अभनै रा किस्सा / मोहन आलोक / कथेसर
मुखपृष्ठ » | पत्रिकाओं की सूची » | पत्रिका: कथेसर » | अंक: अप्रैल-जून 2012 |
दुनियां री सगळी महान भासावां मांय विदूषक हुया है, फर्क फकत इत्तो रैयो कै जिका लिपिबद्ध हुग्या बै आज भी अमर है, जिका नईं हुया, बां नै आपां भूलग्या। बां रा बै किस्सा, बां री बै कहाणियां कोई दूजै ढंग सूं कोई दूजै नांवां सूं का तो साधारण चुटकलां मांय बदळगी का बां रै साथै कोई नामी विदूषक रो नांव जुड़ग्यो अर बै बीं रै नांव खताइजग्या। अरब देसां रै मुल्ला नसरूद्दीन, चीन रै आफन्ती, तमिल रै तेनालीराम, हिन्दी रै बीरबल रा उदाहरण आपणै सामैं है। प्रसिद्ध नामां रो आधार मिल्यो तो दुनियां-भर रा किस्सा बां रै खातै में चल्या गया। कोई अेक बात रै बीरबल रो भोग लगा दियो तो दूजै उणी रै मुल्ला नसरूद्दीन रो। युग रा महान चिंतक आचार्य रजनीश (आशो) संसार-भर रा सगळा चुटकला मुल्ला नसरूद्दीन रै नांव लिख दिया तो लिख ही दिया। पालै कुण? कापीराइट कणा हुवै है कोई कनै इसी चीजां रो?
अभनै नाई रा किस्सा टाबरपणै मांय सुण्या हा बडै-बडेरां सूं। याद रैया। याद रैवण रो मोटो कारण आप म्हारी जातिगत आत्मीयता मान सको हो। घर रा लोग अभनै री बात इयां करता ज्यूं अभनो कणांई घरां आयो हुवै, बै उण सूं मिल्योड़ा हुवै। बडो हुयो तो अभनै री कई बातां भासा मांय, समाज मांय, कैवता दांई प्रचलित लाधी। 'अभनै री तो पून ई पून है' न फगत राजस्थान बल्क थोड़ै सै भासा भेद सूं हरियाणै अनै पंजाब मांय भी बात-बात मांय बरतीजती। बूढै बुजरगां सूं पूछताछ सरू करी तो अेक री जिग्यां दो विदूषक लाध्या, अभनो नाई अर मोकम खाती। दोनूं ई झुंझुनू जिलै रै चिड़ावै या चिड़ावै रै आसै-पासै रा।
अभनो अेकलो कोनी हो। ऊंकै सागै अेक मोकम खाती भी हो। खुडाणियै रा स्री राम रिछपाल जी जांगिड़ जाणकारी दिनी। औसत्या है, 90 बरस।
थारा देख्योड़ा है के? म्हूं बूझ्यो।
ना, देख्योड़ा कोनी हा। सुण्योड़ा है, पण हा दोनूं चिड़ावै का ही। बां बतायो अर फेर साथै ई अेक किस्सो।
अेक बर लुहारू नवाब कैयो कै मनैं कोई हँसा देवै तो मुंह मांग्यो इनाम द्यूं। घणी ई कोसीस करी, पण बो हांस्यो कोनी। जद न्यूं बोल्यो कै देखो रै इनाम देवण सै डरतो नवाब हांसै कोनी। जद नवाब हांस्यो।
बीं नै बुलायो हो? अभनै नै या मोकम नै? म्हूं बूझूं।
न्यूं मनै पक्को पतो कोनी पण थो आं में ई सैं। दोनूं इसा था कै भैण-बेटी सैं भी मजाक कर लिया करता।
लुहारू नवाब री बात करां तो सौ साल रै मांय-मांय री बात हुवणी चाइजै। संवत 1966 मांय लुहारू नवाब हुया करतो। पिताजी बताया करता कै छियासठ री साल नामी मतीरा हुया हा। अर म्हारै गांव (किशनपुरै) रा ठाकर च्यार मतीरा लुहारू नवाब नै भेंट कर्या हा। नवाब कांटो मंगा'र तुलवाया हा। मतीरा इसा हुया कै पैका चाल्या करता कै बागड़ मांय अेक जणै अेक मतीरै रै नाकू रै ऊंट बांध राख्यो है। कोई मतीरो उठा लेवै तो ऊंट ले जावो।
अभनो ठीक-ठीक कणां हुयो अर बो चिड़ावै रो हो या चिड़ावै रै आसै-पासै कोई गांव रो, ओ सोध रो विषय हू सकै है। पण अभनो हुयो है अर झुंझुनू जिलै मांय हुयो है इण बात सूं कोई मुकर नीं सकै। इणी सोध-भाल मांय म्हनै अब तांई अभनै रा सौ रै अड़ैगड़ै किस्सा लाध्या है। अै किस्सा इणी भांत या किणी और भांत, अभनै रै नांव सूं या किणी और नांव सूं सुण्योड़ा आपरै आगै आयोड़ा हू सकै है। नामी नांवां रै साथै प्रक्षेप हूवणो कोई नई बात नईं है। म्हारी भासा रा महान ग्रंथ- पृथ्वीराज रासो अनै वेलि क्रिसण रुकमणी री तांई मांय जणा प्रक्षेप मिलै है तो अभनै रै किस्सा या अभनै री ग्यान गिणती ई कांई है! अै किस्सा आपरा है, कहाणियां आपरी है। म्हारो तो है तो फकत आपरै साम्ही परोसण रो प्रयास है। अभनै री तो पून ई पून है।
अभनै री तो पून ई पून है
अभनै कनै हळ-डांडै रो सरतर कोनी हो। गरीब आदमी। सो साढ सिर मेह हुयो तो आपरो खेत बुहावण तांई उण हळां री ल्हास करण री तेवड़ी। गांव रै पांच-सात हाळियां नै नूंत्या।
गांव रा बोल्या- अभना! इयां ई मांग-तांग'र हळिया घलवा ले। तूं गरीब आदमी है, ल्हास करसी तो हाळियां नै घालसी कांई?
