अप्रकट / जयनन्दन

Gadya Kosh से
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बकझक से शुरु होकर गाली गलौज, हाथापाई, मारपीट, अबोला, नफरत! जब से होश संभाला है यही देख रही हूँ। हैरत है फिर भी आप दोनों एक ही घर में हैं और अलग होने की कभी कोशिश नहीं की। जानती हूँ कि आप दोनों के बीच जुडे रहने का जो एक तार है, वह हम तीनों बच्चे हैं। छोटकू रोलू आप दोनों के बिना नहीं रह सकता और उसके बिना न आप रह सकते हैं, न मम्मी। उसे क्लास में र्फस्ट होते आप भी देखना चाहते हैं मम्मी भी।

बदनसीब कोई कितना भी बडा हो उसे थोडी ख़ुशनसीबी भी जरूर मिलती हैयह आपकी खुशनसीबी है कि घर के कलह, शोर और तनाव के माहौल में भी रह कर आपके दोनों बेटे क्लास में र्फस्ट आते हैं। जेसू तो आपकी आंख का तारा हैकितना फख्र है न आपको उस परकहते हैं, जरूर यह लडक़ा कुछ ऐसा बनेगा कि हमारी उच्चाकांक्षा भी पीछे रह जाएगी। एक मैं ही हूँ घर में जो सुन्दर भी नहीं हूँ और पढने में मेधावी भी नहीं, फिर भी आप दोनों के जज्बात के सबसे करीब हूँ।

पापा, मैं नहीं जानती कि आप दोनों में घमासान कब से चल रहा है और इसकी शुरुआत कहाँ से हुई, लेकिन इतना जानती हूँ कि इस घमासान में हमारी आत्मा बहुत विलाप करने लग जाती हैहमारा लहू ठंडा हो जाता है और घर एक हॉरर फिल्म जैसा डरावना बन जाता है। मैंने कई कई रातें गुजारी हैं यह सोचने में कि क्यों टूट गया मम्मी का आपके प्रति भरोसा और क्यों होती गईं वह असहिष्णु! इसके कई कारण हो सकते हैं, लेकिन इनमें एक पर मैं बार बार ठहर जाती हूँ। मम्मी औसत से भी उन्नीस चेहरे और अपने विवेक के कारण इस हीनताबोध ग्रंथि से ग्रस्त रहीं कि आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा और व्यक्तित्व के चुंबकीय आकर्षण की हदों में कई महिलाएं हैं जिनसे आपके दोस्ताना सम्बंध हैं। मम्मी जैसी समझ रखनेवालों के लिये महिलाओं के साथ दोस्ताना सम्बंध रखने का सिर्फ एक और एक ही अर्थ होता है और कुछ भी नहीं। दरअसल इनके लिये दुनिया न बदली है न आगे बढी है, चूंकि वह जिस गांव घर से आई है, वहां औरतें अब भी सौ-डेढ सौ साल पीछे के युग में ही अटकी हुई हैं। इन्हीं कारणों से मम्मी को कभी आपने अपने लायक नहीं समझा, उनकी परवाह नहीं की और उन्हें विश्वास में लेकर चलना जरूरी नहीं समझा।

पापा पहले आप गरजते थे, चीखते थेअब एकदम खामोश हो गये हैं। उस दिन आप दोनों में हिंसक झडपें हुईं थीं। मम्मी ने भी आप पर प्रहार किया था आपने भी उन पर। यह पहला अवसर था जब आप ज्यादा जख्मी हो गये थे। बुरी तरह मरोड दिये जाने के कारण आपके दायें हाथ की दो तीन उंगलियों में बुरी तरह मोच आ गई थी। आप दर्द से रात भर तडपते रहे थे। मैं ने कई बार आपके कमरे में झांक कर देखा थाआप रो रहे थे। आपकी इस बेबसी पर मेरे भी आंसू निकल आए थे, पापा। पहले आप घर के मामूली सामान के भी तोड दिये जाने पर दहाड उठते थे, तिलमिला जाते थे। आज आपकी उंगलियां टूट गई हैं, फिर भी आप खामोश हैं। आप कुछ भी चुपचाप सह ले रहे हैं। टूटे हुए सामान की मरम्मत करवा देते हैं या मरम्मत के लायक नहीं रहा तो नया खरीद लाते हैं। आपने तीसरी बार रंगीन टी वी खरीदा है, पांचवी बार बुकशेल्फ के शीशे बदलवाये हैं, चौथी बार फ्रिज की रिपेयरिंग करवाई है, क्रॉकरी, बेसिन, फर्नीचर जैसी छोटी वस्तुओं की टूट फूट तो आपने इतनी बार झेली है कि अब उनकी गिनती भी याद करना मुश्किल है अब तो इन कारणों से खामखां एक आर्थिक चोट सहते रहना इस घर की स्थायी फितरत हो गई है।

