अपने-अपने यू टर्न / सुशील यादव

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस देश में आजादी के कई मायने हैं|’सुविधा’ को कोई आजादी का नाम दे लेता है| ‘मनमानी’ को ,मस्ती को ,अपने झख को,अपने अकडूपन को,अपनी स्वार्थ-सिद्धि को अनेक लोग आजादी से जोड़े हुए हैं| सबके ‘अपने-अपने यू-टर्न’ हैं कब कौन कहाँ से मुड जाएगा कह नहीं सकते?

अखबार खोलते ही बीबी चिल्लाती है, लो आपके बल्ब तो फटाफट फ्यूज होने लगे| ‘पुख्ता वाल्व समझ के ’ दिल्ली वालों ने जिसे जगह-जगह पाइप लाइन में फिट किया था,उनमे इतनी जल्दी लीकेज शुरू हो जाएगा किसे पता था ,बोलो?

ये लोग तो आपके जैसे “बेखयाली-मास्टर” होने लगे आज जो कहते हैं कल सर खुजाते हुए पूछते हैं ऐसा कहा था क्या ....?

नहीं, नहीं कहने का मतलब ये था कि .....और कल के कहे पर ‘पलट’ जाते हैं|

पत्नी के सुबह-सुबह के तानो से झल्लाते हुए मैंने उनसे कहा तुम फ्रंट पेज दोपहर को पढ़ा करो|फिल्मी पेज ,खाना-खजाना वाले न्यूज पहले निपटा लिया करो|

वो कहने लगी आपको ,नीद से जगाने का या सोते से उठाने का यही फार्मूला हिट है,वरना चाय दो-दो बार गर्म करनी पडती है|

मुझे लगता है कि ,मै ठीक से करवट भी नही बदला होता ,वो, लोगो के पलटा-पलटी पर मुझसे वाक् युद्ध की घोषणा कर बैठती है|

आप जानते हैं जिस वक्त चाय की फिकर होनी चाहिए, उस वक्त देश की फिकर से, सूरज उगने का क्रम शुरू होता है|

मै बोलता हूँ ,तुम बल्ब के फ्यूज होने से या अकेले वाल्व के काम नहीं करने से निराश न हो|

जनता नहीं जलने वाले बल्ब को बदल लेती है ,चोक हुए वाल्व को रिपेयर कर लेती है|गलती का एहसास हो जाए तो अगली बार के लिए सावधान भी हो जाती है|

जनता ये भी जानती है कि ,एक सेफ्टी –पिन या वाल्व के खराब होने से, कूकर की दाल नहीं गलेगी ये सोचना गलत है|

वो कहती है ,आंच तेज कर दो,दाल की अम्मा कब तक खैर मनाएगी ,उसे देर-सबेर गलना है ,गलेगी ही .....|

पत्नी को साहित्यिक स्टाइल में,ब्याज स्तुति या ब्याज-निंदा तरीके से ठोस बात करने में एक फायदा ये होता है कि सुबह-सुबह पलट के प्रश्नों की सुनामी नहीं आती|

नोक –झोक के बाद नसीब हुए चाय से,समाचार पत्र का स्वाद बढ़ सा जाता है|

मै हेड लाइन पर नजर मारता हूँ ,पढने के बाद स-विस्तार, पत्नी के “नेता -ज्ञान” पर पुन: चर्चा करता हूँ|

उसे बार-बार उकसाता हूँ , तुम्हारे ‘आम’ वाले ने गलत आदमी का साथ दिया|जो कहते हैं ,करते नहीं|करने का समय आता है तो भाग खड़े हो जाते हैं|आज जो कहते हैं कल पलट जाते हैं|बिना पढ़े उस कागजात को लहराते हैं जो घटना से सालो पहले लिखा गया हो |

वे दस-बीस हजार के प्लेट वाले ‘डिनर-भोज’ के लिए लोगो को आमंत्रित करते हैं|’आम-आदमी’ को लगता है कि हेड कुक ,खानसामा,सलाद बनाने वाले ,पानी पिलाने वाले ,डेकोरेशन वाले सब कम से कम सूट-टाई वाले होंगे ,कार से नीचे चलते नहीं होंगे?

