अबकी बार असली लाल किले से / अर्पण जैन 'अविचल'

Gadya Kosh से
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६८ बसंत और लगभग १० प्रधानमंत्रियों को अपनी प्राचीर से तिरंगा फहराने की इजाज़त देता ये दिल्ली का लालकिला कई इतिहास स्वयं में समाहित कर चुका है। गत वर्ष एक लालकिले से प्रधानमंत्री मनमोहन सिहँ देश को संबोधित कर रहे थे तो वही दुसरी और उस वक्त के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी को जनता आक्रोशित रूप में भुज में लालकीले की प्रतिकृति से देख रही थी। नजारा खास भी था किन्तु आज हालात बदल गये, अब बारी असली लाल किले से है।

अबकी बार देश ने प्रंचड बहुमत के साथ मोदी जी को आमंत्रित किया है लालकिले पर,

हालातो के साथ-साथ देश को युवा कहा जाने वाला प्रधान तो मिला ही है साथ में चुनौती से भरा हिन्दुस्थान भी मिला है...

देश के हालातो में मंहगाई के साथ गरिबी, भुखमरी से तड़पता भारत आज भी उम्मीद की टकटकी लगाये बैठा है नये प्रधानमंत्री से...

नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की आवाम के आज सरताज बन गये, एक साल में कितना कुछ बदल गया, तख्त बदले, ताज बदल गये, जो कल विपक्ष के गलियारे में दहाड़ते थे आज संसद के सत्तासीन बन गये, कल जिनकी तान सुन कर सत्ता पक्ष भी अचंभित हो जाता था आज वह सत्ता के धरातल के शहंशाह बन गये।

इतिहास के पन्ने भी सदा से ही इसी तरह लिखे गये है, दिन चाहे १९८० की इंदिरा लहर हो या १९८४ में राजीव गाँधी का सत्ता पर काबिज होना हो या २०१४ में नरेंद्र दामोदर दास मोदी का, स्वर्ण अक्षरो ने सदा से ही इसी तरह का आगाज़ इतिहास की किताबो में संजोया है।

वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगभग ७५ दिनो का कार्यकाल व्यतीत कर चुके है, जिसमे से एक बजट सत्र भी पूर्ण हो चुका है, इसमे देश की जनता को कड़वी दवाओ के साथ अच्छे दिनो का वायदा भी दर्शाया है।

याद रहे नायक! तुम्हें संविधान सौंपा है!

देश के नये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तुम्हे करोड़ो भारतवासीयो ने एक उम्मीद के रूप में स्वीकारा है, देश पिछली सरकार की जनविरोधी नीतियो से त्रस्त था, सहमा-सा भारत बन चुका था देश उन सरकारों के नेतृत्व में, उन लोगों ने घोटालो के नित नये कीर्तिमान रचना शुरू कर दिए थे, हर तरफ त्राहि-त्राहि मची हुई थी, मंहगाई की मार थी, महिलायें व बच्चियां भी असुरक्षा में थी, इन सब अंधियारों के बीच भारतवंशियों ने नरेंद्र मोदी के रूप में एक उम्मीद की है उजियारे की,

जनता से आपने ६० महीने माँगे थे, जनता ने पूर्ण बहुमत के साथ आपको ६० महीने दिए है, अब आपके हाथो में भारत का भविष्य दिया है, संविधान दिया है आपको, आपके पास अधिकार भी है ... देश उन सब कष्ट से निजात चाहता है और ऐसा चाह कर वह कोई ग़लत काम भी नहीं कर रहा है,

क्यू ना करे आपसे उम्मीद?

देश के वर्तमान हालत भी आज़ादी के परवानो को रास नहीं आएँगे,

आज भी सत्ता के रास्ते से लोकतंत्र के मंदिर तक जाने वाले लोग सुभाष चंद्र बोस की मौत पर खामोश ही नज़र आते है।

आज जब भारत रत्न देने के मुद्द्दे पर देश में बहस तो छिड़ रही है कि सुभाष चन्द्र बोस को (मरणोपरांत) भारत रत्न दिया जाएगा किंतु कोई ये भी तो बताए की उनकी मृत्यु कब और कहा हुई?