कहीं ऐसा तो नहीं पापा कि आपके अन्दर जो एक लौ थी, वह धीरे धीरे मंद पडने लगी हैनहींनहीं पापा, ऐसा आप नहीं कर सकते। आपको जीना होगाएक तेज और चकाचौंध वाले प्रकाश के साथहमें अनाथ मत बनाइये।

एक बात कहूं पापा, आप मानेंगे? मैं ने एक दिन आपसे पूछा, इतना अकेले और एकाकी होकर जीना अच्छा नहीं है, आपको एक दोस्त की जरूरत है। आपने कहा, दोस्त तो हैं ही मेरेकितने-कितने तो दोस्त हैं। मनहर और द्वादश तो मेरे कितने घनिष्ठ दोस्त हैं। मैं महिला दोस्त की बात कर रही हूं, जिसके साथ आप अपनी भावनाओं और अर्न्तद्वन्द्वों को पूरी तरह शेयर कर सकें। एक ऐसी पार्टनर जो आपको इमोशनली सर्पोट कर सके और आपका खयाल रख सके। आपने कहा, अब शायद इन चीजों के लिये बहुत देर हो गई है, बेटे। अब तो बस यही ख्वाहिश है कि तुम तीनों पढ लिख कर सही रास्ते पर लग जाओ। अपनी फिक्र में लगकर मैं तुम लोगों के प्रति लापरवाही बरतने का गुनाह नहीं कर सकता। नहीं चाहता कि आगे चलकर तुम लोग भी मुझे कठघरे में खडा करो। ऐसा नहीं है पापाहम इतने खुदगर्ज होकर आपके सगे नहीं हो सकते। आप खुश रहेंगे तभी हमारे लिये और भी बेहतर सोच सकेंगे। हम आपकी खुशी नहीं सोचेंगे तो हम आपके अपने कैसे कहे जाएंगे। एक दूसरे की खुशी को ज्यादा से ज्यादा सोचने महत्व देने और ख्याल करने वाले ही तो अपने होते हैं।"

आप मुझे एकटक देखते रह गये थे और आपकी आंखों में यह भाव ठहरा हुआ था कि मैं कितनी होशियार हो गई हूँ।

पापा पता नहीं होशियार हुई हूँ या नहीं लेकिन इतना कह सकती हूँ कि घर के झगडे और तकरार ने बचपन जीने का हमें वह अहसास नहीं दिया, जिसमें बेफिक्री होती है, मासूमियत होती है और अल्हडपन होता है। रोलू को मैं देखती हूँ तो इस बचपनहीन बच्चे पर मुझे बहुत दया आती है। इंसाफ नहीं हुआ इसके साथ, समय से पहले ही बडा हो गया बेचारा। उसने गुड्डी नहीं उडाई, क्रिकेट, कबड्डी और कंचे नहीं खेले, किताबें नहीं फाडीं, क़ोई शैतानी नहीं करना आया उसे। दरवाजा खोल कर नंगे नहाना उसने कितना पहले छोड दिया। हमें नहीं मालूम कि यह लडक़ा कैसे नहाता हैइसकी जांघों, पिंडलियों और गुप्तांग आदि में कोई विकृति तो नहीं है? आप तो अपने बारे में कहते हैं कि कितने बडे तक जब गाँव में रात को शौच जाते थे तो आपकी माँ सामने बैठी होती थी। आज रोलू आधी रात को भी उठता है तो किसी से कोई मदद नहीं लेता। किसी को कोई आहट लगने नहीं देता। पता नहीं इस लडक़े को कभी भूख लगती भी है या नहीं, कभी किसी से खाना नहीं मांगता। पेट में दर्द भी हो तो खुद ही पुदीनहरा की टिकिया लेकर खा लेता है।

