अभिषेक बच्चन तत्काल पा लिया या तन्मयता / जयप्रकाश चौकसे

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अभिषेक बच्चन तत्काल पा लिया या तन्मयता
प्रकाशन तिथि :05 फरवरी 2015

आज अभिषेक बच्चन का जन्मदिन है और इसे आत्म अवलोकन का अवसर माना जाता है परन्तु घर आए अनगिनत फूलों के दस्ते और बधाई संदेश के शोर मेें वे अपने-आप से बात नहीं कर पाएंगे। वे शायद सतह के नीचे की यह सच्चाई भी नहीं देख पाएं कि इन गुलदस्तों और बधाई संदेश का एक कारण उनका अमिताभ बच्चन और जया का पुत्र होना तथा एेश्वर्य का पति होना है। यह भी सच है कि इन शुभकामना देने वालों में कुछ लोग उनके अपने मित्र भी हैं क्योंकि उनका आचरण इतना अच्छा है कि कोई उनका शत्रु नहीं। कुछ दिन पूर्व ही विदुषी वहीदा रहमान ने कहा है कि इस पीढ़ी के युवा कलाकारों में उन्हें अभिषेक बच्चन पसंद है क्योंकि वह खुशमिजाज आदमी है। अभिषेक बच्चन के सारे साेच और काम में मस्ती-मौज प्रमुख है। वे सारे समय संभवत: यही सोचते हैं कि कैसे आज का वक्त हंसी-खुशी से गुजरे। किसी भी क्षेत्र में कामयाबी के लिए काम पर फोकस और कड़ी मेहनत लगती है। उसके पिता आज इस वय में इतनी सारी व्याधियों के होते भी काम के प्रति समर्पित हैं और उनका अनुशासनबद्ध होना उनकी सफलता का एक कारण है और मूल कारण तो प्रतिभाशाली होना है।

अभिषेक बच्चन के पास अपने पिता की तरह असीमित प्रतिभा नहीं है परन्तु इस कमी को काफी हद तक वे परिश्रम, समर्पण और काम के प्रति तन्मयता से दूर सकते थे परन्तु जाने क्यों एक जुझारू पिता का पुत्र होने के बाद भी उन्होंने अपने काम को कभी संजीदगी से नहीं लिया। उन्होंने कभी नियमित कसरत से अपने शरीर को चुस्त रखने का प्रयास लंबे समय तक नहीं किया। वे अपनी संजीदगी और फोकस को कुछ दिन तक ही निभा पाए गोयाकि उन्होंने हमेशा शार्ट-कट या सुलभ रास्ते पर चलना पसंद किया जबकि जीवन के बीहड़ में घुसकर अपनी राह स्वयं खोजने का ही रास्ता सही है। जीवन के बिफरे जानवर के सींग पकड़ना पड़ता है, उसकी दुम पर लटकने से कुछ नहीं होता।

अभिषेक बच्चन ने मणिरत्नम की 'गुरु' में प्रभावोत्पादक अभिनय किया था, विशेषकर लकवा लगने के बाद के दृश्य जीवंत किए थे। कुछ और भी फिल्में है जिनमें झलक दिखाई दी परन्तु वे कभी खुलकर उजागर नहीं हुए। अभिषेक बच्चन के पास हंसने-हंसाने का माद्दा है और वे हर महफिल को अपने हास्य से रोशन कर देते हैं। जीवन में जाेकर होने से परदे पर अभिनय का कोई रिश्ता नहीं है। अभिषेक बच्चन राजकपूर के ज्येष्ठ पुत्र रणधीरकपूर की याद ताजा करते हैं। उनके पास भी हंसने हंसाने का असीमित माद्दा था परन्तु ध्यानस्थ होकर काम में डूबने के प्रयास उन्होंने बहुत कम किए। उनके पिता राजकपूर अत्यंत परिश्रमी, प्रतिभाशाली और जुझारू व्यक्ति थे। उनकी महत्वाकांक्षा का तंदूर हमेशा दहकता रहता था और अपने पिता महान पृथ्वीराज कपूर के आदर्श उन्होंने कभी नजरअंदाज नहीं किए, कभी ऐसा काम नहीं किया कि परिवार को निगाह झुकानी पड़े। दरअसल पृथ्वीराज अपने दौर के बड़े सितारा थे परन्तु बतौर पिता उन्होंने कभी अपने पुत्रों को छाया में बैठे रहने का अवसर नहीं दिया। जब राजकपूर मात्र सात वर्ष के थे, पृथ्वीराज ने उन्हें स्वीमिंग पूल में फेंक दिया और अपने पुत्र को डुबकियां खाते, हाथ-पैर मारते देख उनकी पत्नी ने अपने पति को कहा कि यह क्या किया। पृथ्वीराज ने मुस्कुराकर कहा कि अब राज खुद तैरना सीखेगा और वे उस समय पूल में कूदेंगे जब खतरा बढ़ जाएगा। राजकपूर तैरना भी सीखे और सारी उम्र डूबकर उस पार भी जाते रहे। अमिताभ बच्चन हरिवंशराय के योग्य पुत्र सिद्ध हुए। हरिवंशराय भी पृथ्वीराज की तरह सोचते थे परन्तु स्वयं अमिताभ बच्चन ने कभी बालक अभिषेक को पूल में नहीं फेंका गोयाकि वे अपने पिता की तरह के पिता कभी बन नहीं पाए- शायद जीवन के सारे अभिनय में इसी एक दृश्य में अतिरिक्त लाड़ प्यार भाव के कारण उनकी पलक क्षण मात्र के लिए झपकी। एंग्री यंग मैन कभी एंग्री पिता नहीं बन पाया।

आज के गलाकाट प्रतियोगिता के युग में पिता अपने मालिक के अदृश्य कोड़े और पत्नी की शिकायतों से त्रस्त, अच्छा पिता बन ही नहीं पा रहा है। वह कॅरिअर को ओढ़ते-बिछाते थक जाता है। जिस बाजार का वह हिस्सा है, वह भी नहीं चाहता कि यह संस्कारवान संतान को पाले।

रणधीर कपूर और अभिषेक तथा उनके तरह अनेक लोग मित्र मंडली का केंद्र रहते हैं, उनके स्मार्ट तौर तरीकों पर वहां बैठे लोग तालियां बजाते हैं गोयाकि अभिनय किया और तत्काल पुरस्कार भी पा लिया परन्तु जीवन में और सिनेमा में फोकस के साथ लंबी संजीदा पारी खेलने पर ही उन स्थानों और सिनेमाघरों में तालियां पड़ती है जहां आप मौजूद नहीं होते। जीवन कवि सम्मेलन या मुशायरा नहीं है। जिंदगी एक सतत चलने वाला युद्ध है। आज अनेक युवा 'तत्काल' तालियों के फेर में पड़े रहते हैं। बाजार में वर्षों पूर्व 'तत्काल कॉफी' आई थी जो अब रगों में रक्त की तरह मिल गई है।