कैसे हालातो ने देश में जगह बना ली है, अब आँधियारे से उजाले की और ले जाने वाले हाथो में संविधान सौप कर निश्चिंत तो है किंतु भयभीत भी।

यदा कदा कश्मीर की केसर की घाटी में होने वाली गोलाबारी अभी भी भयभीत कर देती है देश, कब चीन अरुणाचल के रास्ते हिन्दुस्तान घुस जाए यह अनायास भय देशवासीयो को सोने नहीं देता, अब नरेंद्र मोदी से देश केवल उम्मीद कर रहा है।

उम्मीद के रास्ते से ही मंज़िल का पता मिलता है।

कटु किंतु सत्य है कि आज़ादी के ६८ बसंत पर करने के बाद भी आर्थिक रूप से हम आत्मनिर्भर नहीं, सामाजिक ढाचे में अभी ढले नहीं, ना वैश्विक सोच को देश ने पूर्णत: स्वीकार किया, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी।

विश्वस्तर पर विश्व बेंक को चुनोती देने वाली संस्था "ब्रिक्स" की नीव तो आप रख आए हो प्रधानमंत्री जी किंतु चिंता इस बात की भी ज़रूर करना की देश में अभी भी कर्ज़ के कारण कई किसान आत्महत्या जैसे जघन्य अपराध करने पर मजबूर है,

चिंता में सूना चूल्हा भी रखना और वह बहन का भी ध्यान रखना जिसकी राखी का हकदार सेना के जवान का पाकिस्तान शीश काट कर ले गया था। उस मासूम की किलकारी मत भूल जाना जिसने अपने पिता को रसुखदारो के काले कारनामो की भेट चढ़ते देखा है, उस अबला को मत भूल जाना जिसका शील भंग होने के साथ बलात्कार के बाद जान गवाँ दी है।

मत भूलना उस माँ के आँसुओ को जिसने अपने लाल को खोया है सीमा पर, मत भूलना उस पत्नी के सुहाग को जिसकी बलि शासकीय सेवा के दौरान सही कार्य करने पर नेताओ ने ले ली, आप मत भूल जाना उस मासूम किलकारी को जिसे माँ-बाप ने इसलिए मार दिया क्यूकी वह बेटी थी ...

हे नायक! कूटनीति के रास्ते से वतन के आचमन का कोई नुकसान ना हो और जो दहाड़ चुनाव के पूर्व तुमने रखी थी कम से कम उसे मत भूल जाना, वरना देश की जनता बेचारी भविष्य में उम्मीद करना भी छोड़ देगी।

आपने ही उम्मीद जगाई है हर उस भारतीय में जो हताश हो चुका था हालातो के मंज़र से गुज़रते-गुज़रते ...

पड़ोसी देशों की बढ़ती दादागिरी पर पूर्व की सरकार की चुप्पी ने देश के हर उस व्यक्ति के दिल को कचोटा है जिसके दिल में भारत बसता है, किंतु आपने उस भारतवंशी के दिल में अरमान जगाए है कि ईंट का जवाब पत्थर होगा।

अब वह सीमा पर जवानो के सिर कटते हुए नहीं देखना चाहता, हिन्दुस्तान की सीमाओं को सुरक्षित देखना चाहता है ... भारत की उम्मीद के दीये बने हो तो याद रखना की उम्मीद को तोड़ना मत, क्योंकि गर उम्मीद एक बार टूट गई तो दोबारा किसी और पर विश्वास नहीं होगा...

अब तो सभी ताकते तुम्हारे पास है... हर शक्ति है तुम्हारे पास...

अब तुम जो चाहे कर सकते हो... देश को कम से कम अच्छे दिन का एहसास करवा दो...

तुम्हारे पास संवैधानिक बल है...

हमे आशा का सूरज दिखा दो अब...

याद रहे नायक! तुम्हे संविधान सौपा है!

अच्छे दिनो की उम्मीद में।