अमिताभ बच्चन, ऋषि कपूर और अनिल कपूर / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :06 मार्च 2018
अनिल कपूर एक निर्माणाधीन फिल्म में ऐसा पात्र अभिनीत कर रहे हैं, जो एक भाग में साठ वर्ष का और दूसरे भाग में तीस वर्ष का दिखाई देगा। करण जौहर की एक फिल्म में ऋषि कपूर को वयोवृद्ध दिखने के लिए चार घंटे तक मेकअप कराना पड़ता था और शूटिंग के बाद उस मेकअप को उतारने में भी लंबा समय लगता था। मेकअप करने के बाद वे भोजन करने के लिए अपना मुंह अधिक नहीं खोल सकते थे। अत: पेय आहार उन्हें स्ट्रॉ के जरिये पीना होता था। मेकअप के विशेषज्ञ अमेरिका से आए थे। उन्हें पांच सितारा होटल में ठहराना पड़ा था। अत: सारी प्रक्रिया अत्यंत खर्चीली थी। मेकअप की प्रोस्थेटिक विधि बहुत दुरुह होती है।
ज्ञातव्य है कि मार्लिन ब्रैंडो ने 'गॉडफादर' अभिनीत करने के लिए अपने माथे पर शल्य चिकित्सा कराकर एक गठान का प्रभाव पैदा किया था। शूटिंग के लिए उन्होंने अपने जबड़े में भी परिवर्तन कराया था। शूटिंग पूरी करने के बाद अपने सामान्य रूप में आने के लिए पुन: शल्य चिकित्सा कराई थी। अभिनय उतना आसान नहीं है, जितना वह प्रचारित किया गया है। मार्लिन ब्रैंडो अपनी भूमिकाओं में इस तरह रम जाते थे कि शूटिंग के बाद भूमिका के प्रभाव से मुक्त होने के लिए महीनों लगते थे।
हमारे यहां दिलीप कुमार ने एक दौर में लगातार त्रासदी की फिल्मों में अभिनय किया और भूमिकाओं के प्रभाव से मुक्त होने के लिए लंदन के मनोचिकित्सक से परामर्श लेने गए थे। उनसे कहा गया कि इस तरह की समस्या के लिए कोई दवा नहीं दी जाती। उन्हें परामर्श दिया गया कि वे हास्य फिल्मों में अभिनय करें। इसीलिए दिलीप कुमार ने 'कोहिनूर' तथा 'राम और श्याम' अभिनीत की थी।
दक्षिण भारत में बनी 'राम और श्याम' के प्रारंभ में कहा गया था कि यह फिल्म मराठी भाषा में फिल्म बनाने वाले फिल्मकार को समर्पित है, क्योंकि उस फिल्मकार ने मूक फिल्मों के दौर में दोहरी भूमिकाओं वाली फिल्म बनाई थी। फिल्म उद्योग ने अपना अखिल भारतीय स्वरूप अक्षुण्ण रखा है। स्वयं को क्षेत्रीयता और संकीर्णताओं से मुक्त रखा है। विगत कुछ दिनों से दक्षिण भारत में एकल सिनेमा हड़ताल पर गए तो वहां के मल्टी प्लैक्स ने भी उनका साथ दिया। सैटेलाइट द्वारा प्रक्षेपण करने वाले दक्षिण भारत में अपना सेवा शुल्क कम लेते हैं। शेष भारत में सेवा शुल्क अधिक लिया जाता है। सेवा शुल्क समान रखने के प्रयास किए जा रहे हैं। तमाम सरकारें फिल्म उद्योग के अस्तित्व की लड़ाई में उदासीन बनी रहती है। आज हालत यह है कि हर संस्था को खुद को बचाए रखने के लिए स्वयं ही सारे प्रयास करना चाहिए। आत्म-निर्भरता एकमात्र रास्ता है। बहरहाल, अनिल कपूर ने स्वयं को चुस्त-दुरुस्त रखा है और नायक अभिनीत करने की पारी के बाद वे अत्यंत सहजता से चरित्र भूमिकाओं में चले गए। ऋषि कपूर ने भी चरित्र भूमिकाओं में सहजता से प्रवेश किया है। हाल ही में उन्होंने 'राजमा चावल' नामक फिल्म की शूटिंग पूरी की है। इस तरह अमिताभ बच्चन द्वारा दिखाए मार्ग पर ऋषि कपूर और अनिल कपूर चल रहे हैं। ये उम्रदराज कलाकार शीशम और नीम के वृक्षों की तरह हैं।