अभनो बोल्यो- लूखी-मिस्सी, मिरच-रोटी जिसी म्हारै सूं जुड़सी। जीमा देस्यूं। पण करस्यूं तो ल्हास ई।
दूजै दिन ल्हासिया जा'र अभनै रै खेत मांय हळ जोड़ दिन्धा।
लारै सूं अभनो पूग्यो, अर सगळै ल्हासियां रै घरां सूं बरतन मांग'र लियायो। कोई रै अठै सूं थाळी, कोई रै लोटो, कोई रै टोकणी तो कोई रै गूंणियो। ल्हास है तो बरतण तो चाइजै ई। लुगायां राजी-राजी आपरा बरतण अभनै नै सूंप दिन्धा। बरतणां री बोरी भर'र अभनो बाणियै री दुकान उपर पूग्यो। बरतणां नै सेठ रै अडाणै धर्या अर घी, खांड, चावळ मोकळो ल्हास रो सीधो तुलवा लिन्धो।
दोपारै हाळियां हळ छोड्या इत्तै अभनो आपरी रांधा-पोई कर'र खेत पूगग्यो। आछा खांड-चावळ अनै उपर सूं धपाऊ रो घी। सगळी चीजां रा आगड़ा-ठाट।
ल्हासिया जीमण लाग्या तो अभनो अेक पंखो ले'र ऊभो हुग्यो अर बांनै पून घालण लाग्यो। ल्हासिया बोल्या- अभना! घणी ई पून चालै है, पून नै के गिरमी है। पून रा क्यूं फोड़ा देखै। रैवण दे।
अभनो बोल्यो- नईं, पून तो म्हूं घाल सूं ई। अभनै री तो पून ई पून है। बाकी माल थारो ई है।
दूजै दिन लोग आपरा बरतण लेवण नै आया तो बोल्यो- भाई, बरतण तो बाणियै रै अडाणै पड़्या है। थानै रींड हुवै तो पीस दे'र छुडा ल्यावो।
पटवारी क्यूं बुलावै
चौधरी अभनै सूं खार खायोड़ो हो। सो आपरै बेटै रै साख सारू बटाऊ आया तो अभनै नै कोनी बुलायो।
गांव रा तो बातां रा चासड़ू, बोल्या- अभना, चौधरी रै बेटै रै साख सारू बटाऊ आयोड़ा है, अर थांनै बुलायो ई कोनी। नाई बिना सगाई? बातड़ी जची कोनी।
अभनो बोल्यो- जची कोनी तो इसा ई बूजिया ब्याहसी!
गांव रा बोल्या- दिखां तो......?
अभनो पूग्यो अर चौधरी रै फळसै आगे कर निसरतै गळी मांय सूं हेलो पाड़्यो- चौधरी जी! थानै पटवारी बुलावै हो!
चौधरी बटाऊवां मांय बैठ्यो बतळावै हो सो इयां चाणचक हेलो सुणÓर सुधभाऊ ई पूछ्यो- अभना! पटवारी क्यूं बुलावै हो?
अभनै नै और कांई चाइजै हो। पड़तो ई बोल्यो- म्हारै तो आप समझ मांय कोनी आई चौधरी जी, बीघो जमीं म्हारै नीं अर बीघो थारै नईं, आपां नै पटवारी क्यूं बुलावै?
अभनै री बात सुण'र बटाऊवां रै काठी जचगी कै चौधरी भूमिहीण है। सो तो तिरै बूचकी तीखा कान! पाछा बावड़'र ई कोनी देख्यो।
छूटमे'ल
अभनै रै अेक बूढी-सी डागड़ी ही। 'कमरी' न्यारी। आधो घंटो तो बैठती लगा देवती। अभनो उण सूं लारो छुडावणो चावै हो। हिसार डांगरां रो मेळो मंड्यो तो अभनो डागड़ी नै ले'र मेळै पूग्यो। सोच्यो- कोई देसी इत्ता ई चोखा। मेळै मांय सांढ रा गाहक लाग्या- बोल्या, सांढ रो मोल बता चौधरी! लेणी-देणी बात कर?
