अभनै रा किस्सा : दूजी खेप / मोहन आलोक / कथेसर

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मुखपृष्ठ  » पत्रिकाओं की सूची  » पत्रिका: कथेसर  » अंक: जुलाई-सितम्बर 2012  

घी नै कुण देख्यो है

गांव रा लोग बैठ्या हथाई करै हा। घी री बात चाल पड़ी- घी किसो’क हुवै है?

बां मांय सूं अेक रो घी कणाई जेठ-बैसाख रै महिनै मांय देख्योड़ो हो, बोल्यो- घी पाणी जिसो हुवै है, नीतर्योड़ो, मांय मूंडो देख लेवो भलाईं।

दूजै रो घी कणाई सावण-भादवै मांय देख्योड़ो हो। बो बोल्यो- घी राबड़ी जिसो हुवै है। घुळघुळियो-सो। सबड़को मार ल्यो भलाईं।

तीजो बोल्यो- थारो दोनुवां रो घी देख्योड़ो ई कोनी। उणरो कणाई सियाळै मांय घी देख्योड़ो हो, बोल्यो- पत्थर जिसो हुवै है, घी। हाथ सूं कुचरो तो नूं थोर लाग जावै, जिसो।

अेक दूजै, अेक दूजै री इसी बात काटी कै झोड़ हुवण नै त्यार हुग्यो।

अबै अभनै री बारी आई, बोल्या- अभना! तूं बता, घी किसो’क हुवै है?

अभनो गतागम मांय पजग्यो। सोचण ढूक्यो- साचा तो अै तीनूं ई है। अब म्हूं किसो’क बताऊं? बोल्यो- भाई! घी नै अनै राम नै कुण देख्यो है? म्हनै तो ठाह कोनी।

म्हूं दिनूगे दही ले लेसूं

अभनै रै घरां उण रो सगो आयोड़ो हो। छोरी रो सुसरो। खातरदारी तो हुवणी ई ही। संझ्या जीमण बैठ्या।

अभनै री घरवाळी दूध री कढावणी अनै खीचड़ै री हांडी आपरै कनै मेल’र पीढै माथै पटेलण हुई बैठी। सगै कनै बैठ्यो अभनो जीमै। बटाऊ आयोड़ो हुवै तो उण री मनवार तो करणी ई पड़ै। कोई कंजूसी बरतीजै तो घरवाळां रै साथै भाऊं बरतीजो।

अभनै देख्यो, बटाऊ रै खीचड़ै मांय खाडो कर’र घी घाल्योड़ो, जणां कै उण री थाळी मांय नाम सो ई कर्योड़ो।

घी घाल दिन्धो तो दूध री टाळ मतैई समझ लेवणी चाइजै। अेक ई चीज मिलै। पण बटाऊ नै इण बात री छूट हुवै।

सगै घी साथै खीचड़ी जीम लिन्धी तो अभनै री घरवाळी कढावणी मांय मिरियो दे’र बोली- ल्यो सगाजी! दूध घालूं।

सगै थाळी आगै करी तो सगै री देखा देखी अभनै ई आपरी थाळी आगै कर दिन्धी।

अभनै री थाळी देख’र घरवाळी मिरियै सूं कढावणी रा कानां ठरकाया, अभनो समझग्यो, उण झट आपरी थाळी पूठी सिरकाई। बोल्यो- दूध रैवण दे! म्हूं दूध पांती रो दिनूगे दही ले लेसूं।

लिहाज

गांव मांय नुंवो पटवारी आयो।

नुंवो-नुंवो इस्कूल सूं निसर्योड़ो छोरो। सो बात-बात मांय हैन-तैन करै। हिन्दी छांटै।

अभनै नै इण बात सूं चिढ ही।

अेक दिन पटवारी अभनै नै बुलायो। बोल्यो- सेव बनानी है। साबुन वगैरह है क्या तुम्हारे पास?

अभनो बोल्यो- है सा, आप जोगी तो है! आओ, बैठो।

पटवारी नै साम्हीं बैठा’र अभनै बाळां सूं भर्योड़ी साबणवाळी बाटकी काढी। बाटकी मांय दो-तीन बर थू थू कर’र थूक’र बुरछ बीं रै मांय रगड़ण लाग्यो।

पटवारी लाल-पीळो हुयो। बोल्यो- यह क्या करता है मूर्ख! थूक से हजामत बनाएगा?

