अपराधी / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल
शरीर से मजबूत एक नौजवान को भूख ने कमजोर कर डाला। सड़क किनारे के फुटपाथ पर बैठा वह हर आने-जाने वाले के आगे हाथ फैला रहा था। वह सभी के सामने अपनी भुखमरी और बर्बादी का गीत गा रहा था।
रात हुई। उसका गला सूख गया। जुबान ऐंठ गई। लेकिन आगे पसरे हुए उसके हाथ उसके पेट की तरह अभी भी खाली थे।
वह किसी तरह उठा और शहर से बाहर चला गया। वहाँ एक पेड़ के नीचे बैठकर वह दहाड़ें मारकर रो पड़ा। भूख उसकी आँतों को चबा रही थी। उसने अपनी सूजी हुई आँखें आसमान की ओर उठाईं और बोला - "हे ईश्वर! मैंने अमीरों के पास जाकर काम माँगा। लेकिन मेरी बदहाली को देखकर उन्होंने मुझे बाहर धकेल दिया। मैंने स्कूलों के दरवाजे खटखटाए, लेकिन खाली हाथ देखकर उन्होंने भी मुझसे माफी माँग ली। पेट भरने के लिए मैंने अपना व्यवसाय शुरू किया, लेकिन कुछ नहीं कमा पाया। हताश होकर मैं अनाथालय जा पहुँचा। लेकिन मुझे देखते ही तेरे पुजारी बोले, 'यह मोटा कामचोर है। इसे भीख मत देना।'
"हे ईश्वर! तेरी ही इच्छा से माँ ने मुझे जन्म दिया। और तेरी ही इच्छा से यह धरती खत्म होने से पहले मुझे तुझे सौंप देना चाहती है।"
एकाएक वह चुप हो गया। वह उठा। उसकी आँखें दृढ़ निश्चय से दमक उठीं। एक पेड़ से उसने एक मोटी शाख तोड़ी और शहर की ओर चल पड़ा। वह चीखा - "मैंने अपनी पूरी ताकत से रोटी माँगी लेकिन दुत्कार दिया गया। अब मैं इसे अपने बाजुओं की ताकत से छीनूँगा। मैंने दया और प्रेम के नाम पर रोटी माँगी, लेकिन मानवता ने सिर नहीं उठाया। अब मैं से जबरन छीनूँगा।"
आने वाले वर्षों ने उस नौजवान को लुटेरा और हत्यारा बना दिया। उसकी आत्मा मर गई। जो भी सामने आया, उसने क्रूरतापूर्वक उसे कुचल दिया। उसने अकूत संपत्ति इकट्ठी की और अपने समय के धन्ना-सेठों पर राज करने लगा। उसके साथी उसकी प्रशंसा करते न थकते। चोर उससे ईर्ष्या करते और लोग उसे देखकर डरते।
उसकी संपत्ति और झूठी शान से प्रभावित हो राज्य के अमीर ने उसे शहर का डिप्टी बना दिया। यह एक मूर्ख शासक का बेहूदा कदम था। उसके बाद तो चोरियों को वैधानिक मान्यता मिल गई। प्रशासक लोग जनता की गुलामी का समर्थन करने लगे। कमजोरों पर जुल्म करना आम बात हो गई। जनता जिनसे पिसती थी, उन्हीं का गुणगान करने को मजबूर थी।
मनुष्यों की स्वार्थपरता का पहला ही स्पर्श इस तरह सीधे-सादे इंसान को अपराधी बना डालता है। उसे शान्ति के पुजारियों का हत्यारा बना देता है। बड़ा बनने के छोटे-छोटे स्वार्थपरक लालच पनप जाते हैं और हजार गुनी ताकत से मानवता की पीठ पर वार करते हैं।