अपहरण / नरेन्द्र कोहली
कुटिया में दो द्वार थे और एक खिड़की। इस समय वे तीनों ही खुले थे। रामलुभाया ने झांक कर देखा: मच्छरदानी लगी एक चारपाई बिछी थी और उसमें घुस कर एक मुच्छड़ सेना की वर्दी पहने सो रहा था।
रामलुभायाने मच्छरदानी से उसे अच्छी तरह लपेटा और रस्सी से बाँध लिया। जब वह बंध गया, तो जागा और बोला, "क्या कर रहे हो?"
"तुम्हारा अपहरण कर रहा हूँ।"
"तुम कौन हो?" उसने पूछा।
"पहले बताओ, तुम कौन हो?" रामलुभाया ने पूछा।
"मेरा नाम सुनोगे, तो पाजामा गीला हो जाएगा।"
"तुम्हारा नाम सावन की फुहार है क्या, जो गीला हो जाऊँगा?" रामलुभाया ने कहा, "मैंने तो तुम्हें वीरप्पन समझ कर बाँधा है।"
"वीरप्पन ही हूँ मैं।" उसने कहा, "पर वह संतरी डयूटी वाला किधर गया? उसने न मुझे बचाया, न जगाया।"
"यहाँ तो कोई नहीं था।" रामलुभाया ने कहा, "कैसे निकम्मे लोगों को डयूटी पर लगाते हो।"
"मैं लगाता तो ठीकठाक आदमी ही लगाता। यह तो चंदन तस्कर संघ वालों ने लगाया था।" वह बोला, "कोई बात नहीं, मैं भी इसबार सालों को चंदन के स्थान पर बेर की लकड़ी भेज दूँगागा। उन्हें कौन-सी पहचान है।"
"इस बार तो तुम ऐसे कह रहे हो, जैसे मैंने तुम को बाँध न रखा हो।" रामलुभाया बोला, "छूटोगे तो लकड़ी काटोगे न!"
"अरे बाँध लिया तो क्या हो गया?"
"तुम्हारा अपहरण हो गया।" रामलुभाया हँसा।
"पागल हो तुम।" वीरप्पन बोला, "अभी तो मार्ग में वनरक्षक मिलेंगे। वे मुझे छुड़ा लेंगे और तुमको वन में अवैध रूप से लकड़ी काटने के आरोप में पकड़ लेंगे।"
"ऐसा नहीं हो सकता।" रामलुभाया ने कहा, "वे तुम्हें छुड़ा कैसे लेंगे? उन्हें तो तस्करों को पकड़ने के लिए रखा गया है।"
"जिसे जो करने के लिए रखा जाता है, वह वही करता है क्या?" वीरप्पन हँसा।
"और नहीं तो क्या।"
"तुमने देखा नहीं क्या कि पुलिस निरपराधियों को पकड़ती है और अपराधी न्यायालय से मुक्त होते हैं।" वीरप्पन बोला।
"हाँ! होते तो हैं।" रामलुभाया ने कहा, "किंतु वे तुम्हें छुड़ा नहीं पाएँगे, क्योंकि वे मुझे पकड़ नहीं पाएँगे।"
"क्यों? पकड़ क्यों नहीं पाएँगे-तुम उनको रिश्वत देकर आए हो क्या?"
"नहीं! तुम्हारी कुटिया का वह द्वार जिससे मैं आया हूँ, कर्नाटक में पड़ता है। तुम्हारी चारपाई सीमा पर है और कुटिया के जिस द्वार से मैं निकलूँगा, वह तमिलनाडु में पड़ता है। कुछ समझे?"
"हाँ समझा।" वीरप्पन चिंतित हो गया, "तुम आए एक प्रदेश से हो, अपराध सीमा पर हुआ है और तुम जाओगे दूसरे प्रदेश में। ऐसे में तो इस देश की, प्रदेशों में विभाजित और सीमाओं में बंधी पुलिस तुम्हें नहीं बाँध सकती।"
"अब मानोगे कि मैंने तुम्हें बाँध लिया?"
"सोए को बाँध लिया।" वह रोषपूर्वक बोला, "जागते को बाँधते तो देखता।"
"तुम भी रात को घर में घुस कर चुपके से किसी को बाँध लाते हो। पुलिस को सूचना देकर बाँधते तो मैं भी देखता।" रामलुभायाने कहा।
"तुम झूठ बोलते हो।" वह बोला, "मैं तो पुलिस को सूचना देकर ही अपहरण करता हूँ। पुलिस मेरी रक्षा न करे तो मैं किसी के अपहरण का साहस कैसे कर सकता था।"
"झूठ बोलते हो तुम। पुलिस तुम्हारी रक्षा क्यों करेगी?"
