अपनी दुनिया के सिकंदर / ममता व्यास
पिछले दिनों यात्राओं का दौर रहा। बहुत से स्टेशन, बहुत सी ट्रेन और बहुत सी भीड़। हाँ, बहुत-सी पटरियाँ और सबसे ख़ास प्लेटफार्म पर दौड़ते -भागते चाय वाले, समोसे वाले पानी से भरी बोतले वाले और भी बहुत सी चीजों को बेचने वाले। मुझे ना जाने क्यों ये खोमचे वाले प्लेटफार्म के हीरो लगते हैं। असली भारत, असली जिन्दगी इन स्टेशनों पर ही दिखती है। और ये खोमचे वाले असली नायक है। ये कभी प्लेटफार्म को बेरौनक नहीं होने देते।
ट्रेनों को तो जैसे फुर्सत ही नहीं मिलती जीवन भर। जीवन भर चलती है। फिर भी कभी कहीं नहीं पहुंचती। ज़रा देर रुकी, फिर चल दी। शोर मचाती ट्रेने, आती जाती ट्रेने। खुद में लोगो को समेटे। खुद में भर कर। समा कर। ये दौड़ती रहती है। हैरान परेशान सी भीड़ को भी चैन नहीं। किसी को आने की जल्दी। किसी को जाने की बैचेनी। कितने चेहरे, लेकिन सभी परेशान से दिखते है। लेकिन, लेकिन, लेकिन.. इन्ही स्टेशनों पर ये खोमचे वाले कितने खुश दिखते है। इनके चेहरे पर कितनी ताजगी दिखती है। रेल मंत्री यदि इन मासूम मुस्कानों को देख ले तो इन पर टेक्स लगा दे।
प्लेटफार्म पर आने वाली हर ट्रेन का ये दिल से स्वागत करते हैं ( ऐसा स्वागत तो लाखों रुपये दहेज़ में लानी वाली बहु का भी नहीं होता)। आखों में गजब की चमक। ऊर्जा और उत्साह से लबरेज ये हीरो कलाबाजियां खाते हुए। ट्रेन के साथ-साथ दोडते हैं। अपने साथ अपनी दुकान लिए, संतुलन साधे ये सुपरमेन कितने खुश दिखते हैं। चलती ट्रेन को लपक लेना उस पर चढ़ जाना। मानो उनके जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य हो। इक़ खेल की तरह वो दिन भर खेलते है। प्लेटफार्म पर झाड़ू लगाने वाले बूढ़े व्यक्ति के चेहरे पर मुझे बहुत शांति दिखती है। इक़ अलौकिक तेज। ऐसा तेज उन बाबाओं के चेहरे पर क्यों नहीं दिखता, जो टेलीविजन पर, लोगो के भविष्य बताते है। दुखो को दूर करने का दावा करते है। बहरहाल, उस दिन ट्रेन में इक़ पांच से छह साल के बच्चों को खिलोने बेचते देखा। खिलोने से खेलने की उमर में वो मासूम दोड़ दौड़ कर अपना "टिन-टिन बजा" बेच रहे थे। लेकिन किसी ने भी उनका वो बाजा नहीं खरीदा। लेकिन उनके चेहरों पर बादशाह जैसी मुस्कान देखी मैंने। ना कोई खीज, ना कोई परेशानी। जीवन को कितनी सहजता से जी लेते है ये "हीरो"।
ये वाकई बादशाह है। प्लेटफार्म के। ये योद्धा कोई युद्ध नहीं लड़ते। ये नेता है पर राजनीति नहीं करते। ये ज्ञानी हैं पर कोई सत्संग नहीं। कोई मंदिर मस्जिद नहीं जाते। ये अपने कर्म के साथ अपनी मेहनत के बल पर जीते है। अपनी दुनिया के सिकन्दर है ये। ये दुनिया को नहीं जीतते ये हमारे दिलों को सोचने पर मजबूर करते है। और आखों को नम। ये बताते है की जीवन बहुत ही सहज है।