अपने पर भरोसा / यशपाल जैन
आदमी कितनी भी मेहनत कर ले, अगर उसे अपने पर भरोसा नही है तो वह जीवन मे सफल नही हो सकता। बाहरी साधन इंसान के लिए जरूरी होते है, कुछ हद तक मदद भी करते है, लेकिन बिना आत्मविश्वास के उसकी गाड़ी नही बढ़ सकती। अपने पैरो की ताक़त के बिना आदमी दूर तक नही जा सकता।
अपने पर भरोसे के मयने होते है-अपनी शक्तियों पर भरोसा। किसी भी काम को करने वाले आदमी मे अगर यह विश्वास है कि उसे जरूर पूरा कर सकेगा तो वह पूरा होकर ही रहेगा। जन्म से सारे गुण को पैदा कर सकता है। आत्म-विश्वास भी काम से आता है। गांधीजी बचपन मे डरपोक थे, लेकिन आगे चलकर ऐसे निडर बने कि दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें नही डरा सकी।
आत्म-विश्वास सौ रोगो की एक दवा है। आत्म विश्वास है तो आपको काम के लिए नहीं भटकना पड़ेगा, भयंकर बीमारियॉँ नही पडेंगी, चिन्ताऍ आपका खून नहीं चूसेंगी ओर दुनिया की असफलताओं की वेदना आपको नही उठानी पड़ेगी। आत्म-विश्वास वह शक्ति है, जो असम्भव को भी सम्भव करके दिखा देती है।
आत्म-विश्वास दृढ़ इच्छा-शक्ति सेउत्पन्न होता है। इच्छा-शक्ति वैसे हरकिसी मे होती है; किन्तु बहुत से लोगों मे वह सोती पडी रहती है। वे जानते ही नही कि उनके अन्दर शक्ति है। जो उसे पहचान लेते है, उनमें यह विश्वस पैदा हो जाता है कि वे जो कुछ करेगें , अच्छा ही होगा। ऐसे आदमी हौसले से काम करते जाते है ओर सफलता हर घड़ी उनके दरवाजें पर खड़ी रहती है।
एक राजा पर उसके दुश्मन ने हमला किया। राजा ने उसका मुकाबला किया, लेकिन वह हार गया। अपने राज्य से भागकर वह एक गुफा मे जा छिपा। राज्य को वापस पाने की उसे कोई आशा न रही। गुफा मे बैठकर उसे बीते दिनों की याद सताने लगी। अकस्मात उसकी निगाह सामने की दीवार पर गयी। देखता क्या है कि एक कीड़ा बार-बार ऊपर चढ़ने की कोशिश कर रहा है। चढ़ता है, गिर पड़ता है। इस तरह वह छ: बार चढ़ा ओर छ: बार गिरा, लेकिन उसने अपना प्रयास नही छोड़ा। राजा बड़ी उत्सुकता से उसे देखता रहा। सातवी बार उसकी कोशिश सफल हुई। वह ऊपर पहुंच गया। राजा सोचने लगा-इस छोटे-से कीडे ने हार नही मानी और ऊपर पहुँचकर ही रहा। आखिर मै तो आदमी हूं, कोशिश करूँ तो कोई वजह नही कि मेरी जीत न हो। यह सोचकर वह बाहर निकला और हिम्मत के साथ अपनी बिखरी सेना को इकटठा करके उसने फिर अपने राज्य को जीतने की कोशिश की। उसे अब भरोसा हो गया था कि उसे अवश्य सफलता मिलेगी और उसकी बात सही निकली। पं. जवाहरलाल नेहरू ने ठीक ही लिखा है, "हमारी कामयाबी इस बात मे नही है कि हम कभी गिरें ही नही। हमारी कामयाबी इसमें है कि गिरते ही हम हर बार उठकर खड़े हो जायें।"
कुछ लोग आत्म-विश्वास को घमण्ड मानते हैं। यह गलत है। दोनो मे जमीन आसमान का अन्तर है। आत्म-विश्वास आदमी का गुण है, जो उसे काम रकने का हौसला देता है। घमण्ड दुर्गुण है। वह आदमी को गिराता है।उससे आदमी के सारे गुणों पर पर्दा पड़ जाता है ओर समाज मे सब लोग उसे तिरस्कार की निगाह से देखते है। घमण्ड आदमी का बहुत बड़ा दुश्मन है।