अपनी-अपनी बारी / आलोक कुमार सातपुते
किसी मुहल्ले के एक भाग में तीन कुत्ते रहते थे, जिसमें से पहला पिल्ले से कुछ बड़े क़द का, दूसरा मझौले क़द का, और तीसरा फुल साईज़ का था।
एक बार सबसे छोटे क़द के कुत्ते को कहीं से एक हड्डी पड़ी हुई मिल गई। वह उससे खेलते-खाते हुए घूमने लगा, तभी मझौले क़द के कुत्ते की नज़र उस पर पड़ी,। बस फिर क्या था, वह उस पर चढ़ाई कर बैठा। छोटे कुत्ते को भी शायद अपनी औक़ात मालूम थी, तभी तो वह दुम दबाकर आत्म-समर्पण की मुद्रा में उस मझौले का मुँह चाटने लगा, मानों कह रहा हो, हुज़ूर ! इसे तो मैं आपके लिये ही ला रहा था। उसकी इस दशा पर मझौले ने दार्शनिक सी मुद्रा में अपने कान खड़े कर लिये, मानों सोच रहा हो मार दिया जाये या छोड़ दिया जाये। ...ख़ैर जो भी हो, हड्डी अब मझौले के कब्जे़ में थी। इतने में तीसरा फुल साईज़ का कुत्ता घूमता हुआ उधर आ निकला।
...अब मझौले की बारी थी।