"क्योंकि मैं पुलिस को वेतन देता हूँ।"
"तो सरकार किस को वेतन देती है?"
"मैं नहीं जानता। मैं सरकार का वित्त मंत्रालय नहीं हूँ।" वह बोला, "बहुत हो चुका। अब मुझे खोलो।"
"तेरी ऐसी तैसी। खोलने के लिए नहीं बाँधा है तुझे।" रामलुभाया ने कहा और गठरी को कंधे पर उठा कर ले चला।
"मुझे इस हालत में देखेंगे तो पुलिस वाले तुम्हें मार डालेंगे।" उसने धमकी दी।
"ऐसी स्थिति आई तो मैं तुम्हें मार डालूँगा।"
वीरप्पन डर कर चुप हो गया।
रामलुभाया आगे बढ़ा तो सचमुच पुलिस वाले आ गए, "वन में से क्या काट लाए?"
"विषवल्लरी। बहुत फैल गई थी।" रामलुभाया ने कहा।
"गठरी बहुत भारी है क्या?"
"आदमी तो हल्का है, बस उसकी मूंछें ही भारी हैं।"
"हैं! यह आदमी है?" पुलिस कप्तान चौंका।
उसने निकट आ कर ध्यान से देखा, "वीरप्पन का जुड़वाँ लगता है।"
"इसीलिए कहता था कि बम्बैया फ़िल्में मत देखा कर।" वीरप्पन चिल्लाया, "हरामज़ादे! यह मैं ही हूँ, वीरप्पन, मेरा जुड़वाँ नहीं। छुड़ाओ मुझे।"
"छोड़ो इसे। छोड़ दो हमारे अन्नदाता को।" पुलिस वाले ने रामलुभाया को डंडे से धमकाया, "नहीं तो तुम्हें गोली मार दूँगा।"
"मैं वीरप्पन को पकड़ कर लाया हूँ। मुझे पुरस्कार मिलना चाहिए या गोली मारी जानी चाहिए?" रामलुभाया ने पूछा।
"पुरस्कार तो मैं लूँगा, तुम्हें तो गोली ही मारूँगा।" पुलिसवाले ने पिस्तौल निकाल ली।
"मैं यह मच्छर मारने वाली दवा की शीशी इसके मुँह में ठूस दूँगा।" रामलुभाया ने शीशी वीरप्पन के मुँह में लगाई।
"दूर कर अपनी पिस्तौल। हरामज़ादे मुझे मरवाएगा।" वीरप्पन दहाड़ा।
पुलिस वाले ने डर कर पिस्तौल छिपा ली।
रामलुभाया वीरप्पन को बंगलूरु के एक होटल में ले आया। वीरप्पन चिल्लाता रहा किंतु किसी पुलिस वाले ने उसे नहीं छुड़ाया।
"ये तुम्हारे टुकड़ों पर पलने वाले तुम्हें छुड़ा क्यों नहीं रहे?" रामलुभाया ने पूछा।
"नीचे वाले तुम्हें बहुत वीर समझ कर डर रहे हैं और ऊपर वाले सोच रहे हैं कि किसे पकड़ने में उनका हित होगा-वीरप्पन को या उसको बाँध कर लाने वाले को?"
"देश का हित नहीं सोच रहे, अपना हित सोच रहे हैं?"
"देश का हित सोचते तो मैं इतने वर्षों तक वहाँ वन का सम्राट कैसे बना रहता।" वीरप्पन हंसा, "इनका देश इनके घर तक सीमित है। वैसे मेरी एक बात मानो।"
"क्या?"
"मुझे पुलिस को मत सौंपना। उससे तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा।"
"तो किसे सौंपूं?"
"वह निर्णय तो तुम्हें करना है।" वह बोला।
"मैं तो निर्णय कर चुका।"
"जल्दी मत करो। फ़ोन तो आ लेने दो।" वह बोला।
"किसका फोन?" रामलुभाया ने पूछा।
"देखो कौन करता है। जिसे आवश्यकता होगी, वह करेगा।"
थोड़ी देर में फ़ोन बजने लगा।
"उठाओ।"
रामलुभाया ने फ़ोन उठाया, "कहिए।"
"वीरप्पन को छोड़ दो।" उधर से किसी ने कहा, "फिरौती में जितना पैसा कहोगे, तुम्हें पहुँचा दिया जाएगा।"
"आप कौन बोल रहे हैं?"
