अपने अपने वनवास धरती से आकाश / जयप्रकाश चौकसे

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अपने अपने वनवास धरती से आकाश
प्रकाशन तिथि : 10 मार्च 2021


प्रेम कहानियों से प्रेरित फिल्मों में भी फिल्मकार सामाजिक सरोकार के संकेत देते हैं। संदेश देने के लिए ही फिल्में बनाई जाती हैं, कवियों द्वारा कविता लिखी जाती है। मुंशी प्रेमचंद और फणीश्वरनाथ रेणु की तरह तमाम सृजनधर्मी, सामाजिक सरोकार से ही जुड़े हैं। तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर अभिनीत फिल्म ‘सांड की आंख’ में दादियों की निशानेबाजी में दक्षता के कारण उन्हें एक सामंतवादी दावत में सम्मान देने के लिए आमंत्रित किया जाता है। महलों के रिवाज से अपरिचित दादियां अपने भोलेपन और स्वाभाविक ढंग से व्यवहार करती हैं। हाथ धोने के लिए मेज पर रखे नींबू डले पानी को वे पी जाती हैं। महाराज और महारानी भी सम्मानवश उनका अनुकरण वैसा ही करने के लिए विवश हो जाते हैं। रागदरबारी सर्वत्र गूंजता है। श्रीलाल शुक्ल ने दशकों पूर्व भविष्य में होने वाली घटनाओं को जान लिया था। आमिर खान की फ़ातिमा सना शेख अभिनीत फिल्म ‘दंगल’ में आमिर अभिनीत पिता, अपनी पुत्री फ़ातिमा अभिनीत पात्र से कहता है कि ‘वह उन तमाम लड़कियों के लिए लड़ रही है, जिन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिलकर भी नहीं मिली।’ अमिताभ बच्चन और तापसी पन्नू की फिल्म ‘पिंक’ में संदेश दिया गया है कि स्त्री के चरित्र का आंकलन उसके कपड़ों से नहीं उसके गुणों से होना चाहिए।

शाहरुख खान अभिनीत महिला हॉकी को प्रस्तुत करने वाली फिल्म ‘चक दे इंडिया’ में शाहरुख अभिनीत कोच कबीर अपने खिलाड़ियों को एकजुट होकर खेलने का संदेश देता है। अधिक गोल मारने की आपसी प्रतिस्पर्धा में लीन दोनों खिलाड़ियों को आपसी एकजुटता का संदेश देता है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि पात्र का नाम कबीर है। हर काल खंड में कबीर कहीं न कहीं गा रहा है कि ‘यह मुरदन का गांव यहां कैसे मिलेगी ठांव।’

फिल्मकार अनुराग बासु ने रणबीर कपूर और प्रियंका चोपड़ा अभिनीत फिल्म ‘बर्फी’ को चार्ली चैपनिल के प्रति आदरांजलि के रूप में बनाया। शोर-शराबे और नारेबाजी के कालखंड में मूक सिनेमा को स्मरण करने वाली इस फिल्म ‘बर्फी’ के पात्र गूंगे हैं गोयाकी पात्रों की आत्मा के ताप से पूरी फिल्म प्रकाशित रहती है। ज्ञातव्य है कि चार्ली चैपलिन की फिल्म ‘द किड’ के प्रदर्शन को सौ वर्ष हो चुके हैं।

बिमल राय की जन्म-जन्मांतर की प्रेम-कथा ‘मधुमति’ में नायिका का पिता इस आशय का संवाद कहता है कि जनजातियों का जंगल पर अधिकार था और वह उनका राजा था। वृक्ष काटे गए और जंगल पर लाभ कमाने वालों का अधिकार हो गया। वह ऐसा राजा रहा है, जिसका राजपाट छीन लिया गया और उसे अपनी जमीन पर वनवास दिया गया। जो बीत गया, वह आम आदमी का इतिहास है और जो वह काट रहा है, वह उसका वनवास है। राजा राम को भी वनवास दिया गया था। हम सब अपने जीवन में ही वनवास भोगने के लिए अभिशप्त हैं।

राज कपूर की प्रेम त्रिकोण फिल्म ‘संगम’ में भी फिल्मकार सामाजिक सरोकार का अवसर निकाल लेता है। संवाद है, ‘फिर वही ऊंची टेकरी पर बैठकर चंद टुकड़े गरीब की झोली में फेंक देना।’ इस फिल्म में महिला अधिकार की बात अभिव्यक्त हुई है। नायिका इस आशय का संवाद बोलती है कि एक मित्र उसे उपहार के रूप में दूसरे मित्र को देता है जो कालांतर में उसे रिटर्न गिफ्ट की तरह लौटा रहा है। दोनों मित्रों ने मुझे फुटबॉल समझ लिया है। वे भूल गए कि उसका अपना वजूद है। वह ब्याहता भारतीय नारी है, जो इंद्रधनुष की तरह पहाड़ों में खेलती है और गायब होती है तो मानो कभी थी ही नहीं। गीतकार शैलेंद्र, नायिका का दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं, ‘जो बीत गया वह इतिहास है तेरा, जो अब काटना है वो वनवास है तेरा, यह धरती है इंसानों की कुछ और नहीं इंसान हैं हम।’ हम राम के लिए जग घूमते हैं, राम तो हमारे आंगन की तुलसी के पास खड़े मुस्कुरा रहे हैं।