अपनी अपनी सोच / रघुविन्द्र यादव

Gadya Kosh से
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"मैं तुम्हें अथाह प्रेम करती हूँ, मगर तुम मुझे हमेशा कष्ट ही देते हो। मैं जब भी तुम्हारे गले लगती हूँ, तुम मेरा बदन जला देते हो।" रोटी ने तवे से शिकायत की।

तवे ने आह भरते हुए कहा "काश! तुम मुझे दोषी मानने की बजाय सच्चाई जानने का प्रयास करती। सच तो यह है कि मैं उस वक़्त तक तुम पर कोई आँच नहीं आने देता जब तक कि मैं पूरी तरह जल नहीं जाता। तुम तक जो तपिश आती है वह मेरे जलने की होती है, मगर तुम इस ढंग से कभी सोच ही नहीं सकी। सोच का यही अंतर दुःख का कारण है।"