"मैं नेता कल्याणकोष का कोषाध्यक्ष बोल रहा हूँ।"
"आप उसे क्यों छुड़वाना चाहते हैं कोषाध्यक्ष जी? उसको छोड़ना देश की सुरक्षा के हित में नहीं है।"
"मूर्ख हो तुम। अपनी सोचो और देश की सुरक्षा के चक्कर में मत पड़ो।" उस व्यक्ति ने कहा, "बोलो। पांच करोड़ काफ़ी होगा? अपना पैसा वसूलने के लिए हमें भी तो किसी न किसी मुख्यमंत्राी का अपहरण करवाना पड़ेगा। कोई ऐसे ही तो पैसा नहीं दे देता।"
"पांच करोड़ दे रहा है।" रामलुभाया ने वीरप्पन को बताया।
"साला मेरा मूल्य इतना कम लगा रहा है।" वीरप्पन को क्रोध आ गया, पर उसने जल्दी ही स्वयं को शांत कर लिया, "फिरौती की राशि में आधा-आधा करने का वचन दो तो मैं तुम्हें इससे भी अधिक दिलवा दूँगा।" ^^ नहीं छोडूँगा। राम लुभाया ने फ़ोन में कहा।
"क्यों? कोई इससे ऊँची बोली दे रहा है?"
"इससे अधिक तो वीरप्पन स्वयं ही दे देगा।" रामलुभाया ने फ़ोन रख दिया।
फोन फिर बजा।
"क्या है?" रामलुभाया ने पूछा।
"वीरप्पन तुम्हारे पास है?"
"है तो।"
"कितने में दोगे? दस करोड़ चलेगा?"
"तुम उसका अचार डालोगे?"
"नहीं! चुनाव लड़वाएँगे। हम उसे जनकल्याणकारी नेता के रूप में प्रतिष्ठित करेंगे।"
"वीरप्पन चुनाव लड़ेगा तो देश की सुरक्षा का क्या होगा?" रामलुभाया ने पूछा।
"देश तुम्हारे बाप का है? और भी तो इतने डाकू चुनाव लड़ते रहते हैं।" उधर वाले ने कहा, "पाकिस्तान वाले तो मुशर्रफ के राष्ट्रपति होते हुए भी अपने देश की सुरक्षा के लिए चिंतित नहीं हैं और तुम बड़े डरपोक हो।"
"नहीं! मैं उसे छोड़ कर देश की सुरक्षा के साथ मज़ाक नहीं कर सकता।" रामलुभाया ने कहा, "तुम किसी और को चुनाव लड़वा लो। जीत गया तो वह अपने आप ही डाकू बन जाएगा।"
"जैसी तुम्हारी इच्छा।" उधर वाले ने फ़ोन रख दिया।
फोन फिर बजा।
"अब क्या है?" रामलुभाया ने पूछा।
"हम वीरप्पन को खरीदना चाहते हैं। क्या क़ीमत है उसकी?" किसी ने पूछा।
"तुम क्या संयुक्त राष्ट्र संघ से बोल रहे हो?"
"नहीं! मैं अपने देश के दूतावास से बोल रहा हूँ। अभी-अभी हमारे राष्ट्रपति का फ़ोन आया है कि वीरप्पन को खरीद लो।" उधर वाले ने कहा, "वह हमारे बड़े काम का हो सकता है। हम उससे तुम्हारे प्रधानमंत्राी का अपहरण करवाना चाहते हैं। घबराओ मत। हम तुम्हारे प्रधानमंत्राी को मारेंगे नहीं। बस कुछ फिरौती लेकर छोड़ देंगे। तुम्हारे यहाँ फिरौती में बहुत कुछ देने की परंपरा है।"
"हमारे यहाँ परंपरा तो शत्राु के दांत तोड़ने की भी है और दांत खट्टे करने की भी।" रामलुभाया बोला, " और सुनो। शत्रुओं के साथ क्रय-विक्रय का सम्बंध हम नहीं रखते ^^ उसे मार दोगे तो एक दमड़ी नहीं मिलेगी तुम्हें। ** उधरवाले ने कहा] ^^ हम सौ करोड़ रुपये दे देंगे। **
"हम देश की सुरक्षा सहस्रों करोड़ में भी नहीं बेचते।" रामलुभायाने कहा, "कोई और घर देखो बाबा!"