अभिनय क्षेत्र में करण देओल का प्रवेश / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
अभिनय क्षेत्र में करण देओल का प्रवेश
प्रकाशन तिथि :25 मई 2017


सनी देओल अपने सुपुत्र करण देओल को 'पल पल दिल के पास' नामक फिल्म में प्रस्तुत कर रहे हैं और इस फिल्म की शूटिंग कुल्लू-मनाली में जारी है। शूटिंग का पहला दौर ही पचास दिन का है। सितारा पुत्र की पहली फिल्म का बजट असीमित होता है और समय पर भी कोई पाबंदी नहीं होती। फिल्म माध्यम में एक सही शॉट के लिए पांच प्रयास करने होते हैं परंतु सितारा पुत्र की पहली फिल्म में दस-बीस शॉट भी लेना पड़े तो भी परवाह नहीं की जाती। सितारा पुत्र जिस तंदूर में पकता है, उसकी आंच धीमी और लंबी होती है। एक उद्योग में नया प्रोडक्ट बाज़ार में लाने के लिए मार्केटिंग की योजना बनाई जाती है। सितारा पुत्र भी प्रोडक्ट की तरह रचा जाता है। अधिकतम लोगों को पसंद आए, ऐसा प्रोडक्ट बड़ी सावधानी से गढ़ा जाता है।

फिल्म का नाम विजय आनंद निर्देशित एवं धर्मेंद्र अभिनीत फिल्म से लिया गया है। यह बेहतर हो अगर सनी देओल विजय आनंद की सारी फिल्में बार-बार देखकर स्वयं को तैयार कर सकें। इस मदरसे में उन्हें जाना ही चाहिए था। विजय आनंद के सिनेमा में युवा ऊर्जा और उत्साह के साथ समझदारी का दृष्टिकोण भी मौजूद है। उनकी 'नौ दो ग्यारह,' 'काला बाजार' और 'गाइड' अत्यंत मनोरंजक फिल्में हैं और फॉर्मूले के दायरे में ताज़गी का समावेश किया गया है। फिल्म 'तेरे घर के सामने' में विजय आनंद ने एक गीत नायक-नायिका की कुतुब मीनार यात्रा पर फिल्माया है। कुछ शूटिंग कुतुब मीनार पर की गई और फिर कुतुब मीनार के भीतरी भाग में सेट लगाया गया।

\देओल एवं आनंद परिवार पंजाबी है परंतु देओल लस्सी पीने वाले ठेठ पंजाबी हैं और पाश्चात्य शिक्षा में ढले आनंद शैम्पेन पीने वाले लोग हैं। केवल बड़े भाई चेतन आनंद की कुछ शिक्षा गुरुकुल कांगड़ी में भी हुई थी। बहरहाल धर्मेंद्र के देओल घराने की छवि एक्शन नायकों की रही है परंतु धर्मेंद्र ने सभी प्रकार की भूमिकाएं अभिनीत की हैं। वे एक्शन, रोमांस और हास्य सभी प्रकार की भूमिकाओं का विश्वसनीय निर्वाह कर चुके हैं। उन्होंने भ्रष्टाचार का विरोध करने वाली पहली फिल्म 'सत्यकाम' में भी अभिनय किया है। उनके सुपुत्र सनी देओल ने इतनी विधिधता प्रस्तुत नहीं की है। वे 'ढाई किलो के मारक हाथ' की छवि से बाहर नहीं निकल पाए हैं। अब उनके सुपुत्र करण देओल इस काल खंड में अभिनेय क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं, जब फूहड़ता और तकनीकी जगलरी से फिल्में बनाई जा रही हैं। तर्कहीनता का उत्सव मनाने वाली 'बाहुबली' को आदर्श माना जा रहा है। अत: करण देओल को भी कुछ इसी तरह प्रस्तुत किया जा सकता है। हमारे फिल्मकार ताज़ा सफलता की नकल करने का प्रयास करते हैं। 'बाहुबली' एक तरह से मायथोलॉजी का विकृत स्वरूप है। अत: सनी देओल अपने सुपुत्र के नाम करण (कर्ण) की तरह महाभारत के पात्र का आधुनिक स्वरूप क्यों नहीं प्रस्तुत कर रहे हैं। स्पष्ट है कि नामकरण के समय महाभारत उनकी विचार प्रक्रिया में मौजूद था। आज आधुनिक परिवेश में भी महाभारत के विलक्षण पात्र कर्ण की प्रेरणा से नायक छवि रची जा सकती है। दरअसल सारी पटकथाओं की गंगोत्री महाभारत हमेशा रही है। वेदव्यास पटकथा पाठशाला के भी पहले गुरु माने जा सकते हैं।

द्रौपदी के स्वयंवर में कर्ण को सूत-पुत्र कहकर भाग नहीं लेने दिया गया अन्यथा वे द्रौपदी के पति होते। इसी तरह युद्ध शुरू होने की पूर्व संध्या पर माता कुंती ने कर्ण को उसके जन्म का रहस्य बताकर उसे पांडवों का ज्येष्ठ भ्राता बताया और आग्रह किया कि वह कौरवों की ओर से नहीं लड़े। कर्ण ने सारे प्रलोभन अस्वीकार किए और मित्रता को परम मूल्य मानकर कौरव के साथ बने रहने की बात की। महान कर्ण यह भी जानता था कि विजय पांडवों की होगी परंतु नमकहलाली और मित्रता उसे सबसे महत्वपूर्ण लगी।महाभारत के बाद संभवत: अर्जुन की वापसी हो सकती है, अन्य पात्र भी पुनरागमन कर सकते हैं परंतु कर्ण का आना असंभव है। हारने वाले पक्ष में कौन जाना चाहता है? विजय और सफलता से ग्रसित समाज स्वयं उस रथ के समान है, जिसका एक पहिया तर्कहीनता के कीचड़ में उलझ गया है। महाभारत में युद्ध नहीं हो, एेसे प्रयास तो स्वयं श्रीकृष्ण ने भी किए थे परंतु कुछ व्यापारी चाहते थे कि युद्ध हो, क्योंकि युद्ध लाभ देने वाला व्यापार है और शांति घाटे का सौदा है। आज भी भारत-पाक को भिड़ाए रखे के जतन जारी हैं।