अभिमानी मेंढकी / गिजुभाई बधेका / काशीनाथ त्रिवेदी

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक मेंढकी थी। उसने एक मेंढक से ब्याह किया। एक बार मेंढकी हाथ में छाछ की दोहनी लेकर बाजार से छाछ लाने निकली। रास्ते में उसको एक हाथी मिला। नई दुलहन बनी मेंढकी को अपने रुप का थोड़ा अभिमान हो आया। उसने हाथी से कहा:

ओ, छपर पगे हाथी!

ज़रा देखकर चल,

नहीं तो कीमती रतन कुचल जायगा।

मेंढकी की शेखी भरी बात से हाथी को गुस्सा आ गया और उसने कहा:

ओ, फूले पेटवाली मेंढकी!

भगवान तुझे देखता है।

हाथी ने मेंढकी बाई को ‘फूले पेटवाली’ कहा, इससे अपने रुप का अपमान हुआ जानकर मेंढकी ने अपने पति मेंढक से कहा:

ओ बाड़ में बैठे राजा जी!

यह छपर पगा हाथी,

मुझको ‘फूले पेटवाली मेंढकी’ कहता है।

मेंढक ने सोचा कि यह मूर्ख मेंढकी घमण्ड में आकर कुचल जायगी। इसलिए अपना और मेंढकी का मान रखते हुए मेंढक ने कहा:

इधर आ जाओ, कोमलांगी गोरी!

हाथी झख मारता है।