अपने / शोभना 'श्याम'
"पापा! मैंने आपके जाने का सारा इंतज़ाम कर दिया है।"
"क्या तू सचमुच नहीं जा पायेगा बेटा? मेरे भैया हैं तो ...ताऊ जी तो तेरे भी है। तू ही तो सबसे लाड़ला था उनका। अब अपने आखिरी समय में तुझे देखना चाहते है तो । तू भी तो कितने समय से अपने देश नहीं गया।"
"पापा मेरे ऑफिस का ज़रूरी काम नहीं होता तो मैं ज़रूर जाता, मुझे भी ताऊ जी की बहुत याद आती है।"
"इस कमर और घुटनो के दर्द की वजह से भी तो अकेले जाते घबराहट हो रही है। अकेले समान वगैरह उठाना ...अभी तो स्लिप डिस्क पूरी तरह ठीक भी नहीं हुई।"
"डोंट वरी पापा, मैंने सारा इंतज़ाम कर दिया है, ड्राइवर आपका सामान और आपको ठीक से चेक-इन काउंटर तक ले जायगा। वहाँ से एयरलाइन की तरफ से आपके लिए व्हील चेयर और एक सहायक होगा जो आपको हवाई जहाज में लेकर जायेगा। भारत पहुँचने पर भी एयरलाइंस का स्टाफ, वहाँ जो भी आपको लेने आएगा, उस तक ठीक से पहुँचायेगा। आपको ज़रा-सी भी असुविधा नहीं होगी।"
"अपने तो अपने ही होते है बेटा। उनके होते तसल्ली रहती है।"
"पापा ...आप तो चलते फिरते हो। हवाई जहाज से तो चलने फिरने में बिलकुल असमर्थ यात्री और छोटे बच्चे तक अकेले चले जाते हैं।"
इन्ही विचारो में खोये सूर्यकान्त व्हील चेयर पर बैठे आराम से बोर्डिंग पैसेज से गुजर रहे थे कि विमान का द्वार आ गया। विमान परिचारिका ने मुस्कुरा कर उनका स्वागत किया।
'मैं नाहक ही बेटे पर इतना जोर डाल रहा था। वह ठीक ही तो कह रहा था कि मुझे कोई असुविधा नहीं होगी।'
तभी उनके सहायक ने आगे के पहिये को ज़रा-सा उठाने के लिए व्हील चेयर को पीछे की तरफ झुकाया तो चेयर कुछ ज़्यादा ही झुक गयी। सूर्यकान्त जी पहली बार व्हील चेयर पर बैठे थे।
उनका दिल एक सेकंड के लिए एकदम धक् से रह गया, पूरे शरीर में फुरफुरी-सी दौड़ गयी, तभी दो मजबूत हाथों ने उन्हें थाम लिया।
"तुम? तुम तो नहीं आने वाले थे न? मुझे तो सच में कोई परेशानी नहीं हुई।"
"अपने तो अपने ही होते है न पापा।"
बेटे की साँस फूल रही थी, परन्तु चेहरे पर इत्मीनान और मुस्कान थी।