अभनो बोल्यो- लेणा देणी कांई है, सांढ रा रिपिया लेसूं सौ। कम न जादा।
गाहक बोल्या- गूंगा भाई, सौ री तो मेळै मांय दो दांत टोरड़ी मिलै है! राम लगती बात कर।
अभनै सोच्यो- बातड़ी निसर तो गई कावळ ई मूंडै सूं......पण खैर। गाहक जावण लाग्या तो लारै सूं हेलो पाड़्यो- बोल्यो, मोल ई मोल सुण्यो है। यारां री छूटमे'ल ई देखी के? ......धारणी रा रिपिया छोडस्यूं.....साठ! लेवणी है तो बोलो।
घी खिंडै है
अभनै री घरवाळी अेकर घर रो आ'र भार उतारण सारू बामणां नै जिमावण री तेवड़ी। अभनै रै अै धरम-पाप रा टूंडर जचै तो घणाई कोनी हा। पण घर मांय कळेस करणो ई चोखो कोनी।
अभनै री घरवाळी क्यूं कसर राखै ही। उण ऊजळा भात रांध्या। धपाऊ रै घी खांड सूं मनवार तेवड़ी। बामणां नै जिमावै अभनो! लोटै सूं घी घालै। जोर कांई करै!
च्यानणो कीं चिड़पड़ो-सो ई हो। अेक पंडत री थाळी मांय घी घालण लाग्यो तो गरळको कीं बेसी लागग्यो। थोड़ो-सो घी थाळी सूं बारै खिंडग्यो।
पंडत बोल्यो- अभना! सावळ घाल! घी बेकार खिंडै है।
अभनो बोल्यो- पंडज्जी! म्हारै कानी रो तो सगळो बेकार ई खिंडै है। थाळी रै मांय खिंडै है बो किसो पाछो आवै है!
कोई तिरती डूबती आवै तो
अभनै अेकर गंगाजी जावण री तेवड़ी। लाम्बी जातरा। सो राह री रोट्यां सारू अभनै री घरवाळी कीं बाजरी रो आटो, लूण, मिरच अनै कीं गुंवार फळियां री सूक्योड़ी पल्लै बांध दिन्धी। बोली- गैलै मांय किणी सराय, धरमसाळा मांय थमणो हुवै तो का तो किणी सूं पुवा लेया, का पो'र खा लेया।
लाम्बी जातरा। सो अभनै नै टेम तो घणो ई लाग्यो पण राजी-खुसी पूगग्यो, हरिद्वार।
तीन-च्यार दिन तांई आछा सिनान ध्यान कर्या। आछो घूम्यो-फिर्यो। पंडां नै ई पूण-पावलो हूब सारू दियो। पाछो आवण लाग्यो तो अभनै नै याद आयो कै हरिद्वार आवै जिका गंगा माई रै निमत कीं न कीं छोड्या करै है। कनै और तो कीं हो कोनी, मुट्ठी अेक सूक्योड़ी गुंवार री फळी बंच्योड़ी ही। उण बां फळियां नै ई गंगा माई मांय तिरा'र हाथ जोड़ लिया कै आज सूं म्हूं गुंवार फळी खावणी छोडी।
पाछो गांव पूग्यो। संझ्या रोटी जीमण नै बैठ्यो तो थाळी मांय बो ई गुंवार फळ्यां रो साग। अभनै रो खावण नै जी तो घणो ई करै, पण छोड्योड़ी। सो घरवाळी नै बोल्यो- गुंवार फळी खावणी तो म्हूं छोडियायो! गुंवार फळ्यां रो साग आज सूं बंद है!
अभनै री घरवाळी बोली- आपणै अठै ओ ई तो अेक लगावण है, ओ ई थे छोडियाया। कियां पार पड़सी?
अभनै पांच-सात दिन तो कियां ई धिकाया। अेक दिन बोल्यो- तू इयां कर्या कर, साग तो भलाईं रांध लिया कर। पण म्हनै ना घाल्या कर।
अभनै री घरवाळी रोज साग रांधै। सगळा घर रा खावै। अभनो देखै। पांच-सात दिन तो काढ्या जी काठो कर'र, पछै अेक दिन बोल्यो- इयां कर्या कर, म्हनै साग रो पाणी-पाणी घाल दिया कर। फळी ना आवण दिया कर। म्हैं पाणी मांय रोटी चोप-चोप'र खा लिया करसूं।
अेक दिन घरवाळी साग रो पाणी घालण लागी तो उणनै लाग्यो ज्यूं पाणी रै साथै अेकाध फळी आयगी। बोली- म्हूं पाणी घाल्यो तो सावळ नितार'र ई है, पण अेकाध फळी आयगी हुवै तो थे देख'र काढ देया।
अभनो बोल्यो- अेकाध री कोई आंट कोनी। आपरै मतै ई कोई तिरती-डूबती आवै तो भलाईं आ जावण दिया कर।