरे इलैक्ट्रॉनिक पुर्जों की बात बताऊँ—उन्हें यूँ ही नहीं फेंक देना चाहिए। ये पर्यावरण के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकती हैं। छोटी-छोटी ये सब बातें कम्पनी की वेबसाइट पर पड़ी होती हैं। यह बेचारा थोड़े ही बताएगा कि यह करो, यह न करो। साइट पर जाओ और देखो।

लड़की 4 : सौ प्रतिशत सही। अब, एक बात और सुनो—दूसरों से बातचीत करते हुए ही हमारा उच्चारण शुद्ध होता है। हमें पता चलता है कि किसी से बातें करते हुए किन शब्दों का प्रयोग करना चाहिए और किन का नहीं। बात करने का सलीका भी आवाज में पैदा होता है। सेल फोन इस अभ्यास का जबर्दस्त माध्यम है। आज के समय में यह सिर्फ एक सेल फोन नहीं रह गया है। यह संदेशवाहक, फिल्म से लेकर खेल तक हर तरह का मनोरंजन देने वाला, दुनियाभर की खबरों से जोड़े रखने वाला, पुरानी और नयी बातों को समय पर याद दिलाने का जिम्मा निभाने वाला, नोटबुक की तरह काम आने वाला, बीते कितने ही वर्षों से लेकर आने वाले अनेक वर्षों का कैलेंडर पेश करने वाला, किसी भी विषय की जानकारी तुरन्त उपलब्ध कराने वाला हमारा सहायक और साथी है।

लड़की 3 ; सेल फोन मानवता के लिए वरदान है। अगर इसका बुद्धिमानी से प्रयोग किया जाए तो जीवन में इसके इतने फायदे हैं कि गिनाए नहीं जा सकते। लेकिन हम लोग इसका इस्तेमाल इस तरह करते हैं कि बजाय फायदेमंद होने के यह नुकसान पहुँचाने वाला सिद्ध हो जाता है; और फिर, हम खुद की बजाय इस बेचारे को भला-बुरा कहने लगते हैं।

उसकी यह बात सुनते ही सुल्लू खुशी से उछल पड़ता है…

सेल फोन : (ऊँचा उछलकर) हुर्रे…ऽ…!

उसकी चीख सुनकर चारों लड़कियाँ, चारों औरतें और चारों लड़के एक जगह आ खड़े होते हैं और चौंककर इधर-उधर, ऊपर-नीचे देखने लगते हैं…

सभी : (चौंककर एक साथ) किसकी आवाज थी यह ?

इस सवाल के साथ ही मानसी और उसका सेल फोन प्रकाश के अपने गोले से उछलकर उनके बीच जा खड़े होते हैं और ज़ोर से चीखकर बताते हैं…

मानसी और सेल फोन एक साथ : सुल्लू की…ऽ…!

सुल्लू को सभी मिलकर अपने कन्धों पर बैठा लेते हैं और जोर से चीखते हैं : हुर्रे…ऽ…