अपनी -अपनी पूंजी / खलील जिब्रान / सुकेश साहनी

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(अनुवाद :सुकेश साहनी)


चौराहे पर एक गरीब कवि और धनी मूर्ख की मुलाकात हुई और वे आपस में बातचीत करने लगे। उनकी बातों से स्पष्ट था कि वे अपने-अपने काम से संतुष्ट नहीं थे और एक दूसरे की उपलब्धियों को अधिक महत्त्वपूर्ण समझ रहे थे।

तभी वहाँ से गुज़र रहे देवदूत ने उन दोनों के कंधों पर धीरे से हाथ रख दिया। ऐसा, करते ही विचित्र बात हुई-दोनों व्यक्तियों की अब तक की उपलब्धियों की अदला-बदली हो गई।

वे दोनों अपने-अपने रास्ते पर चले गए.

आश्चर्य की बात यह थी कि कवि महसूस कर रहा था कि उसके हाथ खिसकती बालू के अलावा और कुछ नहीं लगा। दूसरी ओर मूर्ख ने आँख बन्द की और महसूस किया कि उसके पास दिल में घुमड़ते बादलों के अलावा कुछ भी नहीं है।