अपराध जगत का 'परिवारवाद' / जयप्रकाश चौकसे

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अपराध जगत का 'परिवारवाद'
प्रकाशन तिथि :24 मार्च 2016


विगत सदी के आखिरी दशक में यह बहुप्रचारित था कि संगठित अपराध जगत के सरगना दाऊद इब्राहिम का धन भारतीय फिल्मों में लगा है और पूंजी निवेशक भरत भाई शाह पर दाऊद दबाव डालकर अपनी मनपसंद फिल्मों में पूंजी-निवेश करवाता है। संगठित अपराध जगत पूंजी निवेश नहीं करता, धमकी देकर पैसा बटोरता है परंतु लोकप्रिय धारणा में फिल्म उद्योग और अपराध जगत की नजदीकी की बात है। इससे अधिक भयावह यह है कि कुछ लोग फिल्मों को दोषी मानते हैं। अपराध जगत में बदनाम होने के बाद अपराधी फिल्म वालों से संबंध बनाना चाहता है, क्योंकि अपनी कमसिन उम्र में वे सितारों के प्रशंसक रहे थे और अब अपनी नव-अर्जित धाक से मनपसंद सितारे के साथ फोटो खिंचवाना चाहते हैं। दुबई में दी गई दाऊद इब्राहिम की दावतों में लगभग पूरा फिल्म उद्योग शामिल रहा है।

राज कपूर की 'राम तेरी गंगा मैली' की नायिका यास्मीन, जिन्हें फिल्मी नाम मंदाकिनी राज कपूर ने दो कारणों से दिया था। एक तो यह कि मंदाकिनी गंगा नदी से मिलने वाली एक धारा है। गंगोत्री से कलकत्ता की यात्रा में गंगा से 14 नदियां मिलती हैं और दूसरा कारण यह था कि भारत में कथा फिल्म के जनक दादा फालके की सुपुत्री का नाम मंदाकिनी था, जिसने उनकी फिल्मों में कुछ भूमिकाएं अभिनीत की थी।

यास्मीन लखनऊ की एक मुस्लिम मां और क्रिश्चियन पिता की संतान थीं और जेपी सिंघल नामक उन दिनों के लोकप्रिय स्थिर छायांकन करने वाले ने उनके फोटोग्राफ लिए थे। पहले स्क्रीन टेस्ट में यास्मीन सबको बुरी लगीं परंतु राज कपूर ने खुद उसका दूसरा स्क्रीन टेस्ट लिया। उन दिनों उनके परिवार के सदस्यों का दबाव था कि उनकी 'बॉबी' की नायिका डिम्पल अपनी दूसरी पारी 'गंगा' से प्रारंभ करे परंतु राज कपूर नवोदित यास्मीन के पक्ष में थे। शूटिंग शुरू होने के महीनों पहले राज कपूर ने यास्मीन को गोपीकृष्ण के नृत्य स्कूल में भेजा और पूना फिल्म संस्थान के शिक्षक से उन्हें अभिनय का प्रशिक्षण दिया गया। बहरहाल, फिल्म की सफलता के बाद दाऊद ने मंदाकिनी पर दबाव डाला और कथित तौर पर उससे निकाह भी किया और उनके बच्चे भी हुए। कहा जाता है कि मंदाकिनी अब अपने मूल नाम यास्मीन के साथ बंगलुरू के निकट कहीं रहती हैं। वे जानबूझकर गुमनामी के अंधेरे में रहती हैं, संभवत: यही दाऊद का उन्हें आदेश है। अब खोजी पत्रकार उस पचास वर्षीय सद्‌गृहस्था को पुन: प्रचार-वृत्त में खड़ा न करें तो बेहतर होगा। घपलों और भ्रष्टाचार के 'स्वर्ग' भारत में अनेक मुद्दे हैं, जिन पर लिखा जा सकता है। यास्मीन की 'गंगोत्री' और 'कलकत्ता' दोनों ही गुमनाम ठिए रहें, वहीं सबके लिए बेहतर है।

बहरहाल, आतंकवाद फिल्मकारों के लिए रोचक विषयों की खदान रहा है । मारियो पुजो के उपन्यास 'गॉडफादर' और उससे प्रेरित अनगिनत फिल्मों ने खूब धन कमाया है। अपराध प्राय: दंडित होता है परंतु अपराध कथाओं पर रोचक फिल्में बनती हैं। इन फिल्मों में सारे मसालों के लिए भरपूर गुंजाइश रहती है- एक्शन, रोमांच, रोमांस इत्यादि। गानों के लिए हर कथा में गुंजाइश निकाल ली जाती है। अपराध कथाएं फिल्म के प्रारंभिक काल खंड से ही बनती रही हैं परंतु अमेरिका में भीषण आर्थिक मंदी के एक दौर से प्रेरित अपराध फिल्मों की नई श्रेणी के नाम से पुकारे गए- नोए सिनेमा अर्थात अंधकार का सिनेमा अर्थात यह अंधकार भौगोलिक जगहों पर नहीं वरन् मनुष्य के अवचेतन का अंधकार है। यह बात अलग है कि कुछ स्थान अपराधी पैदा करने के लिए बदनाम है जैसे यूरोप में सिसली और भारत में डाकुओं के लिए भिंड-मुरैना इत्यादि। एक दौर में आजमगढ़ से आने वाले चंद अपराधियों की वजह से उस शहर को बदनाम किया गया, जहां महान शायर कैफी आज़मी पैदा हुए हैं और आज उनका कुनबा फिल्म उद्योग में अपना खास मकाम बना चुका है।

अपराध जगत के कुनबे को 'परिवार' कहते हैं जैसे संगीत की दुनिया में 'घराने' होते हैं। उनकी एकता और आपसी भाईचारे के कारण उन्हें फैमिली अर्थात परिवार कहते हैं जैसे डॉन कार्लिऑन की फैमिली। अपराध करके कानून से बचे रहने के लिए एकता की जरूरत होती है और सबके क्षेत्र बंटे होते हैं ताकि एक-दूसरे से युद्ध नहीं करना पड़े। अपराध जगत के नियम तोड़ने वालों के खिलाफ सारी फैमिलीज एक हो जाती हैं। संगीत को छोड़कर अन्य सभी क्षेत्रों में alt14परिवारवाद' अंधकार का क्षेत्र बन जाता है।