पापा मैं आप दोनों के बीच की टकराहट और असहिष्णुता को देखकर डरने लग गयी हूँ अपने विवाह से। कहीं मेरा दाम्पत्य भी इसी तरह का हो गया तो? मैं हरगिज नहीं चाहती कि मम्मी का कोई साया मुझ पर पडे और यह भी नहीं चाहती कि मेरा पति आपकी तरह हो। मुझे माफ कीजिये यह कहने के लिये कि मम्मी में अगर 60 प्रतिशत कमी रही है तो 40 प्रतिशत आपमें भी रही है। आप अपने ही साहित्य-संस्कृति के मायालोक में मग्न रहे और मम्मी की कभी परवाह नहीं की। एकबार आपके किसी साथी ने सुझाया आपको -

पत्नी को कभी कभार अपने साथ ले जाओसमारोहों में, बाजार में, दूसरे शहरों में। आपने कहा था, यार, मैं जिस ग्रामीण संस्कार और परिवार से आया हूँ उसमें मैं ने अपनी मां और कई चाचियों को देखा है। वे दिन भर खेती-गृहस्थी के घरेलू कामों में मसरूफ रहती थीं। चाचा और पिता दिन भर खेत खलिहानों में भिडे रहते थे, उन्हें एक पल भर फुर्सत नहीं रहती थी। एक भी तीर्थस्थल तक जाना भी उन्हें नसीब न हुआ। मां को कभी इसकी कोई शिकायत नहीं रही। घर-परिवार के प्रति समर्पण, सेवा और विवेक के मामले में मां के आगे यह देवी जी कहीं नहीं ठहरतीं। फिर भी दिन भर हाड तुडाने वाली मां की तुलना में क्या बेहतर स्थिति नहीं है इसकी? इसे चूल्हा भी नहीं फूंकना पडता न जानवरों की सानी-पानी करनी होती है और न अनाज सुखाने सहोजने पडते हैं। हम खेतों में काम करने वाले पिता की ही अगली पीढी हैं और इतने आभिजात्य और मार्डन नहीं हो गये कि पत्नी को क्लब ले जाएं, डांस करें और पैसे देकर फिजूल की खरीददारी करवाएं।

आपकी यह दलील ठीक नहीं थी, पापा। आपने मम्मी को हमेशा एक अनपढ, ग़ंवार और देहातिन समझ कर व्यवहार किया और कभी उसे अपनी पत्नी समझ कर बराबरी का दर्जा नहीं दिया। जब आप ही हल नहीं जोत रहे तो मम्मी जानवरों को सानी पानी क्यों और कहां से देती ? आप जहां थे, मम्मी को भी तो वहीं होना था। आप जरा अपनी अपेक्षाओं पर उसे ढालकर सामन्जस्य बिठाने की कोशिश तो करते!

इस घर में रहते हुए तो मैं यही मान बैठी थी कि पति-पत्नी के सम्बंध शायद इसी तरह होते हैं - अपनी अपनी सीमा संभाले हुए दो दुश्मन की तरह। यह अलग बात है कि मम्मी अगर पाकिस्तान रहीं, बेमतलब, बेतुकी और विवेकहीन फायरिंग करने वाली तो आप हिन्दुस्तान रहेजरा संयमित, धीर-गंभीर और चतुर मगर जवाबी गोलीबारी तो आपकी तरफ से भी हुई ही न! भूले नहीं होंगे कि आपके चलाए डंडे से घायल मम्मी एक महीने तक लंगडाती रहीं थी और बहुत मालिश आदि कराने के बाद ही सामान्य हुईं थीं। अपने इस कृत्य पर यों आप बहुत अफसोस में रहे थे और रोज रोज मलहम-गोली ला ला कर हम बच्चों की मार्फत भिजवाते रहे थे। उनकी तकलीफ कम हुई या नहीं यह जानने के लिये आप चोर दृष्टि से उनके चलने फिरने को देखते रहते थे।