अभनो बोल्यो- सा’ब! आ तो आपरी लिहाज करी हूं कै बाटकी मांय थूक्यो है, बाकी लोगां रै म्हूं सीधो मूंडै उपर ई थूक दिया करूं हूं।

बेगार माफ

गांव-ठाकर घणै ई दिनां सूं बीमार हो। घणखरो’क तो बेसुध ई रैवतो। ठाकर रै परवार रा लोग दिन मांय तो उण री घणी ई सेवा करता, पण रात रूखाळी मांय रोज-रोज कटावणी बां रै ई बस री कोनी ही। रावळै इण सारू गांव सूं बेगार लेवणी सरू कर राखी ही। घर दीठ रोजिना अेक मिनख आवै, अनै रात रो जाग’र ठाकर री रूखाळी करै।

अभनो अेक तो बेगार सूं बियां ई चिढतो। दूजै कोई बेसुध बेमार साथै जाग-जाग’र रात काटणी बियां ई दोरी हुवै।

अेक दिन अभनै री बारी आई। बो गयो तो साथै आपरी रिछानी ई लेयग्यो। बात फकत रात-रात जागतो रैवण री ही। दूजो कोई काम कोनी हो। सो रिछानी देख’र ठुकराणी पूछ्यो- अभना! आ रिछानी क्यां तांई ल्यायो है?

अभनो बोल्यो- साय, ठाकर जे रात रा चलता रैया तो दिनूगै सुंवार तो करणी पड़सी? ...आ सोच’र म्हूं रिछानी साथै ई ले आयो।

ठाकर बीमार तो घणोई हो, पण अन्त पन्त ठुकराणी रो सुहाग हो। अभनै री बात सुण’र उण रै तेल रा सा छांटा लाग्या। बोली- मरज्याणा नाईड़ा! तूं ठाकरां रो इतणो बुरो तकै है? जा भाज अठै सूं। कोनी चाइजै म्हांनै तेरी बेगार।


वकील म्हूं क्यूं करूं

अभनो अेकर कोई मुकदमै मांय फसग्यो। आगै नाजम कोई अंग्रेज हो। अभनै रा बयान हुया तो अभनै इसी लप्पा-लोळे लगाई कै नाजम तो नाजम, अभनै रै साथै वाळा ई कीं कोनी समझ्या।

नाजम पेसकार नै आपरी अबखाई बताई। पेसकार अभनै नै बोल्यो- अभना! नाजम सा’ब कैवै है कै थारी बात बां री समझ मांय कोनी आई। तूं कोई वकील करले, जिको नाजम सा’ब नै थारी बात समझा सकै।

अभनो बोल्यो- बात नाजम सा’ब रै समझ मांय कोनी आई तो वकील नाजम सा’ब करो, म्हूं क्यूं करूं?

संकड़ेलो क्यूं

अभनो अर बींरो अेक भायलो अेकर कोई गांवतरो कर’र पाछा आवै हा। लुहारू रै टेसण पूग्या तो ठाह पड़्यो कै बा गाडी तो निसरगी। दूजी अब दिनूगे पांच बजे मिलसी। दूजो कोई साधन कोनी हो, सो दोनुवां नै प्लेटफार्म उपर रात काटणी पड़ी। दोनुवां धरतियां ई आपरो खेसलो बिछायो अर सोयग्या। अभनै रो भायलो सोवतो कीं दोरौ। सोयां थोड़ी ई ताळ हुयी कै उण तो आपरा गोडा भेळ्या कर्या अर अभनै री छाती मांय देय दिना।

अभनै बीं नै जगा’र अेकर पासै कर्यो, दूसर कर्यो, पण बीं री तो बा हीहरकत। तीसर अभनै बींनै गिथोळ’र जगायो, बोल्यो- खड़्यो हू, थोड़ी माची री दावण कसल्यां।

भायलो आंख्यां मसळतो ई बोल्यो- माची? कठै है माची? घरतियां तो सूता हां।

अभनो बोल्यो- यार धरतियां सूता हां तो फेर संकड़ेलो क्यूं, परै सी सिरकज्या। धरती सूं किसो नीचै पड़ै है?