यूँ चंदा जमा करने के, इस तरीके से तो लगता ही नहीं देश में कहीं मंहगाई है?

इससे एक और फायदा भी होगा कि कल गरीब देश के लोग, दस –बीस हजार रूपये प्लेट के खाने के आदी तो बनेगे?

पत्नी पर ‘आम-भूत’ का बुखार कभी उतरता ही नहीं|उनकी सोच है जो कुछ करंगे ‘आम-भइय्या’ ही करेंगे|देश में भ्रष्टाचार,महंगाई का खात्मा उनका मिशन है ,वे ला के रहेंगे|

दिन-भर चेनल्स पर आम-खबर से बा-वाकिफ,वो मुझे आफिस से लौटने पर फास्ट १०० खबर की तरह शुरू हो जाती है|मै कहता हूँ शाम को क्या बना रही हो तो वो यू-टर्न में कहती है ,सुबह का सब रखा है ,गर्म कर लेंगे|मै भीतर से गर्म हो जाता हूँ मगर सहजता से पूछता हूँ और कोई दूसरी खबर?

दूसरी खबरों का पिटारा भी कम दिलचस्प नहीं होता|पड़ौसन-जान-पहचान,गुप्ता,दुबे शर्माइन की बाइयों से सहेजे किस्से खुलने लगते हैं|

मुझे लगता है,बीबियों के बी-पी को कंट्रोल में रखने का या उनकी नित आने वाली फरमाइशों से ध्यान बटाने का,पतियों के लिए ये बेहतर ‘टर्न’ है|

‘लालटेन-भाई’ का यू-टर्न ‘भस्मासुर’ श्रेणी का यु टर्न मान लिया जाता है|

बुजुर्गो के पैर छुने के संस्कार की नुमाइश अखबारों में देखकर लगा कि झुकने- झुकाने की अपनी भी कोई मर्यादा है ,फायदा है|

जिसे कल तक कहा गया , कि वो कुर्सी पर बैठेगा तो देश का विनाश हो जाएगा ,आज उसे विकास पुरुष या देश को आगे ले जाने वाला विलल्प मानते नजर आते हैं|ये फर्क कंदील से ट्यूब-लाईट में आने का रहा हो शायद?

कोई अपने ‘चिराग’ को, डूबती नय्या से ,’चढ़ते सूरज को’ अर्ध्य दिलवाने,बाहरी हवा से बचाने , साम्प्रदायिक शक्तियों के आँगन में किलकारी दिलवाने ले गए|हाय रे यु टर्न ....

तेलंगाना वाले पार्टी विलय का वादा करके मुकर गए,बोले हमे तेलंगाना दो हम समर्थन देंगे ,पलट गए|

त्रिकोण में महाराष्ट्र फंसा है|पिछले चुनाव में एक कोण की वजह से चार-पांच सीट आते-आते रह गई|यु –टर्न कब कहाँ , कौन लेगा पता नहीं?

सुरक्षित सीट की तलाश में वे दिग्गज घूम रहे हैं जिनने कभी ताल ठोंक के रायबरेली –अमेठी की जमीन में तम्बू लगाने की सोच रहे थे|

एक नेता का कहना है -”पुन्य किया जो भारत में जन्मा ,पाप किया जो संसद में बैठना पडा” ....|

वे फिर संसद टिकट के लिए जोर आजमा रहे हैं?पता नहीं लोग किस मुह से खाते हैं कहाँ से उगलते है?

ये सब वे लोग हैं जो कभी ,घर से निकले थे सीधा रास्ता पकड़ के मंजिल को पहुचेंगे ,रास्ते में ख्याल आया ,अरे चश्मा तो घर ही भूल गए ,मारो यू टर्न ......