एक महीने तक पटना में तारक अंकल के घर रहने का अगर मुझे मौका नहीं मिला होता तो शायद मैं पति-पत्नी के अर्न्तसम्बंधों और मेड फॉर ईच अदर की असलियत कभी नहीं जान पाती। वहां मैं ने देखा कि अंकल की एक एक जरूरत पर आंटी बिछ बिछ जा रही हैं। अंकल भी आंटी की ख्वाहिशों की तामील में अपनी पूरी एकाग्रता लगा रहे हैं। एक आप हैं पापा, आपसे कोई पूछता ही नहीं कि आप कहां जा रहे हैं और कब वापस आएंगे। न कोई आपको हाथ हिला कर बाय कहता है और न बांहें फैलाकर वेलकम करता है। न कोई चाय के लिये पूछता है न खाने के लिये। न किसी को आपके हंसने से मतलब है और न आपके कराहने से। आपके कपडे ग़न्दे हैं तो हैं, शर्ट के बटन टूटे हैं, आपको गरम पानी चाहियेआपकी इन चिंताओं में दूसरा कोई शरीक नहीं है।

मम्मी का भी तो ऐसा ही है पापा, उसने भी तो अपने को एक द्वीप बना लिया है। अब कोई उसकी खबर भी तो नहीं लेता। अपनी मर्जी की मालिक हो गई है, बल्कि कई बार तो मुझे लगता है कि अपनी मर्जी पर भी उसका कोई अख्तियार नहीं रहा। खाना नहीं बनता है तो न बनेबच्चे भूखे प्यासे स्कूल जाते हैं तो जाएंघर में कोई जरूरी फोनकॉल आये या महत्वपूर्ण व्यक्ति, किसी को सूचित करने की जरूरत नहीं। घण्टों खिडक़ी के पास बैठी रहती है, पता नहीं शून्य में क्या देखती रहती है। कभी लगता है मानसिक सन्तुलन खो गया है बुरी तरहमगर कभी ऐसा अहसास दे जाती हैं कि इनसे अक्लमंद तो कोई हो ही नहीं। कोई पागल स्विचबोर्ड खोलकर बिजली की गडबडी तो ठीक नहीं कर सकता न! मूड में कभी वह किचेन में चली जाती हैं तो आज भी उनके बनाये व्यंजन आपको सबसे स्वादिष्ट लगते हैं।

मैं जानती हूँ पापा कि मम्मी आपको सिर्फ बुरी ही बुरी नहीं लगतीकुछ वो बात भी है उसमें जो आपको गहरे तक छूती है। एक बार जब वह बिना कुछ बताए घर से निकल गई थी और तीन दिनों तक उसका कुछ अता पता नहीं रहा था, आप कितने व्याकुल और उद्विग्न हो गये थे। कहां कहां नहीं ढूंढा था आपने और फिर नाउम्मीद हो कर कितने पस्त हो गये थे। रात को आप मुझे देखते थे कि मुझ पर क्या बीत रहा है और मैं आपकी टोह लेती रहती। फिर हम दोनों एक दूसरे को रोते हुए देख लेते थे।

मैं ने आपसे पूछा था, पापा हम इतने दु:खी क्यों हो रहे हैं? उनके रहने का भी तो कोई मतलब नहीं था इस घर में।

आपने कहा था, बहुत मुश्किल है इसका जवाब देना कि दिल आखिर चाहता क्या है! पच्चीस साल तक रही है वह इस घर मेंउसने कई बार हमें अच्छा खाना दिया हैकई बार हमारे कपडे धोये हैंकई बार दुख बीमारी में सहायक रही हैमकान के बनते समय अपनी पूरी तत्परता शामिल की थी उसनेखडे होकर काम देखा और करवाया था उसनेगोया इस घर की एक एक ईंट में उसके हाथों के स्पर्श हों। तुम बच्चों की मां भी तो वही है इसलिये इस घर परहम सब पर उसका कुछ न कुछ ॠण तो है हीकैसे हम इसे नजरअंदाज क़र दें।

