अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ओर सामाजिक दायित्व / जयप्रकाश चौकसे

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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ओर सामाजिक दायित्व
प्रकाशन तिथि : 29 जनवरी 2013


कमल हासन की 'विश्वरूपम' को सेंसर बोर्ड का प्रमाण-पत्र मिलने के बाद भी प्रदर्शित नहीं होने दिया गया। मुस्लिम समाज के किसी वर्ग द्वारा आपत्ति ली गई है। कमल हासन का कहना है कि सेंसर की कमेटी में मौजूद मुस्लिम सदस्यों को फिल्म में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लगा। प्रदर्शन पूर्व ही जाने कैसे आपत्ति लेने वालों ने जान लिया कि फिल्म में कुछ आपत्तिजनक है। इसके बाद प्रकरण अदालत में पहुंचा, जहां फिल्म देखने के बाद फैसला देने की बात कही गई। इसका मतलब है कि सेंसर बोर्ड के प्रमाण-पत्र का कोई अर्थ नहीं है। ज्ञातव्य है कि वर्षों पूर्व गोविंद निहलानी की 'तमस' के एक भाग के दूरदर्शन पर प्रदर्शन के बाद इसे रोकने के एक अदालती आदेश के खिलाफ गोविंद की याचिका पर उच्च अदालत ने रविवार को चार घंटे की 'तमस' देखी और फैसला दिया कि इसका प्रदर्शन जारी रहना चाहिए। आज तक इस तरह के प्रतिबंध और तथाकथित अश्लीलता के आरोप प्राय: अदालतों ने खारिज किए हैं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रखा है। आज अजब-सा वातावरण है कि सारे प्रकरणों में हमें अदालत जाना पड़ता है। गणतंत्र व्यवस्था के अन्य अंग शिथिल पड़ गए हैं।

एक तरफ यह शिथिलता है, तो दूसरी तरफ जगह-जगह छोटे दलों का उदय हो रहा है और हुड़दंग करके संस्थाओं के फैसलों को नकारा जा रहा है। नुक्कड़-नुक्कड़ सत्ता के ठीये पनप रहे हैं। चंद लोग पूरी व्यवस्था को ठप कर सकते हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन हो रहा है। मुंबई के एक उपनगर की दो युवतियों को ट्विटर पर अपना पक्ष रखने के अभियोग में गिरफ्तार तक किया जा चुका है।

कमल हासन की फिल्म मैंने देखी नहीं है, परंतु सेंसर ने प्रमाणित किया है, इसलिए प्रदर्शन होना चाहिए। सेंसर द्वारा पारित 'फना' भी गुजरात में प्रदर्शित नहीं हुई थी और 'जोधा अकबर' भी राजस्थान में प्रदर्शित नहीं हो पाई। कुछ ठाकुर बहुल क्षेत्रों में राज कपूर की 'प्रेम रोग' का विरोध किया गया था। आपातकाल के समय 'किस्सा कुर्सी का' नामक फिल्म रोक दी गई थी। 'आंधी' का अवैध प्रतिबंध स्वयं इंदिरा गांधी ने खारिज किया। आज आपातकाल से अधिक रुकावटें खड़ी कर दी गई हैं। क्या हम अघोषित आपातकाल में जी रहे हैं? जितने संचार माध्यमों का विकास हुआ है, उतने ही प्रतिबंध उभर रहे हैं। ट्विटर और फेसबुक इत्यादि टेक्नोलॉजी द्वारा विकसित माध्यम भी लोगों को खटक रहे हैं। यह सच है कि इन नवीन माध्यमों के द्वारा लतीफेबाजी हो रही है। व्यक्तिगत पूर्वाग्रह उभरकर आ रहे हैं, परंतु इसके बावजूद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाना चाहिए।

पाकिस्तान की मदिहा गौहर ने शहीद भगत सिंह पर गरिमापूर्ण नाटक पाकिस्तान में मंचित किया। इसी मदिहा गौहर को अपना नया नाटक भारत में प्रदर्शित नहीं करने दिया गया। इस बार वे सआदत हसन मंटो पर नाटक लाई थीं। महज पाकिस्तान की फनकार द्वारा प्रस्तुत मंटो का प्रदर्शन भारत में नहीं रोका जाना चाहिए था। दोनों ही देशों में ऐसे अनेक लोग हैं, जिनके हृदय में नफरत नहीं। परंतु दोनों देशों में एक ही सांस्कृतिक विरासत पर यकीन रखने वाले मायनॉरिटी को अपने-अपने देशों में विरोध झेलना पड़ता है।

भौगोलिक और सियासी सरहदों के परे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी जगह निशाने पर है। संभवत: दुनिया में सहिष्णुता घट गई है। हिंसा अपने विभिन्न रूपों में उजागर हो रही है। यह सच है कि विगत ६७ वर्षों में महायुद्ध नहीं हुआ, परंतु अनेक देशों में अनेक सतहों पर युद्ध लड़े जा रहे हैं। गोयाकि विश्वयुद्ध का काढ़ा खारिज करके लोग यद्ध की होम्योपैथी खुराक ले रहे हैं। शायद सभी देश जानते हैं कि तीसरा विश्वयुद्ध मनुष्य का अंत कर देगा, इसलिए छोटे पैमाने पर विभिन्न आतंकवादी मुखौटों को चढ़ाए युद्ध लड़े जा रहे हैं। टेक्नोलॉजी और अन्य क्षेत्रों में प्रगति हुई, तो वहशत ने भी अय्यार की तरह अपने को बहुरूपिया बनाया है।

आज इन्हें पहचान पाना कठिन हो हा है। किताबों पर भी पाबंदी लगाई जाती रही है। वेटिकन सत्ता भी प्रतिबंधित किताबों की सूची प्रकाशित करता है, परंतु किताब के प्रकाशन और पढऩे पर वेटिकन रोक नहीं लगाता। उनकी लिस्ट ऑफ बुक्स महज एक सूचना है कि इसे न पढ़ें। किताबों पर कानूनी प्रतिबंध लगते रहे हैं। जेम्स जॉयस की 'यूलिसस' लंबे समय तक प्रतिबंधित रही, परंतु बाद में अमेरिका के जस्टिस वूल्जे ने इस पर लगा हुआ प्रतिबंध हटाया। उनके फैसले को ऐतिहासिक माना जाता है। उनका कहना है कि किसी भी रचना का समग्र प्रभाव महत्वपूर्ण है, न कि उसका कोई अंश। इसका आकलन भी जरूरी है कि लेखक का उद्देश्य क्या है? महज पैसा कमाने के लिए लिखी गई रचना के प्रति सख्त रवैया अपनाया जा सकता है। फिल्म में पैसा कमाने के उद्देश्य को रद्द किया नहीं जा सकता, इसलिए समग्र प्रभाव ही महत्वपूर्ण रह जाता है।