अमिताभ बच्चन : अनुशासन और जुझारूपन / जयप्रकाश चौकसे

प्रकाशन तिथि : 11 अक्टूबर 2014
अमिताभ बच्चन गुजश्ता 45 वर्षों से अभिनय में सक्रिय हैं। अनेक व्याधियों से जूझ रहे हैं, अनेक शल्य चिकित्साएं हुई हैं परंतु सक्रियता बनी रही है। वे हमेशा समय के पाबंद तथा अत्यंत अनुशासित रहे हैं। गुरुवार रात भी स्टार बॉक्स ऑफिस पुरस्कारों में वे सबसे पहले आए। उन्हें बॉक्स ऑफिस शहंशाह इनाम से नवाजा गया। मंच पर माैजूद युवा सितारों के आग्रह पर उन्होंने ठुमके भी लगाए तथा वे अकेले ही ताल पर सही ढंग से थिरके। वहां मौजूद युवा सितारे 45 वर्ष बाद कहां होंगे यह बताना कठिन है परंतु यह तय है कि अमिताभ वाले मुकाम पर वे नहीं पहुंच सकते। प्रतिभा के साथ अनुशासन मणी कांचन संयोग है।
ख्वाजा अहमद अब्बास की उनकी पहली फिल्म 'सात हिन्दुस्तानी' 1969 में आई परंतु इससे पहले दर्शकों ने 'भुवनशोम' में उनकी आवाज सुनी थी। उनकी आवाज में बेस आैर खनक जैसे 1969 में थी, वैसे ही आज भी है आैर अगर आवाज उम्र तय करने का आधार है तो वे आज भी युवा हैं। उनके पिता हरिवंश राय बच्चन भी कवि सम्मेलन मंच पर अपनी आवाज के जादू से लोगों को मंत्रमुग्ध करते रहे हैं। अगर आवाज पिता से मिली तो जुझारूपन सिख मां तेजी से प्राप्त हुआ है। कोई आश्चर्य नहीं कि श्रीमती तेजी बच्चन हनुमान की आराधना करती रहीं ताउम्र। कोई भी संतान केवल वंशानुगत गुणों या दोषों से नहीं बनती है। उसका अपना व्यक्तिगत भी बहुत कुछ होता है। इसीलिए संतान माता-पिता की जीरोक्स कॉपी नहीं होते। शायद इसीलिए वेदव्यास ने भी गर्भस्थ अभिमन्यु को चक्रव्यूह में प्रवेश का ज्ञान पिता अर्जुन से पाता हुआ बताया है आैर उनका दार्शनिक संकेत स्पष्ट था कि मनुष्य को शेष ज्ञान धरती पर स्वयं के अनुभव परिश्रम से प्राप्त होता है। जीवन में कुछ भी अनायास या संयोग से नहीं मिलता है, सब उसके अपने परिश्रम आैर प्रतिभा को मांजने पर आधारित होता है। दरअसल धार्मिक आख्यानों की व्याख्या हमने गलत करके मनुष्य का अवमूल्यन कर दिया है, उसकी अपार क्षमताआें आैर विषम परिस्थितियों से जूझने की योग्यता को गौण कर दिया है। बहरहाल अमिताभ बच्चन ने शिखर सितारा हैसियत अपने 'जंजीर' के बाद वाले दौर में अर्जित की है, उससे बेहतर अभिनय उन्होंने उम्रदराज होने के बाद किया है। स्पष्ट है कि वे लगातार बेहतर हो रहे हैं। उनका अभिनय मजबूत आधारशिला पर बने भवन की तरह है आैर अपने जुझारूपन से वे अतिरिक्त एफ.एस.आई अर्जित कर आैर माले बना रहे हैं। इस इमारत में प्रकाश आैर तेज हवा खूब आती रही है आैर अगर उसके कोई अज्ञात तलघर भी है जिनमें कोई अनजान रिश्तों के जाल लगे हैं या सीलन आई है या वहां भी कोई खजाना है तो यह उनका निजी रहस्य है आैर हर व्यक्ति अपनी निजता की रक्षा के लिए स्वतंत्र है। हर व्यक्ति का अपना एक रहस्य होता है। किसी भी भवन के तलघरों से हमारा कोई संबंध नहीं क्योंकि हम स्वयं भी अपने अवचेतन की कंदरा में किसी को प्रवेश नहीं करने देते।
अभिनेता बनने के पहले उनकी पीठ पर बांई आेर गठान उभर आई थी जिसे शल्य क्रिया से निकाला गया। इसी कारण बाएं कंधे के नीचे एक रिक्त स्थान है। अमिताभ अपने जीवन काल में ही किवदंती हो गए आैर यह भार लाद कर चलना आसान नहीं हाेता। प्रसिद्धि आैर समृद्धि का भार वहन करते समय प्राय: कदम डगमगाते हैं। उनके नहीं डगमगाए। संभवत: उन्होंने उस निकली गठान की जगह इस भार को फिट कर दिया। अमिताभ ने अपने युवा दिनों में प्रकाश मेहरा, मनमोहन देसाई जैस घोर व्यवसायिक और ऋषिकेश मुखर्जी जैसे सार्थक लोगों की फिल्में की हैं। वर्तमान में आर. बाल्की जैसे प्रतिभाशाली फिल्मकार के साथ 'चीनी कम' आैर 'पा' के बाद 'शमिताभ' कर रहे हैं। अब यह कल्पना करने का कोई अर्थ नहीं कि उन्हें मेहबूब खान, गुरुदत्त, बिमल राय या राजकपूर जैसे निर्देशक नहीं मिले। वे स्वयं ही निर्देशन करके इस काल्पनिक क्षति की पूर्ति कर सकते है।