तीन दिनों के बाद बदहवास हाल मम्मी को पुलिस लेकर आई थी रात में। आप देख कर जैसे खिल उठे थे, कोई गिला शिकवा या ऐतराज नहीं किया था आपने। तीन दिनों तक वह कहाँ रही, शायद आज भी पता नहीं है आपको। अब घर से बाहर उनके कदम पडते ही हम तीनों में से किसी एक को आप उसके पीछे लगा देते हैं, देखो पता नहीं कहाँ जा रही है, रास्ता भटक कर इस बार कहीं ऐसी जगह न चली जाए कि लौटना मुमकिन ही न हो।

आप प्रतिदिन एक बार हमसे जरूर पूछते हैं कि मम्मी ने खाना खाया या नहीं। आप जब घर आते हैं तो पहला सवाल यही होता है आपका कि आज वोल्टेज कैसा है उसका। जवाब अगर यह मिलता है कि वोल्टेज हाई है यानि यानि आज वह नॉर्मल और खुश है तो आपके चेहरे पर अनायास एक रौनक उतर आती है। आप हम बच्चों की कोई भी डिमान्ड, कोई भी डयू सेलेब्रेशन पूरा करने के लिये तैयार हो जाते हैं। आपने कितनी बार कसम खाई है कि इस जालिम और दुष्ट औरत के लिये अपने हाथों से कोई चीज नहीं खरीदूंगा। मैं जानती हूँ कि अपनी इस कसम को आप खुद ही तोडक़र बहुत खुश होते हैं और जब भी आउट स्टेशन से वापस आते हैं तो कोई सी भी चीज मम्मी के लिये जरूर लाते हैं।

पापा मम्मी आपसे चिढती है, घिन करती है, यह उसका स्थायी भाव हो गया है जो अकसर प्रकट होता रहता है, लेकिन उसमें कुछ अप्रकट भी है जिससे शायद आप वाकिफ नहीं हैं। जब भी शाम को आपके घर आने में देर होती है, उसके भीतर एक बेचैनी समा जाती है, जिसे वह बहुत छिपाने की कोशिश करती है लेकिन छुपा नहीं पाती। कभी वह बेडरूम की खिडक़ी से पूरब के रास्ते, तो कभी ड्राईंगरूम की खिडक़ी से उत्तर के रास्ते, तो कभी बालकनी से पश्चिम के रास्ते बारी बारी से निहारने लगती है। जिस दिन आप घर से बिना कुछ खाये पिये निकलते हैं उस दिन वह मुझे बहुत देर तक आंखें तरेर कर देखती है। जैसे जवाब तलब कर रही हो कि अपने बाप को कुछ खाने के लिये देने लायक भी नहीं हुई तू!

एक बार किसी भीख मांगने वाले यों ही कह दिया कि तुम्हारा पति एक अमंगलकारी ग्रहदशा से घिरा है जिससे कभी भी उसका कुछ अनिष्ट हो सकता है। मैं ने देखा मम्मी ने इसके बाद लगातार कई महीने तक हर इतवार को उपवास किया और मंदिर जाकर नारियल चढाये। घर के किसी छज्जे या रौशनदान पर कोई चिडिया घोंसला बना दे, मम्मी उसे कभी उजाडने नहीं देती थीं, भले ही उससे कितनी ही गंदगी क्यों न फैले। मम्मी का यह अप्रकट समझ रहे हैं ना पापा?

