अमिताभ बच्चन और कंगना रनोट की फिल्म / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :14 फरवरी 2018
'चीनी कम' जैसी मनोरंजक फिल्म गढ़ने वाले फिल्मकार आर. बाल्की अमिताभ बच्चन और कंगना रनोट के साथ अरुणिमा सिन्हा का बायोपिक बनाने जा रहे हैं। अरुणिमा सिन्हा हिमालय की चोटी तक चढ़ने वाली महिला हैं, जिनका एक पैर पहले एक दुर्घटना के बाद काटना पड़ा था। डॉक्टर ने उन्हें दूसरा मशीनी पैर लगा दिया था, इसलिए अरुणिमा सिन्हा के साहस और दृढ़ निश्चय की प्रशंसा की गई। हौसलों की बैसाखियों के सहारे ही वे यह असंभव-सा दिखने वाला कार्य कर पाईं। इस यथार्थ से प्रेरित फिल्म में कंगना रनोट अरुणिमा सिन्हा की भूमिका और अमिताभ बच्चन उनके कोच की भूमिका करने जा रहे हैं। ज्ञातव्य है कि विगत कुछ समय से एक विज्ञापन फिल्म में अमिताभ बच्चन और कंगना साथ नज़र आएं, जिसमें कंगना उनसे वे संवाद अदा करने को कहती हैं, जो किसी अन्य सितारे ने किसी फिल्म में अदा किए थे। यह संभव है कि यह विज्ञापन फिल्म भी आर. बाल्की ने ही निर्देशित की हो। आर. बाल्की की एक अन्य फिल्म का नाम था 'शमिताभ' जिसमें दक्षिण भारत के अभिनेता धनुष ने अभिनय किया था।
'शमिताभ' का नायक बोल नहीं सकता परंतु उसे अभिनेता ही बनना है। अतः वह एक सनकी से उम्रदराज व्यक्ति की आवाज का सहारा लेता है जैसे पार्श्व गायन में किया जाता है। इस फिल्म में आर. बाल्की ने युवा कलाकार की मृत्यु दिखाई गोयाकि चेहरा मिटा दिया गया परंतु आवाज कायम रखी। अमिताभ बच्चन के प्रति उनके आदर के कारण ऐसा किया गया परंतु दर्शकों ने फिल्म को अस्वीकृत कर दिया। बहरहाल, कई वर्ष पूर्व फिल्म आई थी 'नाचे मयूरी' जिसमें सुधा चंद्रन नामक अभिनेत्री नायिका थी। यथार्थ जीवन में भी सुधा चंद्रन का एक पैर दुर्घटना के कारण काट दिया गया था। सुधा ने 'नाचे मयूरी' में भी ऐसी ही दुर्घटनाग्रस्त महिला की भूमिका अदा की थी, जिसे नृत्य कला से प्रेम है और वह अपंग होने के बावजूद कामयाब होती है। बाद में सुधा चंद्रन ने आरके नैयर की 'पति परमेश्वर' में अभिनय किया था।
यह मेडिकल तथ्य है कि जब किसी व्यक्ति का कोई हाथ या पैर काट दिया जाता है तो क्लोरोफार्म का असर समाप्त होने पर व्यक्ति के होश में आने के बाद उसे यह भ्रम बना रहता है कि उसका हाथ या पैर काटा नहीं गया है। इसे फैन्टम लिम्ब कहते हैं। महबूब खान की 'मदर इंडिया' में राजकुमार के हाथ कट गए हैं। वह घर में बैठा है। दरवाजे पर सांकल बजती है और वह दरवाजा खोलने के िलए तुरंत उठता है परंतु दरवाजे पर पहुंचते ही उसे अहसास होता है िक वह सांकल नहीं खोल सकता। फिल्म में इस घटना के बाद ही पात्र अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़कर पलायन कर जाता है। उसकी पत्नी के संघर्ष की कथा थी 'मदर इंडिया'। इस फिल्म को ऑस्कर इसलिए नहीं दिया गया, क्योंकि चयनकर्ता को यह असंगत लगता है कि महाजन उस महिला से विवाह करना चाहता है, जिसका पति पलायन कर गया है। वह बच्चों की जवाबदारी भी लेना चाहता है। दरअसल, ऑस्कर चयनकर्ता को भारतीय संस्कार का ज्ञान नहीं है कि पलायन करने वाले की पत्नी भी उस समय तक सधवा मानी जाती है जब तक उसके पति का शव प्राप्त न हो। ऑस्कर प्राप्त करने के लिए यह जरूरी है कि अमेरिका में एक प्रचार विभाग स्थापित किया जाए जो देश के सांस्कृतिक मूल्य चयनकर्ताओं को स्पष्ट कर सके।
ऑस्कर के चयनकर्ताओं को दावत पर बुलाना और फिल्म की जानकारी देना जरूरी होता है। उसी ऑस्कर चयनकर्ता का वोट गिना जाता है, जिसने फिल्म सिनेमाघर में देखी हो। घर पर वीडियो द्वारा देखकर वहां वोट नहीं दिया जा सकता। इसके िलए चयनकर्ता को अपना कार्ड दर्ज कराना होता है। बहरहाल, कंगना रनोट किसी नियम और परम्परा को नहीं मानतीं। अपना मूड सही होने पर ही वे शूटिंग करती हैं। अमिताभ बच्चन अत्यंत अनुशासित कलाकार हैं और नियत समय के पूर्व ही स्टूडियो आ जाते हैं। इस तरह दो विपरीत शैलियों के कलाकारों को एकसाथ लेकर फिल्म बनाना आसान नहीं होगा परंतु यह संभव है कि कंगना अमिताभ बच्चन के प्रति आदर दिखाते हुए इस फिल्म में समय पर आएंगी और अनुशासित भी रहेंगी। आर. बाल्की भी अत्यंत अनुशासित व्यक्ति हैं।
फिल्म टेक्नोलॉजी विकसित हो गई है, फिर भी इस तरह की फिल्म के कुछ दृश्य हिमालय पर ही शूट किए जाएंगे। हिमालय के निकट पहुंचते ही मनुष्य को अपनी औकात का एहसास हो जाता है कि वह कितना छोटा है।