अपने अपने अजनबी और आत्मीयता / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 15 अक्तूबर 2013
नरगिस फाखरी इम्तियाज अली की 'रॉकस्टार' में रणबीर कपूर के साथ नायिका थीं परंतु फिल्म की सफलता का श्रेय रणबीर कपूर और एआर रहमान को मिला। वह भूमिका कुछ अजीब ढंग से गढ़ी गई थी और फिल्म में प्रस्तुत प्रेम भी गैर-पारस्परिक था। नरगिस फाखरी प्रेम की तीव्रता वाले दृश्यों में भी भावहीन ही लगीं। उनके आगमन के समय जगी आशाएं पूरी नहीं हुई। दरअसल अमेरिका में पली-बढ़ी नरगिस को हिन्दी भी नहीं आती थी। कठिन भूमिका और भाषा न आने के कारण उनकी प्रतिभा को लेकर किसी निर्णय पर नहीं पहुंचा जा सकता था। उनकी दूसरी फिल्म शूजीत सरकार की 'मद्रास कैफे' भी अपनी लागत पर मुनाफा कमाने वाली सिद्ध हुई। इसमें वे लंदन में रहने वाली पत्रकार की भूमिका में थी और नायक उसी की सहायता से रहस्य को सुलझा पाता है। इस फिल्म में उनके चेहरे की भावहीनता उनके चरित्रचित्रण की निष्पक्षता को अनचाहे रेखांकित करती है। सारांश यह है कि दो फिल्मों की सफलता के बावजूद उनके पास किसी फिल्म का प्रस्ताव नहीं है जिसके कारण भी स्पष्ट हैं। भारतीय मनोरंजन जगत का अर्थशास्त्र अजीब है कि आम दर्शक द्वारा अस्वीकृत होने पर भी फैशन शो, स्टेज पर प्रस्तुति इत्यादि के माध्यम से वे पांच करोड़ तक आय प्राप्त कर लेतीं हैं। उनका नाम भारतीय है और नाक-नक्श भी भारतीय लड़की के हैं परन्तु फिर भी वे विदेशी होने का आभास देतीं हैं और इसी अजनबीयत के कारण वे स्वीकारी नहीं गई। उन्हीं की तरह की पृष्ठभूमि से कटरीना कैफ भी आई हैं परन्तु वे दर्शकों को पसंद हैं तथा कोई 'अजनबीयता' का अहसास नहीं होता। टॉम आल्टर अंग्रेज है परन्तु हम उन्हें भारतीय ही मानते हैं और उन्हें ंिहन्दी तथा उर्दू का भरपूर ज्ञान हैं। रंगमंच पर वह ऐतिहासिक पात्र भी अभिनीत कर चुके हैं।
बीबीसी के लिए दशकों तक काम करने वाले मार्क टुली भी अनेक भारतीय लोगों से अधिक भारतीय लगते हैं। इसी तरह रस्किन बांड भी लंबे समय से भारत में रह रहे हैं और उनकी एक कहानी से प्रेरित फिल्म थी 'सात खून माफ'। कुछ लोग हमें अपने से लगते हैं भले ही उनका जन्म किसी अन्य देश में हुआ हो और कुछ हमारे देश में जन्मे तथा हमारी संस्कृति में रंगे लोग भी अजनबी तथा विदेशी होने का आभास देते हैं।
दरअसल 'आत्मीयता' के भाव का जन्म से कोई संबंध नहीं है। आप सोनिया गांधी की राजनीति से असहमत हो सकते हैं, परन्तु निसंदेह वे ठेठ भारतीय और अपनी सी हैं। आज हम अनेक भारतीय लोगों को विदेशियों सा आचरण करते देखते हैं और अपने सोच में वे पूरी तरह पाश्चात्य हैं। जब आप फैशनेबल शॉपिंग मॉल में जाते है तो वहां का वातावरण आपको पश्चिम पहुंचने का भरम देता है और इस तरह के मॉल की प्रारंभिक सफलता का कारण भी यही था कि बिना पासपोर्ट और वीजा के चंद रुपयों के खर्च से विदेश में होने का अनुभव लोगों को लुभाता था। आज अनेक 'मॉल्स' में दुकानदार उस तड़क भड़क में रहने का किराया भी नहीं भर पा रहे है। मालिक उन्हें जाने को भी नहीं कहता, क्योंकि खालीपन उस भव्य वातानुकूलित संगमरमरी हवेली को भूतहा बना देगा। हमारे 'विकास' के खोखलेपन की यह एक झलक है। महानगरों के श्रेष्ठि वर्ग के लोगों की रुचि अमेरिका में हो रहे चुनाव में भारत के चुनाव से अधिक है और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पंद्रह अगस्त तो कभी नहीं मनाते परन्तु 4 जुलाई को उत्सव मनाते हैं जो अमेरिका का स्वतंत्रता दिवस है। इसी वर्ग के कुछ लोगों की कोठियां वाशिंगटन के व्हाइट हाउस की भोंड़ी नकल मात्र है।
बहरहाल यश चोपड़ा के छोटे पुत्र उदय चोपड़ा की नरगिस फाखरी से अंतरंगता चल रही है और खबरी कह रहे हैं कि शादी संभव है। बड़े भाई आदित्य और रानी मुखर्जी का विवाह हो चुका है या होने वाला है यह भी अभी तक रहस्य ही है। एक साक्षात्कार में नरगिस फाखरी ने कहा कि शादी का उनका अपना सपना यह है कि यह घने जंगल में हो और प्रकृति इसकी गवाह हो। इस तरह की शादी वे कैलिफोर्निया के निकट जंगल में देख चुकी हैं। दरअसल शादी को महानगरीयता से मुक्ति दिलाने की बात बड़ी समझदारी की है। सारे उत्सव दूल्हा-दुल्हन और अतिथियों को भी थका देते हैं। लंबे समय तक स्वागतसमारोह में खड़े रहने या उठक बैठक लगाने से दूल्हा-दुल्हन की कमर में दर्द होने लगता है। सारा प्रसंग इस कदर बनावटी हो जाता है कि मुस्कुराते-मुस्कुराते दूल्हा-दुल्हन के जबड़ों में दर्द होने लगता है। देवदार के वृक्षों के साये में शीतल बयार का आनंद लेते हुए शादी सचमुच यादगार हो सकती है।