अप्रत्यक्ष करों की वृध्दि / कांग्रेस-तब और अब / सहजानन्द सरस्वती
स्वराज्य पदार्पण ने गरीब जनता पर कमरतोड़ करों को लादना शुरू किया। यह प्रक्रिया निरंतर जारी है। इस साल रेलों का किराया डयोढ़ा-दूना कर दिया गया। फिर भी रेलों में आदमी पर आदमी की जैसे बोराबंदी होती है। डाक का खर्च बराबर बढ़ता गया है और पहली अप्रैल से कार्ड का दाम पौन आना तथा लिफाफे का दो आना होगा। कपड़े , चीनी , पेट्रोल आदि पर भी कर लदा है। जानकारों का कहना है कि नेहरू का बजट तो धनियों का है , न कि जन साधारण का। स्टांप का खर्च भी पहले ही बढ़ा है। बैलगाड़ियों , साइकिलों , लादनेवाले जानवरों पर कर लगाने की बात पहले से ही है। हाँ , करों को घटाया इस तरह गया है कि कारखानेदार और धनी लोग लाभ उठाएँ। महीन कपड़े का कर घटा है।
कहा जाता है , मुद्रा वृध्दि को रोकने के लिए नेहरू सरकार आसमान-जमीन एक कर रही है। मगर इन अप्रत्यक्ष करों की वृध्दि से मुद्रा प्रसार और भी बढ़ता है। चीजों की कीमत बढ़ती जो है। जिस चीज पर कर लगे वह कपड़ा , चीनी आदि महँगी तो होगी ही और मुद्रा प्रसार रोकने के मानी हैं कि चीजें सस्ती हों। एक ओर मजदूरों का वेतन बढ़ाते हैं। दूसरी ओर जरूरी चीजों पर कर बढ़ाकर इन्हें महँगी करते हैं। फिर वेतन बढ़ाना भी बेकार होता है ─ गज स्नान होता है। प्रत्यक्ष या सीधो करों को बढ़ाइए , जैसे आय कर को। सो तो उन्हें घटाते हैं। यह भी अजीब बात है कि हाल ही में केंद्र के खाद्यमंत्री श्री जयराम दास ने फरमाया था कि चीनी का दाम अभी ज्यादा है , उसे घटाए जाने की सोच रहे हैं। लेकिन फी बोरे डेढ़ रुपए की बढ़ती कर दी गई।