अभागन ऐसी जली कि कोयला भई न राख / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
अभागन ऐसी जली कि कोयला भई न राख
प्रकाशन तिथि : 21 नवम्बर 2018


भारत अंग्रेजों के अधीन था। उस समय भारत की खदानों से निकला कोयला जापान को बेचा गया। कुछ वर्ष पश्चात यही कोयला बम बनकर अंग्रेजों के देश और उनके अधीन देशों पर बरसा। इस पुरानी बात को याद करने का कारण यह है कि चीन भी भारत से कोयला खरीदता रहा है और शायद आज भी यह जारी है। संभव है कि चीन भारत पर इसी कोयले से बनी आग की वर्षा करे। हमारे देश के महान नेता की मूर्ति भी चीन में बनाई गई है और विश्व में सबसे ऊंची मूर्ति लगाने की गौरव गाथा सुनाई जा रही है। श्रोता मगन है, वक्ता गगन हुआ जा रहा है। सारी व्यवस्थाएं चौपट कर दी गई हैं। 'अंधेर नगरी अंधा राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा' कहावत आज घटित हो रही है।

ज्ञातव्य है इसी नाम का भारतेन्दु रचित नाटक पूरे देश में मंचित किया गया था। आज पूरा देश रंगमंच बनाया जा चुका है और 'अंधेर नगरी..' सतत प्रस्तुत किया जा रहा है। तमाशबीन जनता तालियां बजा रही है। तालियों की खुराक पर पनपे तिलचट्‌टे हर घर में 'हू तू तू' खेल रहे हैं। ज्ञातव्य है कि 'माचिस' नामक फिल्म की सफलता के बाद गुलजार साहब ने 'हू तू तू' नामक फिल्म बनाई थी। इसकी असफलता से उनका 'जलसाघर' बंद हो गया परंतु किसी एक खुली खिड़की से उनकी पुत्री मेघना गुलजार ने बहुप्रशंसित फिल्म 'राजी' बनाई है। कोई भी जलसाघर कभी पूरी तरह से बंद नहीं किया जा सकता। उसके बंद दरवाजे से भी प्रकाश की क्षीण रेखा भीतर प्रवेश कर जाती है। वर्तमान में तो व्यक्ति की देह भी जलसाघर की तरह है और हुड़दंगियों द्वारा सील किए गए दरवाजों से भी कुछ न कुछ किसी तरह अभिव्यक्त हो ही रहा है।

कोयला घपला उजागर होने पर एक सरकार गिर गई। सबसे बड़ा परिवर्तन यह हुआ कि अब घपले कोई मुद्‌दा ही नहीं रहे। नारेबाजी और तथाकथित धार्मिकता की लहर ने सब कुछ डुबा दिया है। यह लहर इतनी तीव्र गति से प्रवाहमान है कि इसने सारे घाट व कूल-किनारे तोड़ दिए हैं। यह समुद्र में परिवर्तित हो रही है।

कुछ लोगों ने बैंकों से कर्ज लेकर पावर प्लांट रचे थे परंतु उसमें बनाई गई बिजली को लोकप्रियता की खातिर सस्ते दामों पर बेचने पर बाध्य किया गया। भ्रष्ट व्यवस्था में बिजली की चोरी भी होती है। सार्वजनिक उत्सव के लिए हर गली-मोहल्ले में मंच बनाए जाते हैं, जिन्हें रोशन करने के लिए बिजली तारों से सीधे चोरी की जाती है। राजनीतिक पावर में बने रहने के लिए बिजली पावर की चोरी को जायज करार दिया गया है। हमारी कोयला खदानों को बांझ बना दिया गया है। सब तरह के अवैध खनन जारी हैं। नदियों के तट से रेत चुराया जाना कभी रुका ही नहीं। अब चोरों ने अपने सिर पर दूसरे रंग की टोपी लगा ली है। गिरगिट इनसे सीखे कि रंग कैसे बदलते हैं।

इस गहरी समस्या का निदान यह है कि बिजली उत्पादन में खर्च किए गए धन से कम धन में इसे उपभोक्ता को नहीं दिया जाए परंतु लोकप्रियता की खातिर यह व्यावहारिक फैसला हुकूमत ले नहीं सकती, क्योंकि चुनाव जीतने से अधिक महत्वपूर्ण कुछ नहीं माना जा रहा है। सत्ता की चाह की खातिर बिजली शक्ति को घाटे का काम बना दिया गया है। बिजली उत्पाद के राजनीतिकरण के कारण यह संकट गहरा हो गया है। प्राइवेट बिजली संयंत्र ठप कर दिए जाने के कारण ही बैंकों के कर्ज वापस ही नहीं आए। आज अधिकांश बैंक ही दिवालिए हो गए हैं। महान नेता तिलक ने गणपति उत्सव गली मोहल्ले में आधुनिक ढंग से मनाने की महान परम्परा प्रारंभ की।

उन दिनों सार्वजनिक गणेश उत्सव के मंच से राष्ट्र की स्वतंत्रता का संदेश दिया जाता था। यह तिलक का राजनीतिक मास्टर स्ट्रोक था। अब स्वतंत्रता के पश्चात हम सार्वजनिक गणेशोत्सव मनाते हैं परंतु कहीं-कहीं अवैध ढंग से बिजली ली जाती है। क्या भगवान श्रीगणेश इस तरह के कार्य से प्रसन्न होते हैं? बुद्धि के देवता को चोरी की गई बिजली दिया जाना इसे रेखांकित करता है कि यह तर्कहीनता एवं आस्थाहीन दिखावे का माध्यम बना दिया गया है। चोरों को थानेदार बना देना अगला चरण है।