अप्रकाशित आत्म-कथाओं की वेदना / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :16 अप्रैल 2016
शाहरुख खान का कहना है कि सचिन तेंडुलकर और महेंद्र सिंह धोनी की बायोपिक बन सकती हैं परंतु उनके अपने जीवन में ऐसा कुछ नहीं है कि बायोपिक बन सके। यह क्रिकेट के नशे का कमाल है कि भारत को हॉकी में अनेक स्वर्ण पदक दिलाने वाले ध्यानचंद के बायोपिक का उनके मन में विचार भी नहीं आता। इतना ही नहीं लाखों रुपए खर्च करके पूजा और आरती शेट्टी ने गुणीजनों से ध्यानचंद बायोपिक की पटकथा लिखवाई और अभी तक किसी सितारे को वे फिल्म के लिए राजी नहीं कर पाई हैं। महान उपन्यासकार राजेंद्र सिंह बेदी की पोती ने पटकथा लिखी है। इस भव्य बजट की फिल्म को बिना सितारे के नहीं बनाया जा सकता। धन्य है झांसी के गरीब परिवार के ध्यानचंद, जिन्होंने जर्मनी में हिटलर के इस दबाव को भी स्वीकार नहीं किया कि वे भारत की ओर से न खेलें अौर जर्मन नागरिकता स्वीकार कर लें। राष्ट्रप्रेम की डींगें हांकने वाले नेताओं को ज्ञात तक नहीं कि ध्यानचंद ने कितने दबाव और तनाव झेले हैं। राष्ट्रभक्ति पर किसी का एकाधिकार नहीं है और जो स्वार्थी राजनीतिक दल देशभक्ति को मुद्दा बना रहे हैं, उन्होंने 1942 में गांधी का नहीं अंग्रेजों का साथ दिया था। हमने स्वयंसिद्ध ऐतिहासिक घटनाओं के रबर के लचीले दास्तानों को इतना बदल दिया है कि वे कातिल के हाथों में फिट बैठते हैं।
बायोपिक निर्माण की समस्या यह है कि वे प्राय: गान में बदल जाते या आधारहीन कटु आलोचना के वाहक बन जाते हैं। श्याम बेनेगल ने सुभाषचंद्र बोस का तथ्यपरक बायोपिक 'सहारा' के लिए बनाया था। उसका व्यापक प्रदर्शन नहीं हुआ। सर रिचर्ड एटनबरो की 'गांधी' इतिहास के लिए सिनेमा माध्यम की धरोहर है। केतन मेहता ने सरदार पटेल पर विश्वसनीय एवं भावना प्रधान बायोपिक रचा है। गौरतलब है कि रिचर्ड एटनबरो की 'गांधी' के अतिरिक्त किसी भी बायोपिक का व्यापक प्रदर्शन नहीं हो पाया है और 'गांधी' का भी भारत में व्यवसाय अत्यंत साधारण रहा। गांधी के मात्र चार प्रिंट न्यूयॉर्क में लगे परंतु उनकी सफलता से प्रेरित पचास प्रिंट दूसरे सप्ताह में लगे।
पश्चिम के देशों की तरह भारत में बायोपिक लोकप्रिय नहीं हुए हैं। आम दर्शक की रुचि हकीकत से अधिक अफसाने में है। भगतसिंह पर अनेक फिल्में बनी परंतु केवल कश्यप और मनोजकुमार की 'शहीद' ही सफल रही। हमारे दर्शक मायथोलॉजी की गिज़ा पर पले हैं। मायथोलॉजी की तर्क के विरुद्ध बनी कपोल कल्पनाएं बहुत लोकप्रिय हुई हैं। हमारा सामूहिक अवचेतन इन्हीं रेशों से बना हुआ है। इसीलिए हमारी रुचि इस धरती के यथार्थ से अधिक स्वर्ग और नर्क में है। इस विश्वास के आधार पर व्यापार विकसित हो गया है। दूसरों का भूत अौर भविष्य बताते हुए वे लोग अपना वर्तमान समृद्ध कर लेते हैं। यह संभव है कि कठोर वर्तमान से पलायन की इच्छा अनजान भविष्य की ओर ले जाती है और कुछ लोग विगत में वर्तमान समस्याओं का निदान खोजते हैं। समय का चक्र निरंतर घूमता है, वर्तमान विगत होते हुए भविष्य की गोद में समा जाता है। कतील शिफाई ने चेतन आनंद की 'कुदरत' के लिए लिखा था, 'दु:ख-सुख की हर इक माला कुदरत ही पिरोती है, हाथों की लकीरों में यह जागती सोती है, खुद को छुपाने वालों का पल-पल पीछा ये करे, जहां भी हों मिटते निशां, वहीं आकर पांव ये धरे, जिस राह से हम गुजरे, सामने ये होती हैं, यादों का सफर ये करें, गुजरी बहारों में कभी, एक हाथ में अंधियारा, एक हाथ में ज्योति है….' शायर और कवि त्रिकालदर्शी होते हैं। कवि का कार्य ज्योतिष के समान होते हुए भी अधिक संवेदनशील होता है।
शाहररुख खान संभवत: विनम्रतावश यह कह रहे हैं कि बायोपिक बनाने लायक उनके जीवन में कुछ नहीं है। एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के मध्यमवर्गीय परिवार का युवा दिल्ली रंगमंच से जुड़ा और एक दिन सूटकेस में सीमित सामान और दिल में असीमित सपने लेकर मुंबई आया और भाग्यवश अजीज मिर्जा से मुलाकात हुई और उन्होंने मिलकर ड्रीम्स अलिमिटेड कंपनी बना ली। कुछ हद तक वह मेल सिंड्रेला है। नेता हो या अभिनेता सबका सारा खेल-तमाशा आम आदमी के दम पर है और उस गरीब का कोई बायोपिक नहीं परंतु इन तमाम प्रसिद्ध और सफल लोगों के बायोपिक में मर्मस्पर्शी प्रसंग उस गरीब के जीवन से ही लिएगए हैं गोयाकि उसके मौलिक अधिकारों के साथ उसके जीवन और जीवनी पर भी डाका डाला जाता है। वह बेचारा किसी भी राह से गुजरे, बटमार झाड़ियों के पीछे छिपे उसका इंतजार करते हैं। आम आदमी का विराट स्वरूप सब में समाया है और विशेष होते ही वह सबसे पहले अपने व्यक्तित्व से आम आदमी को बाहर निकाल फेंकता है। सांप की तरह वह अपना केंचुल उतार फेंकता है और अब उसके दांतों का जहर पहले से अधिक मारक हो जाता है। यह विशेष आदमी सफल होने के बाद अपने अतीत का काल्पनिक विवरण सुनाता है। वह अपने यथार्थ में कल्पना का तड़का लगाता है तथा अपने अतीत के अभावों को खूब बढ़ा-चढ़ाकर बताता है। वह कभी चाय बेचने वाला बनता है, कभी बर्तन मांजने वाली का बेटा बन जाता है। अय्यार के पास विविध रूप धारण करने की क्षमता होती है।