अभिषेक कपूर का पाड़ा गया पानी में / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 18 अक्तूबर 2013
अभिषेक कपूर ने सुशांत सिंह को 'काई पो छे' से सितारा हैसियत दिलाई और उन्होंने कपूर की अगली फिल्म 'फितूर', जो चाल्र्स डिकेन्स के 'द ग्रेट एक्सपेक्टेशन' से प्रेरित है, में काम करने की सहमति देने के बाद अब इंकार कर दिया है, क्योंकि 'फितूर' के लिए आरक्षित समय आदित्य चोपड़ा और शेखर कपूर की 'पानी' को दे दिया है। कुछ लोग उस सीढ़ी को लात मार देते हैं, जिसके सहारे ऊपर चढ़े थे क्योंकि हर ऊपर पहुंचा आदमी यह मानकर चलता है कि अब उसे नीचे नहीं जाना है। अत: सीढ़ी की क्या आवश्यकता। शायद जीवन के उतार चढ़ाव की शिक्षा देने के अभिप्राय से ही सांप-सीढ़ी के खेल की रचना की है। पांसों के फेर में 99 पर पहुंचकर आपकी गोट सांप के मुंह में जाकर शून्य पर पहुंच जाती है। हर खेल में कोई उपदेश छुपा होता है और सारे उपदेश तथा शिक्षा खेल के माध्यम से भी प्राप्त हो सकते हैं।
बहरहाल, सुशांत सिंह ने वही किया जो इस महत्वाकांक्षा के दौर में सारे युवा करते हैं और आजकल इसे सही भी माना जाता है। धर्मेंद्र को हिंगोरानी ने प्रथम अवसर दिया था और सुपर सितारा बनने के बाद भी धर्मेंद्र ने हिंगोरानी की अनेक फिल्मों में नाममात्र का धन लेकर काम किया। आज सबसे अधिक मेहनताना पाने वाले सलमान खान भी अपनी पहली सफल फिल्म के सूरज बडज़ात्या की फिल्म 'बड़े भइया' अपने बाजार भाव से कम पर ही कर रहे हैं। इस तरह की वफादारी अब आउटडेटेड मानी जाती है। राजनीति में भी लोकप्रियता के हथकंडों को इस्तेमाल करने वाले नेता अपने बुजुर्ग को धकिया के ही आगे बढ़ रहे हैं और इसे जायज भी माना जाता है।
दरअसल वफादारी विभिन्न तरीकों से परिभाषित होकर सामने आती है। राजनीति में इसी वफादारी की खातिर कुछ लोग स्वतंत्र विचार शैली त्याग करके 'जी हुजूरी' में लग जाते हैं और 'आका' को खुश करने की होड़ शुरू हो जाती है। दल आधारित गणतंत्र व्यवस्था में प्राय: वफादारी को गुणवत्ता समझ लिया जाता है और सदस्य अपने विचार सामने नहीं रख पाता। इस तरह संकरे पोखर में बंधने वाले पानी की ऊपरी सतह पर काई जम जाती है। शैलेंद्र लिखते हैं 'थम गया पानी, जम गई काई, बहती नदिया ही साफ कहलाई'। यह विजय आनंद की 'काला बाजार' के एक महान भजन का अंतरा है। इस खेल में सबसे आश्चर्य की बात यह है कि दरबारी चापलूस राजा की बात बोलते हुए हिज मास्टर्स वॉयस हो जाते हैं और कालांतर में राजा को पता भी नहीं चलता कि कब से वह चापलूसों की जबान बोलने लगा है। दरअसल असहमति के बावजूद सामंजस्य और गांधीजी का सविनय विरोध ही सच्चे गणतंत्र की आवश्यकता है। यह सारा खेल राजनीति ही नहीं वरन् अन्य क्षेत्रों में भी होता है। यहां तक कि परिवार में भी मुखिया चमचों को अतिरिक्त सुविधाएं देने लगता है और दीवार में दरार पैदा हो जाती है। हर व्यक्ति अपनी स्वतंत्र विचार शैली विकसित करे और साहस से स्वयं को अभिव्यक्त करे।
स्वर्गीय यश चोपड़ा को इस बात की महारत हासिल थी कि मनोरंजन जगत के आकाश पट के सूर्योदय के समय ही उभरते सितारे को अवसर देकर हथिया लेते थे तथा उसकी दोपहर का भरपूर दोहन करते थे। उनके सुपुत्र आदित्य के पास भी इसकी गहरी समझ है और उसने सुशांत सिंह को तीन फिल्मों के लिए अनुबंधित कर लिया है। यह आदित्य की ही समझदारी थी कि उसने लेखक-निर्देशक हबीब फैजल को अवसर दिए। यह कटरीना कैफ की चतुराई थी कि सफलता के प्रारंभिक दौर में ही उसने आदित्य चोपड़ा को अपना गुरु मान लिया और उसे तीनों खानों के साथ यशराज कंपनी में भव्य फिल्मों में काम करने का अवसर दिया। कुछ स्वाभिमान वाले ओमप्रकाश की तरह होते हैं जो विभाजन के बाद भारत आने पर बलदेवराज चोपड़ा के हाथों अपमानित हुए तो सारी उम्र ओमप्रकाश ने उनके साथ काम नहीं किया। आज बाजार में जीवन उपयोगी चीजों के बढ़ते दामों के दौर में जीवन मूल्यों का घटना एकदूसरे से जुड़ा हुआ होने का आभास देता है परंतु जीवन मूल्य हम खुशहाली के दौर में ही छोड़ चुके थे।