किसी खुशनुमा और सान्निध्यभरे लम्हों के मौसम में आप दोनों ने मिलकर घर के पिछवाडे चारदीवारी के भीतर एक आम का पेड लगाया था। पेड लगाने की अमिट स्मृति आपके हृदय के पन्नों पर स्थायी रूप से दर्ज है, जिसे आप पलट कर अकसर पढते रहते हैं, मैं ठीक कह रही हूँ न पापा! मैं ने अकसर देखा है कि उस आम के पेड क़ी जडें सिर्फ मिट्टी में ही नहीं बल्कि आपकी और मम्मी की आत्माओं में भी फैली हैं।

पिछले ग्रीष्म में वह पेड मुरझाने लगा अचानकउसकी कुछ डालियाँ तो एकदम ही सूख गईं थीं लगा कि अब यह पेड नहीं बचेगा। वायुमंडल में अपेक्षित नमी न हो और जडों में दीमक लग जाए तो जैसे रिश्ते जीवित नहीं बचते वैसे ही पेड क़ा भी दम घुटने लगता है। आप एकदम चिंतित और परेशान हो गये। दीमक मारने वाला पाउडर लाकर पेड क़ी जडों में डाला फिर स्प्रे मशीन से पूरे गाछ पर दवाई का छिडक़ाव किया। ऐसी तत्परता और संलिप्तता के साथ किसी पेड क़े लिये मेहनत करते तो मैं ने आपको पहले कभी नहीं देखा था।

आपने कहा था, इतने इतने लावरिस पेड हैं इधर उधरकोई तो नहीं सूखताफिर इतने लाड प्यार और सेवा संभाल के बाद भी यह पेड सूख क्यों रहा है?

मैं समझ गई थी पापा कि इस गाछ के सूखने का अर्थ सिर्फ एक अदद गाछ का सूखना नहीं है बल्कि कुछ ऐसा मामला है जिसका संबंध किसी कोमल भावना और संवेदना से बैठता है। आपको शायद पता नहीं हो कि आपकी अनुपस्थिति में मम्मी भी उसकी जडों में दवा और पानी डालती रही थी। आखिरकार आप दोनों की मेहनत रंग लाई और वह आम का बीमार पेड मरने से बच गया। हम तीनों बच्चे बहुत खुश हुए कि पेड क़े रूप में एक संभावना सुरक्षित रह गई घर में।

मैं ने आपके एकाकीपन और मायूसी को देखते हुए कई बार कहा था कि आप किसी दूसरी महिला को अपने जीवन में प्रवेश दे दें तो संभव है आपके लिये खुशी और उत्साह के द्वार खुल सकें, लेकिन पेड प्रक़रण के बाद लगा कि यह घर सिर्फ मम्मी का है और इस पर उन्हीं का एकाधिकार होना चाहिये। मैं ने इस आशय के मनोभाव जरा उत्साह से आपसे प्रकट किये कि आप समर्थन करेंगे। आपने एक दार्शनिक जैसी मुद्रा बना ली और कहा, जैसे धूप और पानी के संसर्ग में रहने वाली कोई भी खाली जमीन खाली नहीं रहती अगर वह बंजर नहीं बिना उगाए भी उसमें उग आता है कोई न कोई पौधा या घास। वैसा ही व्यक्ति के साथ भी होता हैउसे भी किसी के सान्निध्य और आत्मीयता की तलब रहती है और वह कभी न कभी पूरी हो जाती है।

पहले तो सुन कर मुझे ताज्जुब हुआ फिर मैं ने आपका मतलब समझ लिया।

इसके बाद हमें महसूस होने लगा कि आप कुछ कुछ बदल रहे हैं। आप पर छायी सुस्ती, खिन्नता और निराशा की बदली छंटने लगी है और निखरा हुआ आल्हादित आकाश छाने लगा है। यह कैसी विडम्बना है कि जब मैं कह रही थी कि आपको एक नये दोस्त की जरूरत है, आपने इसे खारिज कर दिया था। आज जब मैं मम्मी और इस घर में एक अन्योन्याश्रय संबंध देखने लगी हूं तो आपने। मतलब मम्मी ने जो एक गलत धारणा वर्षों पहले बना ली थी, अब वह सच होने जा रही है। पापा आपमें हमें एक नये उत्साह का संचरण देख कर अच्छा लग रहा है लेकिन हम आशंकित हैं यह सोचकर कि अगले ग्रीष्म में आम का वह पेड शायद नहीं बचेगा।